shabd-logo

एक सफ़र अधूरा सा

10 मई 2023

74 बार देखा गया 74

आज चार महीने हो गये लेकिन लगता है कल की ही बात है... जैसे कोई हसीन खुशनुमा ख़्वाब था जो पल भर रहा और पल भर में ही गुज़र गया।
बात है अक्टूबर के ट्रेन के उस सफ़र की जिस ने जिसने मेरी ज़िंदगी में एक अधूरापन सा ला दिया। शाम का वक़्त था, स्टेशन पहुंचने में देर बहुत हो रही थी.. उफ्फ रस्ते का ये जाम और मशीनी दुनिया के बाशिंदों का ये शोर घड़ी की सुइयां ठहरने का नाम नहीं ले रही थीं। ख़ैर किसी तरह स्टेशन पहुंची तो दिखाई दिया कि ट्रेन ने सायरन दे दिया है, भागते हुए मैंने ट्रेन तो पकड़ ली लेकिन अंधेरी रात के उस हल्के से उजाले में कोई जुगनू सा चमक गया, और वक़्त, वो तो वहीं रुक गया था। मैं एक लड़की जो ख़ुद पर्दे में थी, लेकिन उसकी नज़रों ने मुझे ही नहीं मेरी रूह तक को अपनी मख़मली निगाहों से छू लिया था। अपनी सीट पर बैठने के बाद भी ना चाहते हुए निगाहें बार-बार उसकी तरफ उठ जा रही थीं। उसके चेहरे की मासूमियत, बातों में तेज, उसकी लाइट पिंक शर्ट और वाइट पैंट, उसका हाथ बढ़ाकर मुझे ट्रेन में चढ़ते हुये थामने का अंदाज़, हाय! कुछ आवाज़ आयी थी...ये मेरा दिल था बहुत ज़ोर से धड़का था, उसने सुना तो नहीं, नहीं-नहीं वो कैसे सुन सकता है लेकिन अगर सुना नही तो देखा कैसे मेरी तरफ़। अचानक वो हुआ जिसका डर था, वो मुझे देख रहा है और मैं उसे देख रही हूं, और ये चीज़ हम दोनों ने देख  ली और शायद चाह कर भी न चाहते हुए, हम मुस्कुरा दिये, अब मैं थोड़ा रिलैक्स थी क्योंकि नज़रें नज़रों से बातें कर रहीं थीं लेकिन लब अब भी ख़ामोश थे। तभी किसी ने उसके शर्ट पर ग़लती से चाय गिरा दी, दर्द हुआ। लेकिन चाय से ज़्यादा ये देखकर कि उसने जनेऊ पहना हुआ था। बहुत दर्द हुआ...... मैंने नहीं जाना पर आपने तो देखा मैं पर्दे में हूं, रोका क्यूं नहीं मुझे? नज़रों ने सवाल किया, "इश्क़ज़ादे" नहीं "जोधा अकबर" की कहानी लिखनी है। मुतमईन करने वाला जवाब मिला जिससे, मेरे चहरे पर दूसरे ही लम्हा ऐसे मुस्कुराहट तैर गयी जैसे, बहती हुई कोई नदी समंदर से जा मिली हो।
बरसात के बाद इन्द्रधनुष जितनी जल्दी दीखता और ग़ायब हो जाता है वैसे ही एक लम्हा लगा और वाराणसी से लखनऊ आ गया, इतनी जल्दी की एहसास ही न हो सका ... बिन बोले सब कुछ कह डाला लेकिन लब तक हिलाने का वक़्त नहीं मिला और ट्रेन रुक गयी, और उसके साथ ही एक शोर सा उठा था हमारे आस पास, ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबों के बाग़ में कोई रेतीला तूफान आ गया हो, उस भवंर में आखरी बार देखा था उसे, उस भीड़ ने मेरे सभी हसीं ख़्वाबों को ऐसे कुचल दिया जैसे कोई वीरान सा खेत दीखता है जंगली जानवरों के हमले के बाद। ट्रेन आगे बढ़ गयी, उसने प्लेटफॉर्म से ज़ोर से आवाज़ देकर मुझसे कहा'' ये अकबर अपनी जोधा को ज़रूर ढूंढ लेगा।''
ट्रेन आगे बढ़ गयी, और मुझे वहीं छोड़ गयी।तब से वही हूँ मैं, मेरी जिंदगी, मेरी रूह, और मेरी तमाम कायनात। बस इंतज़ार है उसका, जिसका नाम भी नहीं पता, इंतज़ार है उसका, जिसको मेरा नाम भी नहीं पता, इंतज़ार है उसका, जिसको मैं जानती भी नहीं, इंतज़ार है उसका जो मेरा नाम भी नहीं जानता, इंतज़ार है उसका, जिसको मेरा पता ही नहीं पता और इंतज़ार है उसका, जिसका पता मुझको नहीं पता....क्या वाक़ई दुनिया इतनी बड़ी है..!?

ऐ मेरे दिल के बादशाह,
मेरी कायनात तुम्हारे लिए रुकी हुई है...तुम्हें बहुत कोशिश की तलाशने की.... तुम्हारे लिए मैं आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स के हर पन्ने को हर रोज़ पलटती हूँ...लेकिन तुम आज तक नहीं मिल पाये मुझे...फिर भी मुझे यक़ीन है एक दिन तुमसे ज़रूर मिलूंगी दुबारा कभी न बिछड़ने के लिए....और जब तक नहीं मिलती तब तक..... सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे इंतज़ार में..

सिर्फ़ तुम्हारी
जोधा

Written by Urooj 

Urooj Fatma की अन्य किताबें

Nikki Singh

Nikki Singh

Please follow me

11 मई 2023

Nikki Singh

Nikki Singh

बहुत अच्छी रचना

11 मई 2023

Urooj Fatma

Urooj Fatma

12 मई 2023

धन्यवाद मैम !

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए