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एक स्वप्न कथा / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023

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सागर तट पथरीला
किसी अन्य ग्रह-तल के विलक्षण स्थानों को
अपार्थिव आकृति-सा
इस मिनिट, उस सेकेण्ड
चमचमा उठता है,

जब-जब वे स्फूर्ति-मुख मुझे देख
तमतमा उठते हैं

काली उन लहरों को पकड़कर अँजलि में
जब-जब मैं देखना चाहता हूँ--
क्या हैं वे? कहाँ से आयी हैं?
किस तरह निकली हैं
उद्गम क्या, स्रोत क्या,
उनका इतिहास क्या?
काले समुन्दर की व्याख्या क्या, भाष्य क्या?
कि इतने में, इतने में
झलक-झलक उठती हैं
जल-अन्तर में से ही कठोर मुख आकृतियाँ
भयावने चेहरे कुछ, लहरों के नीचे से,
चिलक-चिलक उठते हैं,
मुझको अड़ाते हैं,
बहावदार गुस्से में भौंहें चढ़ाते हैं।
पहचान में आते-से, जान नहीं पाता हूँ,
शनाख़्त न कर सकता।
ख़याल यह आता है-
शायद है;
सागर की थाहों में महाद्वीप डूबे हों
रहती हैं उनमें ये मनुष्य आकृतियाँ
मुस्करा, लहरों में, उभरती रहती हैं।
थरथरा उठता हूँ!
सियाह वीरानी में लहराता आर-पार
सागर यह कौन है ?
 

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रचनाएँ
एक स्वप्न कथा
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एक स्वप्न कथा के पूर्ण संकलन।
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एक स्वप्न कथा / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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एक स्वप्न कथा / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

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एक स्वप्न कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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एक स्वप्न कथा / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध

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एक स्वप्न कथा / भाग 5 / गजानन माधव मुक्तिबोध

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एक स्वप्न कथा / भाग 6 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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एक स्वप्न कथा / भाग 7 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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स्तब्ध हूँ विचित्र दृश्य फुसफुसे पहाड़ों-सी पुरुषों की आकृतियाँ  भुसभुसे टीलों-सी नारी प्रकृतियाँ ऊँचा उठाये सिर गरबीली चाल से सरकती जाती हैं चेहरों के चौखटे अलग-अलग तरह के-- अजीब हैं मुश्किल

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