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एक स्वप्न कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023

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जाने क्यों, काँप-सिहरते हुए,
एक भयद
अपवित्रता की हद
ढूँढ़ने लगता हूँ कि इतने में
एक अनहद गान
निनादित सर्वतः
झूलता रहता है,
ऊँचा उठ, नीचे गिर
पुनः क्षीण, पुनः तीव्र
इस कोने, उस कोने, दूर-दूर
चारों ओर गूँजता रहता है।
आर-पार सागर के श्यामल प्रसारों पर
अपार्थिव पक्षिणियाँ
अनवरत गाती हैं--
चीख़ती रहती हैं
ज़माने की गहरी शिकायतें
ख़ूँरेज़ किस्सों से निकले नतीजे और
सुनाती रहती हैं
कोई तब कहता है--
पक्षीणियाँ सचमुच अपार्थिव हैं
कल जो अनैसर्गिक
अमानवीय दिखता था
आज वही स्वाभाविक लगता है,
निश्चित है कल वही अपार्थिव दीखेंगे।
इसीलिए, उसको आज अप्राकृत मान लो।

सियाह समुन्दर के वे पाँखी उड़-उड़कर
कन्धों पर, शीश पर
इस तरह मँडराकर बैठते
कि मानो मैं सहचर हूँ उनका भी,
कि मैंने भी, दुखात्मक आलोचन -
-किरनों के रक्त-मणि
हृदय में रक्खे हैं।
पक्षिणियाँ कहती है--
सहस्रों वर्षों से यह सागर
उफनता आया है
उसका तुम भाष्य करो
उसका व्याख्यान करो
चाहो तो उसमें तुम डूब मरो।
अतल निरीक्षण को,
मरकर तुम पूर्ण करो। 

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रचनाएँ
एक स्वप्न कथा
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एक स्वप्न कथा के पूर्ण संकलन।
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एक स्वप्न कथा / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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एक विजय और एक पराजय के बीच मेरी शुद्ध प्रकृति मेरा 'स्व' जगमगाता रहता है विचित्र उथल-पुथल में। मेरी साँझ, मेरी रात सुबहें व मेरे दिन नहाते हैं, नहाते ही रहते हैं सियाह समुन्दर के अथाह पानी में

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एक स्वप्न कथा / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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सागर तट पथरीला किसी अन्य ग्रह-तल के विलक्षण स्थानों को अपार्थिव आकृति-सा इस मिनिट, उस सेकेण्ड चमचमा उठता है, जब-जब वे स्फूर्ति-मुख मुझे देख तमतमा उठते हैं काली उन लहरों को पकड़कर अँजलि मे

3

एक स्वप्न कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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जाने क्यों, काँप-सिहरते हुए, एक भयद अपवित्रता की हद ढूँढ़ने लगता हूँ कि इतने में एक अनहद गान निनादित सर्वतः झूलता रहता है, ऊँचा उठ, नीचे गिर पुनः क्षीण, पुनः तीव्र इस कोने, उस कोने, दूर-दूर

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एक स्वप्न कथा / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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मुझसे जो छूट गये अपने वे स्फूर्ति-मुख निहारता बैठा हूँ, उनका आदेश क्या, क्या करूँ? रह-रहकर यह ख़याल आता है- ज्ञानी एक पूर्वज ने किसी रात, नदी का पानी काट, मन्त्र पढ़ते हुए, गहन जल-धारा में

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एक स्वप्न कथा / भाग 5 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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मेरे प्रति उन्मुख हो स्फूर्तियाँ कहती हैं - तुम क्या हो? पहचान न पायीं, सच! क्या कहना! तुम्हारी आत्मा का सौन्दर्य अनिर्वच, प्राण हैं प्रस्तर-त्वच। मारकर ठहाका, वे मुझे हिला देती हैं सोई हुई

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एक स्वप्न कथा / भाग 6 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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मुझे जेल देती हैं  दुश्मन हैं स्फूर्तियाँ गुस्से में ढकेल ही देती हैं। भयानक समुन्दर के बीचोंबीच फेंक दिया जाता हूँ। अपना सब वर्तमान, भूत भविष्य स्वाहा कर पृथ्वी-रहित, नभ रहित होकर मैं वीरान जलत

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एक स्वप्न कथा / भाग 7 / गजानन माधव मुक्तिबोध

6 अप्रैल 2023
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स्तब्ध हूँ विचित्र दृश्य फुसफुसे पहाड़ों-सी पुरुषों की आकृतियाँ  भुसभुसे टीलों-सी नारी प्रकृतियाँ ऊँचा उठाये सिर गरबीली चाल से सरकती जाती हैं चेहरों के चौखटे अलग-अलग तरह के-- अजीब हैं मुश्किल

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