देर रात तक अमर आज पुराने खयालो में डूबा रहा और आज ख़ुशवंत अंकल से हुई बातचीत को याद कर रहा है। दूसरी ओर मनमीत की नज़र में आज अमर की इज्जत और बढ़ गयी है, साथ ही एक रूहानी इश्क़ जो मनमीत के मन मे अमन के लिए पनप रहा था वह और मजबूत सा हो गया है।
अमर और ख़ुशवंत जी का रिश्ता दिन व दिन और मजबूत होता जा रहा है। मनमीत को भी अमर का हर काम करना बड़ा अच्छा लगने लगा है। दूसरी ओर सुनयना और अमर दोनों का मिलना जुलना भी बढ़ने लगा है।
अब आखिर वह दिन नजदीक आने लगा है कि अमर और सुनयना एक रिश्ते में बंध जाए। सुनयना का घर-
बेटा तुम और सुनयना अब एक दूसरे को अच्छे से समझते भी हो और हमे अब लगता है कि अब इस रिश्ते को कोई नाम दे दिया जाए, अगर तुम्हारी रजामंदी हो तो- सुनयना की माँ अमर से बोलती है।
अमर- जैसा आपको ठीक लगे, मुझे कोई परेशानी नही है।
शगाई की तारीख पक्की हो जाती है और अमर और सुनयना की शगाई की तैयारी शुरू हो जाती है-
अमर- सुनयना! तुम्हे तो मैं पसन्द हूँ न.....
सुनयना- हाँ, तुम तो मुझे बहुत पसंद हो, लेकिन तुम्हारी ये सिंपल मिडिल क्लास फैमिली वाली लाइफ वाली सोंच मुझे अच्छी नही लगती।
अमर- क्या मतलब??
सुनयना- अरे कुछ नही! बस ऐसे ही....
और अमर को अपनी बाहों में भरकर चूमने लगती है।
अमर सुनयना को अपने से दूर करते हुए- देखो सुनयना अगर तुम्हें मैं पसन्द नही हूँ तो प्लीज मुझे बता दो, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, और तुम्हारी जुदाई मैं कभी बर्दाश्त नही कर पाऊँगा।
सुनयना- अरे कुछ नही! इतना परेशान क्यों होते हो....ऐसा कुछ नही है भाई......प्लीज.......
अमर- ओके! तो फिर रेडी हो मेरे साथ जिंदगी बिताने के लिए...
सुनयना- जी हुजूर.......
आखिरकर सुनयना और अमर की शगाई हो जाती है। दूसरी तरफ ये बात जब मनमीत को पता चलती है तो वह भी टूट सी जाती है, लेकिन अमर के सामने अपने इमोशन को कभी दिखाती नही है। मनमीत अब बहुत चुप सी हो गयी है, वो अपनी पढ़ाई में ज्यादा व्यस्त रहती है और घर मे भी पापा या अमर से भी कुछ ज्यादा बातचीत नही करती है।
अमर सुनयना को बहुत प्यार करने लगा है, उसकी हर जरूरत हर ख्वाहिश के लिए हमेशा तैयार रहता है। अमर के इस कदर प्यार और अपनेपन को सुनयना बहुत तबज्जो नही देती है, लेकिन अमर के सामने यह कभी दिखाती भी नही है।
अमर की वकालत की पढ़ाई भी अब खत्म होने को है, और वह अब कोर्ट जाना भी शुरू कर दिया है। सुबह शाम एक बार जरूर सुनयना से मिलने जाता है। अमर हमेशा सुनयना के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट और सामान लेकर जाता है, जो कभी कभी सुनयना को अच्छा नही लगता है।
अमर एक अच्छा लड़का है और सुनयना के घर मे उसके मम्मी पापा हमेशा भगवान को शुक्रिया करते है कि उन्हें अमर जैसा एक अच्छा लड़का उनकी बेटी को मिला है। सुनयना के घर मे अमर की एक अलग इज्जत है, और वह धीरे धीरे अब सुनयना के मम्मी पापा के काफी नजदीक हो गया है। जिससे सुनयना को कभी कभी यह बात अच्छी नही लगती क्योंकि अमर की कही गयी बात की सुनवाई अब घर मे ज्यादा होने लगी है।
अमर सुनयना को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहता है, और वह चाहता है कि सुनयना एक दिन बहुत अच्छी पोस्ट पर पहुँचे और उसके लिए अमर को चाहे जो भी करना पड़े उसके लिए वह तैयार रहता है। अमर सुनयना के लिए नई नई नौकरी के इस्तिहार पेपर से काट कर लाता है और उसे प्रोत्साहित करता है कि उसे भरकर कहीं कोई अच्छी नौकरी करना शुरू करे।
सुनयना! देखो यह नौकरी तुम्हारे लिए अच्छी है...इसको अप्लाई करना चाहिए- अमर बोलता है।
सुनयना बेमन से- ठीक है! जैसा तुम चाहो....
अमर- एक बार थोड़ा अनुभव हो जाएगा तो तुम्हे आगे अच्छी जॉब के लिए परेशान नही होना पड़ेगा।
सुनयना- ठीक है....मेरा बॉयोडाटा तो तुम्हारे पास ही है, प्लीज इस कंपनी में डाल देना।
अमर- ठीक है! आज मैं कोर्ट जाते समय ही बॉयोडाटा दे दूँगा।
चार दिन बाद सुनयना को कंपनी से फ़ोन आता है।
हेलो! सुनयना बोल रही है?- जी मैं सुनयना बोल रही हूँ।
दूसरी तरफ से- आप ने जॉब के लिए अप्लाई किया था, आपका इंटरव्यू है कल सुबह १०.०० बजे, अपने पढ़ाई से सभी कागजात लेकर यहाँ आ जाइयेगा।
सुनयना- जी अच्छा! थैंक यू......
सुनयना तुरन्त ही अमर को फ़ोन लगाकर सारी बात बताती है।
अमर- ये तो बहुत अच्छी बात है...
सुनयना- मुझे तो बहुत डर लग रहा है, पता नही क्या होगा?
अमर- अरे! इसमें परेशान होने की कोई जरूरत नही है। सब अच्छा होगा...बस कॉन्फिडेंट होकर जाना.......
सुनयना- फिर भी यार....मैंने कभी कोई इंटरव्यू आज तक नही दिया है।
अमर- अरे इंटरव्यू नही दिया है लेकिन वाईवा तो दिया है, बस समझ लेना कोई एग्जामिनर बैठा है सामने......
शाम को अमर सुनयना के सभी पेपर्स को फ़ाइल में लगाता है और अगले दिन के इंटरव्यू के लिए तैयारी करवाता है.......
क्रमशः..........