दिन बीतने लगते है, मनमीत हर रोज की तरह अमर के लिए नास्ता खाना सबकुछ बनाती रहती है। दूसरी ओर सुनयना की नौकरी भी बहुत अच्छी चलने लगती है...अब तो हर दिन सुनयना सुबह जल्दी आफिस पहुँच जाती है और देर शाम तक आफिस में व्यस्त रहती है।
अमर अपने रोजमर्रा के कामो में व्यस्त रहता है, कचेहरी आना जाना और अब तो उसे भी थोड़े बहुत केस भी मिलने लगे है जिसकी वजह से उसकी भी व्यस्तता बढ़ती जाती है। सुनयना और अमर की बाते भी थोड़ी कम होने लगी है।
सुनयना के मन मे अपने बॉस राज के लिए खयाल आने शुरू हो गए है। सुनयना को राज की हर चीज बहुत अच्छी लगने लगी। मन ही मन मे राज को वह पसन्द करने लगी है, लेकिन कहाँ राज और कहाँ वो....दोनों के स्टेटस और पद में काफी डिफरेंस है, इसलिए सुनयना में मन मे ही ये बाते रह जाती है। कई बार आफिस में जब आमने सामने एक दूसरे से टकराहट होती है, तो सुनयना का दिल राज के लिए धड़क उठता है।
सुनयना को राज के बारे में कुछ भी नही पता है लेकिन मन ही मन मे उसे चाहने लगी है....धीरे धीरे उसे राज की हर चीज अच्छी लगने लगी है और अमर की हर चीज उसे खराब.....हर एक बात को, पहनावे को और उठने बैठने को लेकर अक्सर सुनयना अमर से नाखुश सी ही रहती है।
राज जितना बड़ा आदमी है, उतना ही बड़ा लालची भी है। उसके पास धन दौलत की कमी नही है और उसके शौक और रहन सहन उससे भी कहीं ऊपर है। इसलिए कोई भी अजनबी या न जानने वाला व्यक्ति उसके इस दिखावे में आ ही जाता है। सुनयना भी इसी दिखावे का शिकार हो गयी है।
सुनयना के नैन नक्श और सुंदरता देखकर राज भी उसे बहुत पसंद करता है, लेकिन अपने पोजीशन और स्टेटस के ऊपर जाकर वह भी कुछ नही कर सकता इसलिए थोड़ा दूरी बनाकर रखता है। वैसे आमतौर पर दिन में घण्टो तक राज सुनयना को अपने पास ही बिठा कर रखता है, और कुछ काम न होने पर भी वह घर की पर्सनल बाते करता रहता है, जिसके कारण सुनयना धीरे धीरे और राज के करीब आती जा रही है।
थोड़े ही दिनों में दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करने लगे है, और बाहर रेस्ट्रॉन्ट में जाकर खाना पीना भी शुरू हो गया है। अब राज सुनयना के बहुत ही करीब आ गया है। सुनयना भी प्यार के इस झोंके को सह नही पा रही है। एक बेचैनी और उल्फ़त भरा माहौल हो गया है तो में.....दोनों के दिलो में एक दूसरे के लिए आग सी लगी है।
आज काम बहुत था, दिन भर राज को एक पल की फुर्सत नही मिली, चाहकर भी आज वह सुनयना से मिल नही पाया। अंदर से तो उसका मन तो बहुत बेचैन था, उससे ज्यादा सुनयना राज से मिलने को बेकरार थी। शाम के ७ बज़ चुके है, सभी लोग आफिस से जा चुके है। राज की मीटिंग अभी खत्म हुई है, जो गेस्ट आये थे वह भी जा चुके है। पूरा आफिस खाली हो चुका है।
राज भी अपने केबिन में अपना बैग पैक करके निकलने लगता है, कि केबिन का दरवाजा खुलता है और सुनयना अंदर आती है। सुनयना को देखकर राज-
अरे! तुम अभी तक यहीं हो घर नही गए- सिर नीचे झुकाए हुए सुनयना नही गयी सर.......
राज- अच्छा! चलो मैं तुमको छोड़ देता हूँ.....और सुनयना की ओर देखता है।
सुनयना शरमाई हुई सी, आँखों से अपनी ओर बुला रही थी.....राज अपने को रोक न पाया और सुनयना की बाहों से लिपट कर उसे प्यार करने लगा। दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे और एक दूजे में खो गए। दोनों को कुछ होश न रहा और रात के ८.०० बज़ गए.......अब सुनयना पूरी तरह से राज के आगोश में आ चुकी थी।
राज को इसी का इंतज़ार था, जो उसे बिना कहे और कोशिश किये ही मिल गया.....राज के लिए यह पहली सुनयना नही थी इसके पहले भी बहुत के साथ राज के संबंध रहे है। जइस बात से सुनयना बेखबर थी।
अब सुनयना घर मे और खास तौर से अमर से काफी बेरुखी और बदतमीजी से बात करने लगी थी। सुनयना की नज़र में राज ही उसको अपना जीवन साथी लगने लगा था। सुनयना ये सोंचने लगी थी कि उसने अमर के साथ शगाई करके अपनी जिंदगी की बहुत बड़ी भूल कर दी है। कैसे इस रिश्ते जिसका कोई वजूद नही है, उससे बाहर निकला जाए।
दूसरी ओर राज के लिए यह सब बहुत नार्मल था क्योंकि सुनयना उसके लिए कोई नई चीज नही है। राज अब दिन व दिन सुनयना पर हावी होने लगा है, और सुनयना का विश्वास रोज का रोज जीतता जा रहा है। सुनयना राज के जाल में फँसती जा रही है और अपनों से दूर जा रही है।
जिसका अंदाजा सुनयना को नही है। राज ने पूरी तरह से सुनयना को बना लिया है, और झूंठे वादों और कसमो की बाते भी होने लगी है............
क्रमशः...............