अगली सुबह सुनयना के आफिस का पहला दिन....
नई जगह, नया डेस्क और नए लोग सबकुछ देखकर सुनयना अपने को उस वातावरण में ढालने की कोशिश कर रही है। सुनयना अपने डेस्क पर बैठकर बहुत खुश है, आज उसका कॉन्फिडेंस और बढ़ गया है। अपने डेस्क को ठीक ही कर रही है कि उसकी डेस्क का फ़ोन बजने लगता है-
फ़ोन उठाकर हेलो बोलते ही दूसरे तरह से- हेलो सुनयना! राज बोल रहा हूँ, प्लीज मेरी केबिन में आना और फ़ोन कट जाता है।
हाथ मे डायरी लेकर सुनयना राज के केबिन को धीरे से खोलते हुए- मे आई कम इन सर! बोलती है।
यस प्लीज कम!- राज बोलता है।
हाथ मे गोल्ड प्लेटेड घड़ी, गोल्डन कलर का चश्मा, मैरून शर्ट पर ब्लैक कलर के सूट पैंट में राज बहुत ही खूबसूरत और स्मार्ट लग रहा है। सुनयना दो मिनट के लिए राज को देखती रह गयी।
तुम्हारी तबियत तो ठीक है- राज पूँछता है।
सुनयना- हड़बड़ी में, हाँ सर! मैं ठीक हूँ.....
आफिस का माहौल कैसा लग रहा है- राज पूँछता है।
सर, बहुत अच्छा है, बहुत सिस्टमैटिक और बहुत सुंदर आफिस है।
तुम्हे तुम्हारी डेस्क कैसी लगी?- राज पूँछता है।
बहुत अच्छी है सर- सुनयना बोलती है।
ओके बैक टू द बिजनेस..... तुम एक लेटर ड्राफ्ट करो... ये लो पेन और पैड। जैसे जैसे मैं बोलूँगा तुम्हे लिखते हुए जाना है।- राज बोलता है।
सुनयना- जी सर।
लेटर को ड्राफ्ट करके सुनयना राज को देती है, लेकिन उसमें ढेर सारी गलतियां होती है। क्योंकि अभी सुनयना नई नई है इसलिए राज उसके साथ बैठकर हर गलती को सुधार करवाता है। राज की इस तरह की मदद से सुनयना को बड़ा सहारा मिलता है साथ ही राज के लिए इज्जत भी बढ़ती जाती है।
सुनयना घर बाहर हर जगह सिर्फ राज की ही बात करती रहती है। मेरे राज सर कितने अच्छे है, कितनी मदद करते है और एक एक चीज इतने प्यार से समझाते है, मुझे बहुत अच्छा लगता है आफिस में....... सुनयना अमर से बोलती है।
अमर- ये तो बहुत अच्छी बात है, कि तुम बहुत जल्दी अपने आफिस में सेटल हो गयी। आफिस में लोग भी बहुत अच्छे है,
सुनयना- हाँ, बहुत अच्छे है सभी लोग.... और खास तौर से राज सर.....क्या पर्सनालिटी है यार.....बहुत स्मार्ट और कितने अमीर है वह.......उनकी तो बात ही अलग है.....उनका क्लास ही अलग है...
अमर- अरे, बस भी करो....बॉस है तुम्हारे....तो अच्छे तो होंगे ही.....
ऐसे धीरे धीरे सुनयना आफिस की चीजें समझ जाती है, और आज महीना पूरे होने पर सुनयना के एकाउंट में पहली सैलरी भी आ गयी है।
सुनयना आज मम्मी पापा और अमर के साथ होटल में पार्टी का प्लान किया है.........
आज सुनयना बहुत खुश है और शहर के अच्छे होटल में डिनर पर सबको लेकर जाती है। सबलोग डिनर करते है-
सुनयना के पापा- बेटा, इतना पैसा खर्च करने की क्या जरूरत थी? हम लोग तो घर पर ही पार्टी कर लेते।
सुनयना- अरे पापा जी! यही तो जब तक बड़ा नही सोंचेंगे तब तक बड़े कैसे बनेंगे। अब तो आप देखते जाओ, मैं कहाँ तक पहुँचती हूँ।
सुनयना के पापा- बेटा, अब तुम पता नही क्या करने वाली हो, लेकिन मेरे लिए तो यह फिजूलखर्ची ही है।
सुनयना- अरे पापा! आप तो चिल करिए और पार्टी का मजा लीजिए।
सुनयना की माँ- अभी चार पैसे क्या तुम्हारे पास आने लगे, अभी से बोली निकलने लगी तुम्हारे......
अमर- ठीक है अंकल जी और आँटी जी, जॉब लगी है सुनयना की नई नई....खुश है, रोज पार्टी थोड़ी न होगी.....उसका मन है तो आज सब लोग उसकी खुशी समझकर एन्जॉय करते है।
अमर की बात पर सभी लोग मुस्कुराने लगते है और हँसी खुशी सभी लोग घर की ओर निकल जाते है।
सुनयना- मैं बोल रही थी तो सबको खराब लग रहा था, यही बात अमर ने बोल दी तो सब ठीक है......बस यही तो आप लोगो के
का बेटा है....मैं तो कुछ हूँ ही नही......
इन्ही सब बात और तकरार के बीच सभी लोग घर आते है और अमर अपने घर की ओर निकल जाता है।
रात काफी हो गयी है, लेकिन मनमीत घर पर ऊपर बालकनी में खड़ी होकर अमर के आने का इंतजार कर रही है.....
अमर की बाइक आती है और बाइक अंदर करके अपना ताला खोल ही रहा होता है, कि अचानक उसकी निगाह ऊपर की ओर जाती है-
अरे मनमीत! तुम सोए नही अभी तक, काफी रात हो गयी है।- अमर बोलता है।
मनमीत- बस कुछ नही नींद नही आ रही थी, तो यहीं खड़ी हो गयी थी....
अमर- हाँ, आज सुनयना ने अपनी नई जॉब की पार्टी दी थी, इसीलिए थोड़ा लेट हो गया आने में.....
दरवाजा खोलकर अपने कमरे में अंदर जाता है। मनमीत गुमसुम सी आसमान में तारे देखती रहती है, और फिर थोड़ी देर बाद बालकनी का दरवाजा बंद करके अपने बिस्तर पर जाकर लेट जाती है। थोड़ी देर बाद करवट बदलते बदलते पता नही कब वह नींद के आघोष में आ जाती है, उसे पता नही चलता है.......
क्रमशः.........