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मेरे हमसफ़र मेरे हमदम... भाग-२

3 अगस्त 2022

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बाइक खड़ी करके सुनयना के साथ अमर भी उसके घर जाता है। घर पर सुनयना की माँ-
आँटी नमस्ते!- अमर बोलता है।
नमस्ते बेटा!- आ गए तुम लोग.......
हाँ माँ!- आ गया आपका लाडला.....
अरे क्यों नही??- मेरा तो लाडला ही है, तुम क्यों जल भुन जाती हो...
हुन.......कहकर सुनयना वाश बेसन की तरफ हाथ धुलने के लिए जाती है.....

आओ, तुम दोनों बैठो मैं कुछ खाने को लेकर आती हूँ।- माँ बोलती है।
खैर इसी तकरार के बीच दोनों खाते पीते है....और अमर अपने कमरे के लिए निकलता है....और सुनयना अपनी माँ के साथ बाजार और मंदिर के लिए निकलती है।

कमरे पर पहुँचते ही मनमीत के पापा ख़ुशवंत जी अमर से-
अरे आज बड़ी देर लगा दी भई......कहाँ रह गए थे.....
अमर- अरे कुछ नही अंकल जी बस सुनयना के यहाँ थोड़ी देर हो गयी बस.....
ख़ुशवंत- अरे कोई गल नही... मैं तो सिर्फ सतरंज खेलने के लिए याद कर रहा था..... अगर ज्यादा थक न गए हो तो चलो हो जाए एक दो चांस....

अमर और ख़ुशवंत बैठकर चेस खेलने लगते है। मनमीत दो कप चाय और पकौड़ी बना कर लाती है।
लाओ बेटा....बहुत शुक्रिया...अब तो मज़ा ही आ जायेगा खेल में...क्यों अमर बेटा...
जी अंकल और अपनी चेस की ओर देखते हुए अमर.......
मनमीत- पापा! इनसे कह दीजिए कि अगर नास्ता न करना रहे तो पहले बता दिया करें.....बिना बताए ही चले जाते है.....ये ठीक नही है।
ख़ुशवंत- बिल्कुल सही बेटा! क्यों भाई मेरी बेटी को परेशान करते हो पुत्तर.....खा पीकर अच्छे से कॉलेज जाया कर.....बड़ा वकील बनेगा तो कम से कम हमे याद तो करेगा।

अमर- अंकल जी, आज थोड़ी जल्दी में था इसलिए नही कर पाया।
मनमीत किचन की ओर चली जाती है.....

थोड़ी देर खेलने के बाद.... चलो पुत्तर... मैं थोड़ा बाज़ार घूमकर आता हूँ....तू भी कपड़े चेंज कर ले, अभी दोनों साथ मे खाएंगे।
अमर- जी अंकल जी! और अपने कमरे की ओर जाने लगता है....साथ ही ख़ुशवंत भी निकल जाते है.......

पीछे से मनमीत अमर को आवाज देती है.....सुनिए प्लीज! अमर रुकता है और मनमीत सिर झुकाए अमर से माफी मांगने लगती है।

अमर- कोई बात नही प्लीज तुम बहुत अच्छी हो, लेकिन तुम्हे मालूम है कि मैं सुनयना से बहुत प्यार करता हूँ, और उसके साथ ही जिंदगी बिताने का फैसला किया है।
मनमीत- जी! आप मुझे माफ़ कर दे।
अमर- कोई बात नही और अपने कमरे की ओर चला जाता है।

मनमीत अपने काम मे लग जाती है, और रेडियो ऑन करके गाने के साथ गुनगुनाने लगती है।

शाम का खाना तैयार हो जाता है, और ख़ुशवंत जी और अमर बात करते करते खाने लगते है।
ख़ुशवंत- अब ले देकर बेटा! यही मनमीत है, जिसकी अब मुझे चिंता है। बाकी मेरा बुढ़ापा तो यूँ ही कट जाएगा.....
अमर- अरे सब अच्छा ही होगा अंकल जी...... अच्छा आप यहीं दिल्ली से ही है या कहीं और से....

ख़ुशवंत- बेटा! हम लोग तो पंजाब से है होशियारपुर से.....बहुत पहले हमारे मम्मी पापा दिल्ली चले आये थे....बस उन्ही के साथ आ गए.....ये सब उन्ही लोगो ने बनाया था....दुकान भी चांदनी चौक की भी पापा जी ने शुरू की थी......

अमर- और कोई घर मे नही है?

ख़ुशवंत- बड़ी पुरानी बात है, बच्चे....मेरे पापा जी तीन भाई थे...सभी यहीं रहते थे....बड़े भाई की शादी एक अच्छे परिवार की कुड़ी से हो गयी, और वो उन्हें भी विदेश उड़ा ले गयी.....फिर वो लोग वहीं सेटल हो गए और फिर कभी न लौटे वहाँ से.....

मैं दुकान देखता था, तो मेरे ऊपर ही घर की जिम्मेदारी रह गयी...मम्मी पापा की सेवा करते करते वो भी चले गए....और अचानक एक दिन मनमीत की मम्मी का हर्टफेल हो गया और वो भज भगवान के पास चली गयी। मैं बहुत अकेला रह गया बेटा.... छोटा भाई को भी अपना देश न अच्छा लगा और वह भी विदेश भाग गया.....मैं अपने पुरखों की अमानत सहेजने में लगा रहा। मुझे अपनी बेटी पर फक्र है कि उसने मुझे संभाल लिया नही तो मैं डूब ही गया होता.......

अरे पुत्तर चल तू बता आज अपने बारे में कुछ........
उधर से मनमीत खुशवंत को दवा देती हुई.....क्या पापा आपलोग भी बातें करने लगते हो तो बस.......
आ बैठ मेरे पास बेटी.......ख़ुशवंत मनमीत का हाथ पकड़कर अपने पास बिठा लेते है।

अमर- क्या बताएं अंकल जी! अपनी तो कुछ कहानी ही नही है। मैं भी भटिंडा से हूँ। बहुत छोटा था सातवीं क्लास में....एके रोड एक्सीडेंट में पापा जी की डेथ हो गई......मम्मी की नौकरी पापा जी की जगह लग गयी। भटिंडे से इंटरमीडिएट करी, और ग्रेजुएशन के पहले साल में ही माँ भी भगवान के पास चली गयी.....कोई नही है अंकल जी.....बस अनाथ ही हूँ......सुनयना के पापा मेरे पापा के साथ काम करते थे तो बस थोड़ा बहुत उन्ही से तालुक है.....

ख़ुशवंत- अरे! आज से ऐसा मत बोलना बेटा......हम है न तेरे पापा जी........कभी ये सब दिमाग मे मत लाना तू.....तुझे किस बात का गल है.....मैं हूँ न........और अमर के कँधे पर हाथ रखकर उसे ढांढस बंधाते है।

चल बेटा तू भी सो जा अब....बहुत रात हो गयी है.....कल तुझे भी कॉलेज जाना होगा.....
मनमीत बेटा- जा दरवाजा बंद कर ले.....
मनमीत- जी पापा जी.....
अमर सबको गुड नाईट बोलकर अपने कमरे की ओर निकल जाता है।

क्रमशः..............


काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut hi shandar part👌👌👌

3 अगस्त 2022

Devendra Tripathi

Devendra Tripathi

4 अगस्त 2022

Thank you so much!🙏

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रचनाएँ
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