नमस्ते..
मित्रों आज की मेरी कहानी हें बेरोजगारी ही आत्महत्या हें.. इस एक वाक्य मे हर उस व्यक्ति की कहानी हें जो अपनी जुबा से कह नहीं सकता पर उसकी आखों और उन आँखों से निकलते उन आसुओं की कहानी बया करती हें
आज की कहानि एक गरीब परिवार की 26 वर्षीय रीमा (नाम कहानी मे बदला हुआ) की बचपन से सपने देखने वाली ये रीमा अपने परिवार की लाडली थी क्यों कि घर मे सब से छोटी थी तो सब प्यार करते थे.. रीमा के दो बहने और भाई था दो बहनों की कम उम्र में शादी कर दी गई और भाई उनसे छोटा और रीमा से बड़ा था.. रीमा के माँ पिताजी खेती कर के अपने घर का गुजारा करते थे.. रीमा के पिताजी ने अपनी छोटी बेटी को सब से जादा प्यार दिया.. रीमा भी चंचल, हंसमुख, सब का आदर सामन करने वाली लड़की थी.. बस उसके सपने थे तो अपने माँ पिताजी को अच्छा जीवन देना..
बस इसे ही सपने लिए रीमा किशोरअवस्था मे पहुच गई.. 12 कक्षा तक पढ़ाई पूरी की अपने ही गांव के सरकारी विद्यालय से.. आगे की पढ़ाई के लिए उसने अपने नजदीक ही सरकारी महाविद्यालय मे प्रवेश लिया.. रीमा के मन मे एक ही बात आती थी कि मेरे माता पिता कितनी कठिनाई से हम सब भाई बहन को पालापोषा मेरे एक बार कहने पर ही पिताजी ने मेरा दाखिला इस महाविद्यालय मे करवा दिया..
बस इसे सोचते ही रीमा की आखों मे आंसू आगए..
अब रीमा ने सोचा ये पढ़ाई भी बहुत मेहनत और लगन से कर के एक अच्छी नोकरी करुँगी और अपने माँ और पिताजी को अच्छा जीवन दूंगी...
इन्ही कल्पनाओं के साथ रीमा ने एक वर्ष पूर्ण किया आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिये रीमा की माँ ने जो पेसे रीमा को दिये थे रीमा खुशी खुशी उन्हें सम्भाल के रखती हे कि
जुलाई महीने मे महाविद्यालय मे कक्षाएं शुरु हो जायेगी.. और मुझे ये पेसे वहाँ जमा करवा के आगे की पढ़ाई जारी रखना हें....
पर कह्ते हें ना कि सपने हमेशा सपने ही होते हें.. जब रीमा अपने दूसरे वर्ष का दाखिला करवाने महाविद्यालय जाती उस से पहले ही उसके पिताजी की तबीयत खराब हो गई... और उसके पिताजी टीवी की बीमारी से ग्रसित हो गए.. और जो पेसे रीमा के दाखिले के लिए रीमा ने रखे थे वो अपनी माँ को दे दिये.. माँ ने लाख मना किया कि तेरे दाखिले की तिथि पास हे तू पेसे मत दे... पर रीमा ने एक ना सुनी..
फिर वो तिथि निकल गई और रीमा भी अपने सपने को भूल के अपने पिताजी की सेवा करने लगी.. इसे ही एक वर्ष बीत गया और रीमा का सपना भी पीछे रहे गया...
अब रीमा खुद अपने माँ पिताजी के साथ खेतों मे उनका हाथ बटाने लगी.. पर उसे कभी कभी अपना सपना याद आता हे तो.. अकेले रो-रो कर खुद को समझा देती हें कि शायद मे अपने माँ बापू का सपना पूरा नहीं कर पाऊँगी..
इसे ही चार साल बीत गए.. और पूरे देश मे एक महामारी ने फिर से सब को घरों मे बेटा दिया.. पर रीमा सोचती हें कि इस महामारी ने कितनों को बेरोजगार किया हे.. में तो और मेरे जेसे कई लोग अपने घरों में हे पर उनका क्या.. जो अपने परिवार से दूर दूसरे शहर में हे..
रीमा ने भी अब घर से दूर रह कर काम करने की सोची..
और साल 2020 मे एक अनजान शहर में अपने माँ पिताजी का सपना लिये काम की तलाश मे आगई.. यहा उसे एक अच्छी दोस्त मिली.. आरती उसने उसे एक महिने अपने घर भी रखा उसका परिवार बहुत अच्छा था उन्होंने रीमा को अपनी बेटी की तरह रखने लगे.. अब रीमा और आरती. दोनों दिन रात काम की तलाश करते रहते...
बेरोजगारी इतनी थी कि कोई काम पर नहीं रख रहा था.. कई जगह तो रीमा को खुद का अपमान भी सहना पड़ा क्यों कि एक सीधी साधी लड़की को कोन काम देगा.
अब रीमा दिन रात रोती की मे एसा क्या करू.. जो मुझे काम मिल जाये.. मेरी क्या गलती हें भगवान की मे 12 कक्षा तक ही पढ़ी लिखी हू.. अरे लोगों की पढ़ाई देख के उनके कोशल काम करने की इच्छा को क्यों मार देते हें.. 12 कक्षा पढ़े हें.. पर काम बताएंगे की... वो मे कह नहीं सकती...
इतना कह्ते कहते रीमा की आखों से आसु आगए.. क्या कसूर हें मेरा की मे गरीब हु... उसे रोता देख आरती भी भावुक हो गई...
फिर एक सुबह एक अनजान महिला का फोन आया उससे मिलने रीमा और आरती दोनों गये.. वो महिला और कुछ उसके साथी उन्हें एक होटल मे ले गए.. वहां एक कम्पनी के बारे मे उन्हें बताया और.. ज़बर्दस्ती से अपनी बातों मे लेके बड़े बड़े सपने दिखा के एक काग़ज़.. पर रीमा की सारी जानकारी भर दी गई.. रीमा भी थोड़ी खुश थी क्यों कि शायद अब उसे वो सपने पूरे करने का रास्ता मिला हें..
पर ये क्या.. रीमा से एक खरीदारी करवाई गई थोड़े बहुत जो पेसे बचे वो भी एक सपने के पीछे लगा दिए... कुछ दिन सब ने साथ दिया.. पर सब ने रीमा और आरती को समुह से अलग समझ लिया और वो किस परिस्थिति में ही है किसी ने नहीं पूछा और रीमा और आरती उस कंपनी को ही सपना समझ बेठि थी पर कोई साथ नहीं देता इसे.. ये बात उसे बहुत देर बात समझ आई.. तब तक रीमा ने और आरती ने अपने सपने पूरे करने के लिए उन कंपनी के बड़े बड़े सरों का कहना मनाती गई और 5 महीने कई पर काम नहीं ढूढा.. और वो लोग उन्हें बड़े बड़े सपने दिखा कर उन के सर पर 1 लाख का कर्जा करवा दिया और फिर इसे दूर किया जेसे दूध से मक्खी को निकाला हो.. दोनों सहेलियाँ अब रोती रहती हें क्यों कि रीमा अपने माँ पिता को ये बात कह नहीं सकती.. क्यों कि उसके भाई ने पहले ही घर को कर्जे मे डूबा रखा हें...
अब रीमा ये कहते हुये रोती हें कि.. भगवान अब भी मेरा ही दोष हें जो बङा बनने के सपने मेने देखे.. मे भूल गई कि मे एक गरीब परिवार से हू.. जो कभी आमिर नहीं बन सकता मे आज भी अपने घर पर अपनी माँ अपने पिता की खुशी के लिए झूठ बोल रहीं हू की मे बहुत अच्छी कम्पनी मे काम करती हू.. पर मे जानती हू.. मेने कभी किसी का गलत नहीं किया फिर मेरे साथ एसा क्यों हुआ.. मे अपना कर्जा खुद चुकाना चाहती हू.. पर मुझे कोई काम दिलवा दो.. और रीमा रोने लगती हें.. और आरती उसे चुप कराती हुये खुद भी रोने लगती हें... उसे आज भी तलाश हें नोकरी की.. एक सपना ही तो था उसका.. क्या कसूर था... अब रीमा कहती हें कि आज नवयुवकों के लिये.. ये बेरोज़गारी ही आत्महत्या हें.. बेरोजगारी के चलते ये कम्पनी वाले सपने दिखा देते हें बड़े पर साथ देने की बजाय उन्हें अकेला छोड़ देते हें.. कम्पनि कभी गलत नहीं होती हें अगर साथ दे के हम जेसे गरीबो को आगे बढ़ाए.. और 12 पास भी 10 से 15 हजार के हक दार हें.. पर उन हें तो. 5 हजार भी मुस्किल से देते हें.... हमारी पढ़ाई से हमे मत काम दिया करो.. हम हिम्मत और कौशल को देखा करो..
ये कह कर रीमा आत्महत्या करने जा रहीं थीं आज.. पर उसे अब जीने की कोई उम्मीद नहीं दिख रहीं हैं... कर्जा केसे उतरेगा.. उसे उसकी सहेली रोका पर..
क्या एक बेरोजगार और 12 पास के लिये सिर्फ आत्महत्या ही रखी हें... अगर दिल पत्थर का नहीं हे तो... रीमा की मदद करेगे.. उसे फिर से जीने की उम्मीद देगे....
भारत मे बेरोजगारी हटाओ... 12 पास को काम लगाओ
लेखक ____
पिंकी जांगिड़ 💫 💫