गाँधी जी के बन्दर तीन
गाँधी
जी के बन्दर
तीन,
तीनों
बन्दर बड़े प्रवीन।
खुश
हो बोला पहला बन्दा,
ना
मैं गूँगा, बहरा, अन्धा।
पर
मैं अच्छा ही देखूँगा,
मन
को गन्दा नहीं करूँगा।
तभी
उछल कर दूजा बोला,
उसने
राज़ स्वयं का खोला।
अच्छी-अच्छी
बात सुनूँगा,
गन्दा मन ना होने
दूँगा।
सुनो,
सुनाऊँ मन की आज,
ये
बापू के मन का राज़।
जो
देखोगे और सुनोगे,
वैसे
ही तुम सभी
बनोगे।
हमको
अच्छा ही बनना है,
मन
को अच्छा ही रखना है।
अच्छा
दर्शन, अच्छा जीवन,
सुन्दरता
से भर लो तन-मन।
सोच
समझ कर तीजा बोला,
मन
में जो था, वो ही बोला।
आँख
कान से मनुज गृहणकर,
ज्ञान
संजोता मन के अन्दर।
मुख
से, जो भी मन में होता,
वो
ही तो, वह बोला करता।
अच्छा
बोलो जब भी बोलो,
शब्द-शब्द
को पहले तोलो।
मधुर
बचन सबको भाते हैं,
सबके प्यारे हो जाते हैं।
...आनन्द
विश्वास