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चलो बुहारें अपने मन को

14 नवम्बर 2017

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चलो, बुहारें अपने मन को,

और सँवारें निज जीवन को।


चलो स्वच्छता को अपना लें,

मन को निर्मल स्वच्छ बनालें।


देखो, कितना गन्दा मन है,

कितना कचरा और घुटन है।


मन कचरे से अटा पड़ा है,

बदबू वाला और सड़ा है।


घृणा द्वेष अम्बार यहाँ है,

कचरा फैला यहाँ वहाँ है।


मन की सारी गलियाँ देखो,

गंध मारती नलियाँ देखो।


घायल मन की आहें देखो,

कुछ बनने की चाहें देखो।


राग द्वेष के बीहड़ जंगल,

जातिवाद के अनगिन दंगल।


फन फैलाए काले विषधर,

सृष्टि निगल जाने को तत्पर।


मेरे मन में, तेरे मन में,

सारे जग के हर इक मन में।


शब्द-वाण से आहत मन में,

कहीं बिलखते बेवश मन में।


ढाई आखर को भरना है,

काम कठिन है, पर करना है।

...आनन्द विश्वास

आनंद विश्वास की अन्य किताबें

नीरज चंदेल

नीरज चंदेल

बहुत ही अच्छा लिखा है.

20 नवम्बर 2017

विजय कुमार शर्मा

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बहुत ही सुंदर व अच्छा संदेश मगर फोटो दिल के काले लोगों की लग गई है ।

15 नवम्बर 2017

शालिनी कौशिक एडवोकेट

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सार्थक व् सुन्दर अभिव्यक्ति .

15 नवम्बर 2017

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*बेटा-बेटी सभी पढ़ेंगे*

2 अक्टूबर 2017
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*बेटा-बेटीसभी पढ़ेंगे* नानीवाली कथा- कहानी , अब के जग में हुई पुरानी।बेटी-युगके नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।बेटी-युग में बेटा-बेटी,सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे।फौलादी ले नेक इरादे,खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।देश पढ़ेगा, देश बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।बे

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बुरा न बोलो बोल रे..

2 अक्टूबर 2017
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बुरा न बोलो बोल रे.. बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे,वाणी में मिसरी तो घोलो, बोल बोल को तोल रे।मानव मर जाता है लेकिन,शब्द कभी ना मरता है।शब्द-वाण से आहत मन का,घाव कभी ना भरता है।सौ-सो बार सोचकर बोलो, बात यही अनमोल रे,बुरा न देखो, बुरा सुनो ना, बुरा न बोलो बोल रे।पांचाली के

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*एक आने के दो समोसे.*

3 अक्टूबर 2017
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बातउन दिनों की है जब एक आने के दो समोसे आते थे और एक रुपये का सोलह सेर गुड़।अठन्नी-चवन्नी का जमाना था तब। प्राइमरी स्कूल के बच्चे पेन-पेन्सिल से कागज परनहीं, बल्कि नैज़े या सरकण्डे की बनी कलम से खड़िया की सफेद स्याही से, लकड़ी के तख्तेकी बनी हुई पट्टी पर लिखा करते थे।

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*आई हेट यू,पापा!*

3 अक्टूबर 2017
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*आईहेट यू,पापा!*...आनन्दविश्वासदेवम के घर से कुछ दूरी पर ही स्थित हैसन्त श्री शिवानन्द जी का आश्रम। दिव्य अलौकिक शक्ति का धाम। शान्त, सुन्दर औररमणीय स्थल। जहाँ ध्यान, योग और ज्ञान की गंगा अविरल वहती रहती है। दिन-रात यहाँवेद-मंत्र और ऋचाओं का उद्घोष वातावरण को पावनता

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गाँधी जी के बन्दर तीन

3 अक्टूबर 2017
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गाँधीजी के बन्दर तीन गाँधी जी के बन्दर तीन,तीनों बन्दर बड़े प्रवीन।खुशहो बोला पहला बन्दा,नामैं गूँगा, बहरा, अन्धा। पर मैं अच्छा ही देखूँगा,मनको गन्दा नहीं करूँगा।तभीउछल कर दूजा बोला,उसनेराज़ स्वयं का खोला। अच्छी-अच्छी बात सुन

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चलो बुहारें अपने मन को

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चलो,बुहारें अपने मन को,औरसँवारें निज जीवन को। चलोस्वच्छता को अपना लें,मनको निर्मल स्वच्छ बनालें। देखो, कितना गन्दा मन है,कितनाकचरा और घुटन है। मन कचरे से अटा पड़ा है,बदबू वाला और सड़ा है। घृणा द्वेष अम्बार यहाँ है,कचरा फैला

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*बेटी-युग*

12 फरवरी 2018
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*बेटी-युग* ...आनन्द विश्वास सतयुग, त्रेता,द्वापर बीता, बीता कलयुग कब का,बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।बेटी-युग में खुशी-खुशी है,पर महनत के साथ बसी है।शुद्ध-कर्म निष्ठा का संगम,सबके मन में दिव्य हँसी है।नई सोच है, नई चेतना, बदला जीवन सबका,बेटी युग के नए दौर में, हर्षाया

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“प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है?”

12 अगस्त 2021
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“प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है?”-आनन्द विश्वासबिस्तर गोल हुआ सर्दी का,अब गर्मी की बारी आई।आसमान से आग बरसती,त्राहिमाम् दुनियाँ चिल्लाई। उफ़ गर्मी, क्या गर्मी ये है,सूरज की हठधर्मी ये है।प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है,किस-किस की दुष्कर्मी ये है। इसकी गलती, उसकी गलती,किसको गलत, सही हम

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