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ग़ज़ल

7 मई 2016

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धड़कन के शहर में हुश्न कोई नया आया है

आहट को सुनके ये दिल तो मेरा पगलाया है


भीड़ जुटी है उसके घर के सामने बहुत काफ़ी

क्या अदा है तुझमे कि तूने सबको नचाया है


न मैंने इश्क़ कभी सोचा न मैंने नाम सूना है

पगली ने आके दिल में मेरे आग लगाया है


कब बीत जाये ये दिन-रात ना लगे खबर हमे

उसके चेहरे को देखके मैंने खुद को भुलाया है


महबूबा कहुँ तुझे या मोहब्बत की आग कहुँ

इश्क़ के जलवे से कौन खुद को बचा पाया है


शहर की खामोशियाँ तो तुझसे ही टूट गयी

हुड़दंग मेरे शहर में तो आके तूने ही मचाया है


हर तरफ ही तेरे नाम है तारीफ तेरी क्या करूँ

है कौन शहर का कोई जो तुझसे बच पाया है


वीरान सी शहर में न जाने ये भीड़ कब हुई

अँधेरो का शहर ये तेरी रोशनी से नहाया है



निखिल 

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