अर्ज़ हैं 🌹
इस जमाने ने दिये इतने सितम।
अब घिसे चप्पल भी लगे हैं प्रीतम।
नये चप्पल देख चिढ़ सी हो गई हैं।
उस घिसे चप्पल से एक लगाव सी हो गई हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता नंगे पैर ही चलूँ।
कंकड़ पत्थर भी अपने दुःख मे समाए हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता नंगे पैर ही चलूँ।
धूल ने भी अपनी एक आशियाँ बनाए हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता अगर पैर भी छिल जाए।
नरम नरम कीचड़ ने भी अपनी महलम लगाए हैं।
इस जमाने ने दिये इतने सितम।
अब घिसे चप्पल भी लगे हैं प्रीतम।
:- नेहा