हर साल रावण दहन करते हो।
मार कर बुराई को खत्म करते हो।
सोचते हो गई बुराई का नाश।।
या इंसानियत का हो रहा हैं विनाश।।
क्या तोलना हैं इंसान और रावण का।
जैसे एक दुध और मेल का।
खुद के अंदर देखो इतना हैं पाप।
इंसान की बनते जा रहा है अभिसाप।
रावण था इतना विद्वान।
श्री राम को भी था उनपर अभिमान।
खुद ली थी उनसे शिक्षा।
जोह देते हैं सबको भिक्षा।
क्या करोगे रावण की बराबरी।
जो बने श्री राम के फ़क़ीर।
हैप्पी दशहरा🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹