गीत अकवि का
एक शोर संगीत भरा
एक धूलि रंग चित्रकार का
एक भीड़ जो नहीं लगती भीड़
एक गीत अकवि का
जो घट रहा अपने आप
निरापद अनायास
मन को कर देती है हरा
हवाएँ
हवाओं में शोर है
शोर में समय है
समय में दिशाहीनता है
दिशाहीनता में समाया है
हवाओं का सुख
हवाओं का नहीं है
मस्तिष्क
आतंक
कितनी अजीब है
यह स्थिति कि चिड़िया
भूखी हो फिर भी
किसी शंकावश
अपनी चोंच में दाना
न लेती हो
प्रतीक्षा
इन पत्थरों को देखो-
इनकी प्रतीक्षा देखो,
नहीं तो
देखो मुझे