पूर्व लेख में गण्डमूल इतने अशुभ क्यों के अन्तर्गत सन्धि की चर्चा के साथ-साथ यह बता चुके हैं कि सन्धि कैसी भी हो अशुभ होती है। बड़े व छोटे मूल क्या हैं। गण्डान्त मूल और उसका फल क्या है। अब इसी ज्ञान में और वृद्धि करते हैं।
अभुक्त मूल-ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त की 1घटी(24मिनट) तथा मूल नक्षत्र की प्रथम 1घटी अभुक्त मूल कहलाती है। इस प्रकार 2घटी का कोणात्मक मान 26कला40विकला होता है।
इसके अनुसार अभुक्त मूल का कोणात्मक विस्तार इस प्रकार होता है-वृश्चिक ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में और मूला नक्षत्र के प्रथम चरण में यह विस्तार इस प्रकार है-7राशि29अशं46कला40विकला से 8राशि 0 अंश 0 कला 0विकला तक और 8 राशि 0अंश 0कला 0विकला से 8राशि 0अंश 13कला 20विकला तक।
अभुक्त मूल में जन्मे बालक का मुंह पिता द्वारा तीन वर्ष तक देखना वर्जित है। इसीलिए प्राचीन काल में ऐसे बालकों का त्याग कर दिया जाता था। दो जातक तुलसीदास और कबीर के नाम से अमर हो चुके हैं।
सन्धि स्थल अशुभ होते हैं! सन्धि के निकट सर्वाधिक अशुभ फल हाता है। ज्येष्ठा का चतुर्थ चरण ओर मूल का प्रथम चरण सर्वाधिक हानिकारक होता है। प्रायः तृतीयांशों के अन्तिम नक्षत्रों रेवती, आश्लेषा व ज्येष्ठा के प्रथम चरणों से ज्यों-ज्यों चतुर्थ चरणों की ओर सन्धि के निकट बढ़ते हैं तो अशुभता बढ़ती जाती है।
इसके विपरीत तृतीयांशों के प्रारम्भिक नक्षत्रों अश्विनी, मघा व मूला के प्रथम चरणों से चतुर्थ चरणों की ओर सन्धि से दूर बढ़ने पर अशुभता कम होती जाती है।
गण्डमूल नक्षत्रों के फल पहले भाग में बता चुके हैं।