स्वर दो होते हैं-सूर्य स्वर(दायां) और चन्द्र स्वर(बायां)।
सूर्य स्वर दाएं नथुने से और चन्द्र स्वर बाएं नथुने से आता-जाता रहता है।
दोनों स्वर ढाई-ढाई घड़ी में बदलते रहते हैं।
जिस नथुने से श्वास अधिक तेजी से अन्दर जाए या निकले वह स्वर चल रहा होता है।
आप यात्रा करने जा रहे हों अथवा किसी कार्य के लिए घर से जा रहे हों तो ऐसे में मंगलमयी यात्रा एवं कार्यसिद्धि के लिए मन में कोई चिन्ता न करें।
यदि आप स्वर को पहचानते हैं या उसे महसूस कर सकते हैं तो उसी के अनुरूप करें यात्रा मंगलमयी ही होगी और कार्य भी सिद्ध होगा।
यदि आप यात्रा के लिए निकल रहे हैं तो सर्वप्रथम अपना स्वर महसूस करें-
1. यदि आपका बायां स्वर चल रहा है तो पहले बायां पैर बाहर निकालकर घर से बाहर निकलें।
2. यदि आपका दायां स्वर चल रहा है तो पहले दायां पैर बाहर निकालकर घर से बाहर निकलें।
कहने का तात्पर्य यह है कि यात्रा को सुखद् एवं प्रसन्नतामयी बनाने के साथ-साथ मंगलमयी बनाने के लिए
मात्र स्वर की पहचान करके घर से बाहर निकलते समय उसी पैर को बाहर निकालकर
यात्रा प्रारम्भ करनी है जो स्वर चल रहा है।
मूलतः यह समझ लें कि समस्त शुभ या सौम्य कार्य बाएं स्वर अर्थात् चन्द्र स्वर में ही करने चाहिएं।
1. अधिक परिश्रम युक्त कार्य एवं साहस वाले कार्य क्रूर कार्य आदि करने हो तों दायां स्वर अर्थात् सूर्य स्वर का प्रयोग करना चाहिए।
2. योग, भजन, ध्यान, जप आदि कार्य सुषुम्ना स्वर में करने से शीघ्र सिद्ध होते हैं या अच्छा प्रभाव देते हैं।
3. चन्द्र स्वर ठंडी प्रकृति का होता है इसलिए गर्मी या पित्त जनित रोगों का शमन करता है।
4. सूर्य स्वर गर्म प्रकृति का होता है इसलिए सर्दी या कफजनित रोगों या मन्दाग्नि के कारण उत्पन्न रोगों का शमन करता है।
5. अचानक कोई भी पीड़ा आ जाए तो तुरन्त स्वर परिवर्तन अर्थात् सूर्य स्वर चल रहा हो तो चन्द्र स्वर कर दें और यदि चन्द्र स्वर चल रहा हो तो सूर्य स्वर में परिवर्तन कर देने पर तुरन्त लाभ होता है।