रूद्राक्ष का प्रयोग बहुतायत से होता है। रूद्राक्ष के विषय में कुछ सत्य और तथ्य आपको बता रहे हैं जिससे आप असली व नकली की पहचान कर सकें। रूद्राक्ष को शिव का नेत्र कहते हैं। रूद्राक्ष का वृक्ष नेपाल, इंडोनेशिया और भारत में पाया जाता है। इस पेड़ पर फल लगते हैं, इनका छिलका उतारने पर भीतर से मजबूत गुठली निकलती है जिसे रूदाक्ष कहते हैं। इसका प्रयोग धर्म एवं औषधियों में समान रूप से होता है। कहते हैं इसकी माला पहनने से रक्तचाप एवं हृदय रोग में लाभ होता है।
असली एवं पके हुए रूद्राक्ष में विद्युत शक्ति होती है और शरीर से रगड़ खाने पर इसमें से निकलने वाली ऊर्जा शारीरिक व मानसिक लाभ देती है। अनेक पक्षी तो इसे अपने घोंसले में रखते हैं। रूद्राक्ष के मध्य एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक रेखा होती है जिसे मुख कहते हैं। ये 1से14मुखी तक होती हैं। यदाकदा 15से21मुखी तक के रूद्राक्ष भी देखने में आते हैं। आधी या टूटी रेखा को मुख नहीं माना जाता है। जितनी रेखा स्पष्ट हों उतनी ही रेखा मानी जाती हैं।
एकमुखी सूर्य, दोमुखी चन्द्र, तीनमुखी मंगल, चारमुखी बुध, पांचमुखी गुरु, छहमुखी शुक्र, सातमुखी शनि, आठमुखी राहु, नौमुखी केतु, दसमुखी भगवान् महावीर, ग्यारहमुखी इन्द्र, बाहरमुखी भगवान् विष्णु, तेरहमुखी इन्द्र, चौदहमुखी शनि, गौरी शंकर एवं गणेश रूद्राक्ष पाए जाते हैं।
रूद्राक्ष पेड़ पर उगता है इसलिए नकली नहीं हो सकता है, हां कच्चा हो सकता है। पांचमुखी रूद्राक्ष अधिक उगते हैं, इसलिए ये सस्ते होते हैं। जो मुख कम मिलते हैं वे महंगे होते हैं। फिर भी रूद्राक्ष बाजार में नकली मिलते हैं। इनका भी बड़ा व्यापार फैला हुआ है। पारखी तो पहचान कर लेता है। किन्तु सामान्य जा बहुत रुपए खर्च करके भी असली रूद्राक्ष नहीं पाता है।
कहते हैं कि असली रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है। यह सत्य नहीं है, सत्य है कि कच्चा रूद्राक्ष पानी में तैरता है और पका हुआ रूद्राक्ष डूब जाता है। अतः यह सूत्र कच्चे व पक्के रूद्राक्ष की पहचान है। गहरे रंग का रूद्राक्ष अच्छा माना जाता है और हल्के रंग का नहीं। यह जान लें की रूद्राक्ष का छिलका उतारकर उस पर रंग चढ़ाया जाता है। रूदाक्ष की माला तैयार करने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। कभी-कभी रंग कम रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रयोग किए हुए होते हैं, ऐसा तेल या पसीने के सम्पर्क में आने से होता है। कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है। ये अधिक शुभ माने जाते हैं। अधिकतर में तो छेद करना ही पड़ता है। कहते हैं कि दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्के के मध्य घूमने वाला रूद्राक्ष असली होता है, यह भी एक भ्रांति है। इस प्रकार रखी हुई वस्तु दबाव के कारण किसी दिशा में तो घूमती ही है। मूलतः रूद्राक्ष को सुई से कुरेद कर देखें अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा। रूद्राक्ष के ऊपर बनने वाले पठार एकरूप नहीं होते हैं, यदि हैं तो रूद्राक्ष नकली है। असली दो रूद्राक्षों के पठार कभी समान नहीं होते हैं। नकली रूद्राक्षों में ये समान हो सकते हैं। कुछ रूद्राक्ष पर शिवलिंग, त्रिशूल व सर्प तक बने होते हैं, ये प्राकृतिक नहीं होते हैं, कुशल कारीगरी है। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से ये आकृतियां बनायी जाती हैं। इनसे इनका मूल्य बढ़ जाता है। पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुख मसाले से बन्द करके एक मुखी के नाम से बेचा जाता है। यह अधिक धन कमाने के लिए किया जाता है। यह ध्यान रखें कि मानव निर्मित मुख सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक मुख सीधे नहीं होते हैं। अनेक बार तो बेर की गुठली को रंगकर असली रूद्राक्ष कहकर बेचा जाता है। रूद्राक्ष की माला में बेर की गुठली का प्रयोग बहुतायत में होता है। खरीदते समय सावधान रहें। असली के नाम पर नकली रूद्राक्ष आसानी से बेच दिए जाते हैं। रूद्राक्ष खरीदते समय उक्त बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि रूद्राक्ष रंगे हुए होंगे तो नमक मिश्रित पानी में डालकर उबालने से उनका रंग फीका या हल्का पड़ जाएगा।
आप एक कटोरे में उबलता पानी ले लें। इस उबलते पानी में एक दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को गैस से उतार दें और चार मिनट बाद ढक्कन हटाकर ध्यान से देखेंगे तो आप ये बातें जान सकेंगे-यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया गया होगा तो वह फट जाएगा। कुछ भी नकली कारीगरी की गई होगी तो वह अलग हो जाएगी। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाए जाते हैं। यदि मुख बन्द करें गए होंगे तो वे खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से फटा होगा तो और फट जाएगा। यदि बेर की गुठली से बने होंगे तो गुठली नरम पड़ जाएगी जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अन्तर नहीं पड़ता है।
असली के नाम पर करोड़ों रूपए के नकली रूद्राक्ष बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन इन पर कोई लगाम नहीं है। हां इतना अवश्य है कि आप पारखी निगाहों से इन्हें परखकर असली रूदाक्ष क्रय कर सकते हैं।