12 नवम्बर 2015
8 फ़ॉलोअर्स
मन में उठती तरंगों को शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करती हूँ....D
जय गोवर्धन गिरिधारी !
14 नवम्बर 2015
अति सुन्दर, बधाई !
🌞 सुप्रभात 🌞 🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿 🌷 🌿 गुनगुनी भोर का साम्राज्य विस्तार ले रहा। चिडियों का कलरव चहुंओर हो रहा। तू अब तक खोया सपनों के जंजाल में। किरणों को अंजलि भर, मलिन मुख धो ले। 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 ---------बीना (अलीगढ़ी)
माँ शारदे के चरणों में भाव शब्द रूपी पुष्प अर्पित करती हूँ....... 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹आज के विषय पर रिमझिम पटल पर मेरी प्रथम प्रस्तुति...... ------------तुलसी ------------- तुलसी मैया मैं तेरा, किस विधिकरूँ पूजन अर्चन।पाप नाशिनी पुन्य दायनी। तुझे, मेरा शत शत नमन। दृारे २घर आँगन, चौबारे। तेरा पवित
🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी
--------त्यौहार खुशियों का - - - - - - - - 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀त्यौहारों की रौनकें चहुंओर ओर दिखने लगीं। उत्साह उमंगों की तरंगें अन्तर्मन मन में उठीं।मुरझायें चेहरों पे खिली खिली आई मुस्कान। हाथों में धन कलश लिये दृारे धन्वन्तरि आये। चन्दन लेप कटोरा लिये दर्पण में रूप नखारे। इन्द्र धनुषी रंग
आज के पर्व पर मेरी ताजा रचना दोस्तो आप सभी को समर्पित........ ---------गोवर्धन गिरधारी------🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹जल की झड़ी लगी गोकुल में। इन्द्र ने अपना कोप दिखाया। मेघों नेभीजमकरतांडवमचाया। त्राहि-त्राहि मच गई चहुँ ओर। नहीं कुछ समझ सके नर नारी। सुनामी की लहरों के आगे। जतन कर कर हारे बृज बासी। जान ब
🌴🍁🌴🍁🌴🍁🌴🍁🌴🍁🌴कागज के नोटों की माया। अजब गजब इनका संसार। इनके मोह जाल में रे भय्या। बौना हुआ साराआज संसार। नोट देख जगता है भय्या। नोट देख ही सोवत रे!!!! आँखें चुधिया रही हम सबकी इन नोटन की चमक दमक से। छूट रहे सब रिश्ते नाते छूट रहे संगी साथी। सबसे बड़ा रूपया भैया येही है अब संगी साथी। ------
🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃🍁-------माँ ऐसी होतीं हैं-------------------------------------------जन्म लिया नन्हे ने, सबके चेहरे खिल गये। माँ भी तो खुश होती, पर चिन्ताओं से घिर जाती। नन्हा अब चलना सीखेगा, घुटुउन घर आँगन दौड़ेगा, चिन्ता के कारण ये सारे। चोट कहीं ना लग जाये, घर का सारा सामान उठाती। घर के वास्तुशा
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺---माँ गंगा को मेरा अर्पण - - - - एक कोशिश समीक्षार्थ...... रहेंगे कब तलक प्यासे नदी तुम लौट भी आओ/ना तड़पाओ रह रहके हमें अब लौट भी आओ//-----------------------------------------अतृप्त तन मन अपना अबतो आत्मा तक प्यासी/ये तेरा रूप कैसा है कि मन बैचेन है मेरा//-----------------------
🌵🌾🌵🌾🌵🌾🌵🌾🌵🌾🌵🌾---मानवता मर रही - - - अन्तर्मन सवाल कर रहा मानवता क्यूँ मर रहीइंसा इंसान दुश्मन क्यों जीवन इतना त्रस्त क्यों अनमोल जो जीवन था सस्ते दामों में बिक रहा दिशाएं भ्रमित क्यों हुईं --------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। पिता पुत्र सम्बन्ध निरर्थक बेटी पिता से शर्मसार क्यों घर घर को