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गोवर्धन गिरधारी.

12 नवम्बर 2015

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आज के पर्व पर मेरी ताजा रचना दोस्तो आप सभी को समर्पित........ 

---------गोवर्धन गिरधारी------

🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹


जल की झड़ी लगी गोकुल में। 


इन्द्र ने अपना कोप दिखाया। 


मेघों नेभीजमकरतांडवमचाया। 


त्राहि-त्राहि मच गई चहुँ ओर।


 नहीं कुछ समझ सके नर नारी। 


सुनामी की लहरों के आगे। 


जतन कर कर हारे बृज बासी। 


जान बचाने के पड़ गये लाले। 


पुकार रहे सब तब कान्हा को। 


 तुम बिन कौन सहारा हमारा।


 कान्हा बन आ गये "गिरधारी" । 


पर्वत उठा लिया क्षण भर में।


 इन्द्र का "मान" मर्दन किया। 


प्रकृति की महिमा समझाई।


 गोधन के रखवारे कान्हा ने, 

संदेस सभी को दे डाला। 


आओ हम सब संकल्प उठायें। 


 गो - धन अपना फिर से बचायें।


-------बीना (अलीगढ़ी) 

🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹

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माता तुलसी

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माँ शारदे के चरणों में भाव शब्द रूपी पुष्प अर्पित करती हूँ....... 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹आज के विषय पर रिमझिम पटल पर मेरी प्रथम प्रस्तुति...... ------------तुलसी ------------- तुलसी मैया मैं तेरा, किस विधिकरूँ पूजन अर्चन।पाप नाशिनी पुन्य दायनी।  तुझे, मेरा शत शत नमन। दृारे २घर आँगन, चौबारे। तेरा पवित

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परी - - - - - - -

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🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁----------परी --------कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। ध्यान लगाकर सुनना। गुड़िया एक नन्ही सी। इस धरती पर जन्मी। नन्हीं की आँखों में भी थे कुछ स्वप्न सुनहरे। दीपों का त्यौहार दीवाली। मन उसके बहुत भाता था। कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी वो सब लेना चाहती थी। दादी से बोली वो इक दिन। मैं भी दादी

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त्यौहार खुशियों का

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--------त्यौहार खुशियों का - - - - - - - - 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀त्यौहारों की रौनकें चहुंओर ओर दिखने लगीं। उत्साह उमंगों की तरंगें अन्तर्मन मन में उठीं।मुरझायें चेहरों पे खिली खिली आई मुस्कान। हाथों में धन कलश लिये दृारे धन्वन्तरि आये। चन्दन लेप कटोरा लिये दर्पण में रूप नखारे। इन्द्र धनुषी रंग

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गोवर्धन गिरधारी.

12 नवम्बर 2015
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आज के पर्व पर मेरी ताजा रचना दोस्तो आप सभी को समर्पित........ ---------गोवर्धन गिरधारी------🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹जल की झड़ी लगी गोकुल में। इन्द्र ने अपना कोप दिखाया। मेघों नेभीजमकरतांडवमचाया। त्राहि-त्राहि मच गई चहुँ ओर। नहीं कुछ समझ सके नर नारी। सुनामी की लहरों के आगे। जतन कर कर हारे बृज बासी। जान ब

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गोवर्धन गिरधारी.

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रूपया

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माँ गंगा

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मानवता मर रही

11 दिसम्बर 2015
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🌵🌾🌵🌾🌵🌾🌵🌾🌵🌾🌵🌾---मानवता मर रही - - - अन्तर्मन सवाल कर रहा मानवता क्यूँ मर रहीइंसा इंसान दुश्मन क्यों जीवन इतना त्रस्त क्यों अनमोल जो जीवन था सस्ते दामों में बिक रहा दिशाएं भ्रमित क्यों हुईं --------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। पिता पुत्र  सम्बन्ध निरर्थक बेटी पिता से शर्मसार क्यों घर घर को

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