आज के पर्व पर मेरी ताजा रचना दोस्तो आप सभी को समर्पित........
---------गोवर्धन गिरधारी------
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जल की झड़ी लगी गोकुल में।
इन्द्र ने अपना कोप दिखाया।
मेघों नेभीजमकरतांडवमचाया।
त्राहि-त्राहि मच गई चहुँ ओर।
नहीं कुछ समझ सके नर नारी।
सुनामी की लहरों के आगे।
जतन कर कर हारे बृज बासी।
जान बचाने के पड़ गये लाले।
पुकार रहे सब तब कान्हा को।
तुम बिन कौन सहारा हमारा।
कान्हा बन आ गये "गिरधारी" ।
पर्वत उठा लिया क्षण भर में।
इन्द्र का "मान" मर्दन किया।
प्रकृति की महिमा समझाई।
गोधन के रखवारे कान्हा ने,
संदेस सभी को दे डाला।
आओ हम सब संकल्प उठायें।
गो - धन अपना फिर से बचायें।
-------बीना (अलीगढ़ी)
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