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---माँ गंगा को मेरा अर्पण - - - -
एक कोशिश समीक्षार्थ......
रहेंगे कब तलक प्यासे नदी तुम लौट भी आओ/
ना तड़पाओ रह रहके हमें अब लौट भी आओ//
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अतृप्त तन मन अपना अबतो आत्मा तक प्यासी/
ये तेरा रूप कैसा है कि मन बैचेन है मेरा//
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कभी थी तू पतित पावनी जीवन दायिनी मैया/
निष्ठुर हो गये सारे तेरे हम स्वार्थी बनकर//
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दिया सम्मान माता का तेरा अपमान कर बैठे/
किया दोहन सदा से ही तुझे लाचार कर बैठे//
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बड़ी ही भूल कर बैठे हैं पापी दास हम तेरे/
प्रायश्चित भूल का करलें कदाचित् लौट कर आओ//
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तमन्ना थी सदा से ही रहूँ चरणों में माँ तेरे/
ना जाने कहाँ गुम हो रहीं सब प्रार्थनाएं मेरी// ✒✏
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-------बीना (अलीगढ़ी)
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