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परी - - - - - - -

9 नवम्बर 2015

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----------परी --------


कहानी एक तुम्हें सुनाऊँ। 

ध्यान लगाकर सुनना। 

गुड़िया एक नन्ही सी। 

इस धरती पर जन्मी। 


नन्हीं की आँखों में भी 

थे कुछ स्वप्न सुनहरे। 

दीपों का त्यौहार दीवाली। 

मन उसके बहुत भाता था। 


कपड़े मिठाई दीप फुलझड़ी 

वो सब लेना चाहती थी। 

दादी से बोली वो इक दिन। 

मैं भी दादी अपना घर सजाऊँ। 


पैसे कहाँ है नन्हीं बिटिया 

ये सब कैसे तुम्हें दिलाऊँ। 

देख आँख में आंसू दादी के 

वो पल में सहमी सहमी सी। 


लेकर अपने ख्याव सुनहरे 

सपनों में गुम हो गयी। 

परी एक सपनों में आई। 

निदिया से उसे जगाया। 


ना होना उदास तू नन्हीं। 

ये सब मैं तुझे दिलाऊँ। 

सपने में उपहार अनेकों 

परी ने उसको दे डाले।


झालर और कंडीलों से, 

घर उसका रोशन हो गया। 

नन्ही की खुशियों को 

जैसे पंख अनेको लग गये। 


आँख खुली जब उसकी 

सपने उसके बिखर गये 

हाय बिधा ता तूने ऐसा 

कैसा कृत्य किया रे!!! 

--------बीना (अलीगढ़ी) 

🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁🌿🍁आज की मेरी रचना उन नन्हीं कलियों को समर्पित है जो गरीबी और धनाभाव के कारण अपनी छोटी छोटी खुशियों से महरूम हो जाती है...... आओ कुछ ऐसा जतन करें किसी एक कली की खुशियों का हम शबब बने तब शायद हो हमारी सच्चे अर्थों में दीवाली.....धन्यवाद 

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