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---मानवता मर रही - - -
अन्तर्मन सवाल कर रहा
मानवता क्यूँ मर रही
इंसा इंसान दुश्मन क्यों
जीवन इतना त्रस्त क्यों
अनमोल जो जीवन था
सस्ते दामों में बिक रहा
दिशाएं भ्रमित क्यों हुईं
--------------अन्तर्मन सवाल कर रहा।
पिता पुत्र सम्बन्ध निरर्थक
बेटी पिता से शर्मसार क्यों
घर घर को अब आग लगी
स्वंय ही फूँक रहा घर अपना
चिता स्वयं की सजा रहा
------------अन्तर्मन सवाल कर रहा।
सांझे चूल्हे क्यों टूट गये
खड़ी दीवारें मन के बीच
जीवन अस्तव्यस्त होता,
शायद कभी संभल जाता
टूटी सांसो का क्या होगा
-------------अन्तर्मन सवाल कर रहा।
होकर अहंकार में चूर
अपनो पर ही घात करे
किंचित समय नहीं पक्ष में
आत्मग्लानि भाव खो गये
रिश्ते चकनाचूर हो गये
-------------अन्तर्मन सवाल कर रहा।
लूट खसौट व्यभिचार
चारों ओर पनप रहा
तू पशुवत व्यवहार करे
शब्दों पर भारी है मौन
यक्ष प्रश्न कितने सारे
------------अन्तर्मन सवाल कर रहा।
---------बीना (अलीगढ़ी)
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