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मानवता मर रही

11 दिसम्बर 2015

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---मानवता मर रही - - - 


अन्तर्मन सवाल कर रहा 

मानवता क्यूँ मर रही


इंसा इंसान दुश्मन क्यों 

जीवन इतना त्रस्त क्यों 

अनमोल जो जीवन था 

सस्ते दामों में बिक रहा 

दिशाएं भ्रमित क्यों हुईं 

--------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। 


पिता पुत्र  सम्बन्ध निरर्थक 

बेटी पिता से शर्मसार क्यों 

घर घर को अब आग लगी 

स्वंय ही फूँक रहा घर अपना 

चिता स्वयं की सजा रहा 

------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। 


सांझे चूल्हे क्यों टूट गये 

खड़ी दीवारें मन के बीच 

जीवन अस्तव्यस्त होता, 

शायद कभी संभल जाता 

टूटी सांसो का क्या होगा 

-------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। 


होकर अहंकार में चूर 

अपनो पर ही घात करे 

किंचित समय नहीं पक्ष में 

आत्मग्लानि भाव खो गये 

रिश्ते चकनाचूर हो गये 

-------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। 


लूट खसौट व्यभिचार 

चारों ओर पनप रहा 

तू पशुवत व्यवहार करे 

शब्दों पर भारी है मौन 

यक्ष प्रश्न कितने सारे 

------------अन्तर्मन सवाल कर रहा। 


---------बीना (अलीगढ़ी) 

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