निहारता हूँ शून्य
काँच के पीछे सिमटतेहुए मन ही मनथिरक रहे अंतर केघुँघरूसमर्पण या ख़ौफ़ के शब्दोंमें निहारता हूँ शून्यनिरन्तर....निरन्तर... झरते शब्दों की हँसी निष्कासितनिस्पन्द हैदो पलों की छाया मेंनिहारता हूँ शून्यनिरन्तर....निरन्तर... अहं का लम्बा अंतरालअज्ञात दिशाओं में गुमसमझौता