अर्ज़ किया है..
कि निकल पड़ता हूँ अक्सर राहों में..
अपना बनाने,,,,मगरूर सभी तूफ़ानों को..!!
नशा मुझे अब सिर्फ़ मंज़िलों का है..
आग लगा दो गुस्ताख़ सभी मयखानों को..!!
याद है मुझे ज़िंदगी तेरी हर ठोकर..
भूला नहीं मैं,, तेरे उन सभी अहसानों को..!!
आज़मा ले मुझे तू अब हर शह में..
दे तकल्लुफ अब, अपने सभी पैमानों को..!!
अंत नहीं ये,, ये तो आगाज़ है मेरा..
अभी तो छूना है मुझे, ऊँचे आसमानों को..!!
खौफ़ नहीं मुझे, ज़रा भी अंजाम से..
ना डरा तू ऐसे, बेख़ौफ़ से हम परवानों को..!!
आज गुमनाम हूँ ज़माने में तो क्या..
ले जाऊँगा अर्श पर, मैं सभी अरमानों को..!!
ना मिट सकूँगा, वो इक फ़साना हूँ..
ढूंढोगे अल्फाज़ो में, तुम मेरे अफसानों को..!!
करेंगी नाज़ इक दिन तो नफ़रतें भी..
अपनों सा चाहा,,, सदा मैंने तो बेगानों को..!!
छोड़ जाऊँगा असर कुछ इस तरह..
रखोगे क़ायम लबों पर, सिर्फ़ मुस्कानों को..!!
हलचलें बहुत है ज़िंदगी की राहों में..
बामुश्किल संभाला है, सुकूं के मकानों को..!!
फकत रखना,, भ्रम बस चाहतों का..
कि कर देना माफ़, हर कुफ्र बदगुमानों को..!!
निकल पड़ता हूँ,,,,, अक्सर राहों में..
प्यार जताने,,,,,,,, मगरूर सभी इसांनो को..!!
नशा मुझे अब सिर्फ़ मंज़िलों का है..
आग लगा दो, गुस्ताख़ सभी मयखानों को..!!
@AryaVijaySaxena
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