मेरा गाँव
कविता
मेरा गाँव
भारत के नक्से में मेरा यह गाँव,
जैसे लंका की छाती पर अंगद का पाँव.
बस रूढियों और परंपराओं से,
चिपका है,हिलता नहीं.
हीले भी क्यों
जब कुछ मिलता नहीं.
यहाँ के इंशानों के लिए,
नये उद्योग,नई योजनाएँ,
सब बेकार हैं.
क्योंकि इन्हें
पुरानी चीज़ों से बहुत प्यार