आज दिन भर बहुत काम रहा । केस भी कुछ ज्यादा थे और कोर्ट भी कुछ सख्त रहीं । न चाहते हुए भी कुछ मामलों में बहस करनी पड़ी । वकील रामदास अपनी कुर्सी पर आकर बैठे ही थे और मोबाइल ऑन किया ही था कि घंटी बज गई । जैसे इंतजार ही कर रही थी कि कब ऑन हो और कब बजे । कोर्ट में मोबाइल स्विच ऑफ करना पड़ता है न । इसलिए उसे अब चालू किया था वकील रामदासने ।
मोबाइल सुनकर रामदास वकील के मुंह से अचानक निकला " क्या" ? जो कुछ उन्होंने सुना था, उसे सुनकर उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । उनके बचपन के और सबसे अच्छे दोस्त संपत राम का फोन था । संपत राम ने बताया था कि उनका पुत्र शिवम अब नहीं रहा । ब्रेन हैमरेज के कारण उसकी मौत हो गई है । इस समाचार को सुनकर वकील रामदास सब काम छोड़कर संपतराम के घर की ओर भागे ।
संपत राम के घर जाने पर उन्हें पता चला कि शिवम् बहुत तनाव में रहता था और अत्यधिक तनाव के कारण ही उसके दिमाग की नसें फट गई थीं । इसी कारण उसकी मृत्यु हो गई थी । बड़ा हृदय विदारक समाचार था और दिल दहलाने वाला मंजर ।
वकील रामदास को देखकर संपत राम भावुक हो गए और उनके कंधे पर सिर रखकर बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगे । वकील साहब ने उन्हें चुप कराने का कोई प्रयास नहीं किया । वे जानते थे कि ये गुबार जब तक बाहर नहीं निकलेगा इन्हें शांत नहीं रहने देगा । वकील रामदास संपत राम के सिर पर हाथ फिराते रहे ।
वकील रामदास को पुरानी घटनाएं याद आने लगीं । रामदास और संपतराम एक ही विद्यालय में एक ही कक्षा में पढ़ते थे । संपतराम और रामदास जल्दी ही अच्छे दोस्त बन गए । "दांत काटी रोटी" जैसी दोस्ती थी उनकी । साथ खेलते , साथ खाते पीते थे और साथ ही पढ़ते थे । अगर किसी एक पर कोई लड़का आक्रमण कर देता था तो झट से दूसरा आ जाता था उसकी सहायता करने । फिर दोनों मिलकर उसकी "चटनी" बना देते थे । उन दोनों की दोस्ती के किस्से मशहूर होने लगे थे विद्यालय में ।
वे अभी तीसरी कक्षा में ही थे कि एक दिन पता चला कि संपतराम की मां की मृत्यु हो गई है । हैजा ने उनकी जान ले ली थी । संपतराम के पिता तहसील में कानूनगो हुआ करते थे । अच्छा परिवार था । सब सुख साधन थे । पर संपतराम की मां के गुजर जाने से संपतराम और उसकी एक बहन का तो संसार ही उजड़ गया था । संपतराम आठ साल के थे और अनीता चार साल की । खूब रोये थे दोनों । रामदास भी साथ था । वह भी खूब रोया था । संपतराम की मां रामदास को भी बहुत प्यार करती थी । उसे भी बेटा ही मानती थी वह ।
संपतराम मां की मृत्यु के कारण पूरी तरह टूट गया था । अकेला अकेला रहने लगा था वह । किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता था । ना खाने में, ना पढ़ने में और ना खेलने में । हर वक्त खोया खोया सा रहता था वह । अनीता तो केवल चार साल की ही थी । वह एकदम से अनाथ जैसी हो गई थी । उन दोनों भाई बहन की हालत को ध्यान में रखकर संपतराम के पिता ने दूसरी शादी कर ली । नई मां आ गयी थी घर में । दोनों बच्चों की खुशियों को जैसे पंख लग गए थे ।
संपतराम उसे नई मां ही बोलता था । नई मां भी बहुत प्यार करती थी दोनों बच्चों को । यद्यपि वे सौतेले बच्चे थे लेकिन वह सगे बच्चों से भी अधिक प्यार करती थी । संपतराम वापस अपनी पुरानी लय में आ गया था । वह पुनः खिल उठा था । बच्चे तो बाग के फूल की तरह होते हैं । अगर माली उनका सही ध्यान रखे तो फूल हरदम खिलते रहते हैं अन्यथा उन्हें मुरझाने में कितनी देर लगती है ?
समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है , पता ही नहीं चलता है । तीन साल बाद संपतराम के एक छोटा भाई हुआ दौलतराम । घर में खूब मिठाइयां बंटी थी उस दिन । बहुत बड़ा उत्सव हुआ था । संपतराम को तो जैसे एक खिलौना मिल गया था खेलने के लिए । उसे किसी और को नहीं लेने देता था वह । खुद ही खिलाता रहता था अपने छोटे भाई को । छोटा भाई पाकर संपत निहाल हो गया था ।
समय अपनी गति से चलता रहता है । वह किसी के रोके नहीं रुकता है । ये अलग बात है कि कभी कभी हमें ऐसा लगता है कि समय पंख लगाकर उड़ रहा है तो कभी ऐसा लगता है कि जैसे समय एक जगह ठहर गया है , आगे बढ़ने का नाम ही नहीं लेता है । समय की गति हमारे अहसासों पर निर्भर करती है । यदि दिन सुख में गुजर रहे हैं तो वक्त का पता ही नहीं चलता है । वक्त पक्षी की तरह फुर्र से उड़ जाता है । लेकिन जब दिन दुख में गुजर रहे होते हैं तो एक एक पल बरसों के समान लगता है । वक्त काटे नहीं कटता है ।
संपतराम के दिन बड़ी तेजी के साथ कटने लगे । वह दसवीं कक्षा में आ गया था । उसके घर में उसकी एक बहन और आ गई थी । संपत अब थोड़ा थोड़ा समझने लगा था ।
नई मां का काम बहुत बढ गया था । चार चार बच्चों को संभालना कोई आसान काम है क्या ? एक दिन संपत की स्कूल की शर्ट धुली नहीं थी । वह गंदी ही पहन कर स्कूल जा रहा था । रामदास का मकान पास ही था । दोनों साथ साथ स्कूल जाते थे । दोनों दोस्त पैदल पैदल स्कूल जा रहे थे कि रास्ते में उनके पड़ोसी कैलाश ने उसे टोक दिया "अरे संपत ये क्या ? अरे, तेरी शर्ट तो बहुत गन्दी हो रही है रे । तेरी मां के पास धोने का टाइम नहीं है क्या ? अरे हां , ध्यान आया । उस बेचारी के पास तेरी शर्ट धोने का टाइम कहां होगा ? सारा टाइम तो वह अपने दोनों बच्चों की सेवा चाकरी में ही गुज़ार देती होगी । फिर तुम दोनों "सौतेले" भाई बहनों के कपड़े धोने के लिए वक्त कहां से होगा " ?
संपत और रामदास दोनों ही अवाक् रह गए थे यह सब सुनकर । संपत सब कुछ सुन सकता था पर अपनी नई मां की बुराई नहीं सुन सकता था । उसने तुरंत जवाब दिया " काका , ऐसी बात नहीं है । मां तो इसे धोना चाह रही थी पर मैंने ही मना कर दिया था । इतनी भी गंदी नहीं है न यह शर्ट" ?
बड़ी सफाई से उसने बात को संभाल लिया था । लोगों को इसमें मजा आता है कि घर घर में लड़ाई होती रहे । कभी सास बहू में , कभी भाई भाई में तो कभी पति-पत्नी में । लोगों को तो मजे लेने होते हैं । दूसरों को लड़ते देखकर कितना आनंद आता है न ? जैसे "मुर्गों" को लड़ाकर आनंद आता है । इसलिए लड़ाई का सामान वे खुद तैयार कर देते हैं । पड़ोसी ,भाई बंधु और रिश्तेदार बहुत शानदार भूमिका निभाते हैं लड़ाई करवाने में । अगर यह कहा जाये कि इनका मुख्य काम ही लड़ाई करवाना है तो कुछ गलत नहीं है ।
कैलाश ने संपत राम के दिमाग में एक कीड़ा घुसा ही दिया था "सौतेला" । उसने पहली बार सुना था यह शब्द । उसे याद आया कि वह वास्तव में सौतेला बेटा है, सगा नहीं । लेकिन नई मां ने तो कभी नहीं माना उसे सौतेला बेटा और कभी कहा भी नहीं । पर हकीकत तो यही है ना कि वह है तो सौतेला बेटा ही । इस सच से वह कैसे आंखें चुरा सकता था ।
उस दिन से उसके दिमाग में "सौतेला" शब्द घर कर गया । लोग भी गाहे बगाहे उसे याद दिलाते रहते थे कि वह नई मां का जायंदा पुत्र नहीं है बल्कि "सौतेला" पुत्र ही है । वह भी अब खुद को सौतेला ही मानने लगा था ।
एक दिन वह खेतों पर चला गया । काम करते करते थोड़ी देर हो गई इसलिए खेजड़ी के पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगा । इतने में पड़ोस के खेत वाली कमला काकी भी वहीं आ गई । उसने अपना खाना निकाल लिया । सामने संपत बैठा था इसलिए उससे पूछा " संपत , तू रोटी वोटी लाया है कि नहीं " ?
संपत सहज भाव से बोला "काकी , मैं तो टहलते टहलते आ गया था । थोड़ा काम करने लग गया तो देर हो गई इसलिए सुस्ताने बैठ गया । अच्छा अब मैं चलता हूं " संपत उठने को हुआ ।
शेष अगले अंक में
श्री हरि