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भाग : 9

19 सितम्बर 2022

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अगले दिन संपत गायत्री को लेकर पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में आ गया । उसे पता था कि एस पी अब क्या खेल खेलेगा । इससे पहले कि वह पुलिस महानिदेशक को कुछ उल्टा सीधा बताये , वह उन्हें सही बात बता देना चाहता था । 
पुलिस महानिदेशक ने उसे अपने चैंबर में बुला लिया । संपत ने सारी घटना जस की तस कह सुनाई । उसने वो टूटा बेलन भी डीजीपी साहब को दिखाया जो एस पी के सिर पर गायत्री ने मारा था । डीजीपी को इस घटना पर यकीन नहीं हुआ । कन्फर्म करने के लिए उसने अपने पी ए को एस पी से बात कराने के लिए कहा । थोड़ी देर में पी ए ने बताया कि "एस पी साहब ऑफिस में नहीं हैं । उनके पी ए ने बताया है कि कल रात वे अंधेरे में गिर पड़े थे इसलिए कुछ चोटें आ गयी हैं । अभी आराम कर रहे हैं" । डीजीपी को तसल्ली हो गई कि संपत सच कह रहा है । 

डीजीपी ने संपत से पूछा कि वह अब क्या चाहता है ? इस पर संपत ने कहा "एस पी साहब के नीचे अब काम नहीं कर पाऊंगा सर । वे मुझे अब रोज प्रताड़ित करेंगे । इसलिए मेरा निवेदन है कि मेरा ट्रांसफर और कहीं कर दिया जाये" । 

डीजीपी साहब कुछ देर सोचते रहे और अचानक अपनी सीट से उठ खड़े हुये । संपत को पीछे आने का इशारा करते हुए वे चैंबर से बाहर निकल आये और गाड़ी में बैठ गए । एक दूसरी गाड़ी में संपत और गायत्री को बैठने का और पीछे पीछे आने का इशारा किया और ड्राइवर को सी एम ओ चलने का आदेश दिया । संपत और गायत्री को लेकर वे अगले ही पल मुख्यमंत्री जी के सामने बैठे थे । 

सी एम ओ की सजावट देखकर संपत और गायत्री की आंखें फटी की फटी रह गईं । जनता के पैसों पर इतने "भव्य महल" की कल्पना नहीं की थी उन्होंने । गरीबी और गरीबों के वायदे कर सत्ता में आने वाले लोग सत्ता मिलते ही कैसे भोग विलास में डूब जाते हैं , यह अब समझ रहा था उन्हें । 

डीजीपी साहब ने सारी घटना मुख्य मंत्री जी को कह सुनाई । मुख्य मंत्री जी को भी यह सब जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ । एक एस पी इतना नीचे गिर सकता है, ऐसा सोच भी नहीं सकता है कोई । लेकिन ऐसे लोगों को सबक सिखाना भी जरूरी है,  ऐसा सोचकर उन्होंने तुरंत अपने प्रधान सचिव को फोन पर उस एस पी को ए पी ओ करने के आदेश सुना दिया । 

संपत को यह सब एक सपने जैसा लग रहा था । गायत्री तो समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर हो क्या रहा है ? इतने बड़े अधिकारी को भी पदस्थापन आदेशों की प्रतीक्षा में रखा जा सकता है, उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । शायद इतनी हिम्मत मातहत कर्मचारी दिखा नहीं पाते हैं जितनी संपत और गायत्री ने दिखाई थी इसलिएऐसे अधिकारी ऐसा दुस्साहसकर पाते हैं । पर ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई करने वाले ऐसे पुलिस महानिदेशक भी अब कहां होते हैं ? थाना इंचार्ज को तो तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था । 

अब संपत उस थाने का इंचार्ज बन गया । अब पूरे थाने की कमान उसके हाथ में आ गई थी । उसने अपराधों को खत्म करने का जैसे बीड़ा उठा लिया था। उसका एक ही काम था , अपराधियों पर लगाम कसने का , वही कर रहा था वह । थोड़े ही दिनों में एक एक करके सारे अपराधी या तो गिरफ्तार हो गये थे या वहां से भाग खड़े हुए थे । काम में इतना डूब गया था संपत कि कब दो साल पूरे हो गये, पता ही नहीं चला । 

एक दिन जब संपत ऑफिस से घर लौटा तो गायत्री बड़ी शरमाई सी लग रही थी । गायत्री एकदम छुइमुई की तरह नजर आ रही थी । संपत समझ नहीं पाया कि गायत्री आज ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है । संपत ने उसकी आंखों में देखना चाहा तो गायत्री ने शरमा कर अपने चेहरे पर पल्लू गिरा लिया । अब तो संपत की उत्सुकता और बढ गई थी ।
"क्या बात है गायत्री , आज क्या हो गया है तुम्हें" ? 
गायत्री चुप रही । 
"अरे, कुछ बताओ तो ? मैं दीवारों से बात कर रहा हूं क्या" ? संपत ने गायत्री का चेहरा अपनी ओर करते हुये कहा । 
गायत्री ने अपने दोनों हाथ लाज के कारण अपने चेहरे पर रख लिये । संपत संशय में पड़ गया कि आखिर माजरा क्या है ? 
गायत्री मन ही मन कह रही थी "वैसे तो अपने आपको बहुत तेज तर्रार, तीसमारखां मानते हैं । मगर अपनी पत्नी के दिल की बात भी पता नहीं कर सकते ? कैसे बुद्धूराम से पाला पड़ा है" ? पर वह कुछ बोल नहीं सकी । 
"अब बता भी दो गायत्री कि बात क्या है " ? संपत अधीर होकर बोला । 

गायत्री मुस्कुरा भर दी, कहा कुछ नहीं । अचानक संपत ने उसकी आंखों में देखते हुये अचंभे से कहा "अरे, कोई खुशखबरी है क्या" ? और वह उत्तेजित होकर गायत्री को बाहों में भरकर उठाने लगा । 
गायत्री उसे बरजते हुये बोली "ऐसे टाइम पर इतनी धींगा मस्ती नहीं करनी चाहिए जी" । और वह मुस्कुराते हुए उससे अलग हो गई । 
"ऐसे टाइम ? अच्छा जी , तो ये बात है । अरे, ये तो सबसे बड़ी खुशखबरी सुना दी है तुमने गायत्री । आज तो मैं धन्य हो गया हूं । मैं पापा बनने वाला हूं ना ? बोलो , बोलो" । संपत बच्चों की तरह मचलते हुए बोला । 

गायत्री ने मौन स्वीकृति दे दी । संपत की इच्छा हुई कि वह चिल्ला चिल्ला कर पूरे संसार को बता दे कि वह बाप बनने वाला है । उसने जोर से मुंह खोला ही था कि गायत्री ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया "ऐसी बात सबको नहीं बताते हैं जी । एक बार पहले डॉक्टर को दिखाकर कन्फर्म करते हैं फिर आप मां बाबूजी को बता देना बस । और किसी को नहीं" । 
"पर ऐसा क्यों गायत्री ? ये तो एक शुभ समाचार है , सबको बताने में क्या दिक्कत है" ? संपत ने चौंकते हुए कहा ।
"दुनिया बड़ी खराब है जी । सब लोग इतने उदार हृदय के नहीं हैं जो इस समाचार पर खुश हों । जलने वाले भी बहुत हैं यहां पर । कब कोई क्या कर बैठे, कौन जानता है ? इसके अलावा कब क्या घटना घट जाये, किसे क्या पता ? इसलिए हमें चुपचाप ही रहना चाहिए । वक्त आने पर सबको अपने आप पता चल ही जायेगा" । गायत्री ने हौले हौले उसे समझाते हुए कहा ।

संपत को गायत्री की बात सर्वथा उपयुक्त लगी । सुंदरता और बुद्धिमत्ता का इतना मेल कम ही स्त्रियों में देखने को मिलता है । संपत को आज लग रहा था कि वह दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान है । उसे लक्ष्मी, सरस्वती जैसी पत्नी जो मिली थी और आज तो उसे "पापा" बनने की खुशी भी महसूस हो रही थी । यह अहसास भी बड़ा खूबसूरत होता है । एक बच्चे के आने के अहसास से ही घर का माहौल एकदम बदल जाता है । संपत को अपना घर भी नया नया सा लगने लगा था । उसने खुशी के मारे गायत्री को अपनी मजबूत बांहों में कस लिया था और उसके माथे पर अपने प्यार की निशानी अंकित करते हुए उसे "थैंक्यू" बोल दिया । गायत्री भी संपत से बुरी तरह लिपट गई थी । दोनों के दिल की धड़कन गायत्री के गर्भ से सुनाई दे रही थी । 

श्री हरि 
19.9.22 

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रचनाएँ
सौतेला
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भाग 8

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