अगले दिन संपत ने घर पर ही डॉक्टर बुला लिया । डॉक्टर ने गायत्री का प्रेगनेन्सी टेस्ट किया और कन्फर्म कर दिया कि वह गर्भवती है । अब तो 'आस का दीपक' जल चुका था जिसकी लौ पूरे घर में उजाला कर रही थी ।
संपत ने चिठ्ठी लिखकर यह खुशखबरी अपने बाबूजी और मां को दी तो दोनों जने दौड़े दौड़े आये । फिर तो गायत्री को लंबी चौड़ी हिदायतें दी गईं और साथ में संपत को भी । गायत्री ने मां से विनती की कि वे थोड़े दिन वहीं रह जायें । नई मां को भी लगा कि उसे कुछ दिन गायत्री के पास रहना चाहिए । वह संपत के यहां रुक गई और बाबूजी वापस चले गये । दौलत को भेजकर अनीता को ससुराल से बुला लिया जिससे घर का काम आसानी से चल सके । सुमन अभी छोटी थी इसलिए सारी जिम्मेदारी उस पर छोड़ी नहीं जा सकती थी ।
गायत्री के घर से बाहर जाने पर रोक लग गई । खाने में भी परहेज होने लगे । हरी सब्जियों की मात्रा बढ गई और फलों की तो जैसे पूरी दुकान ही सज गई थी घर पर । लेकिन गायत्री को इन सबसे उबकाई आती थी । उसे तो कुछ खट्टा चाहिए था खाने को । वह चुपके से नीबू , आम का आचार खा लेती थी । एक दिन नई मां की निगाह पड़ गई । उस दिन संपत की खूब 'क्लास' लगी थी "बहू को इमली लेकर नहीं आ सकता है क्या ? कब तक लौकी तोरई खायेगी बेचारी । जा , बाजार से कुछ चटपटा लेकर आ" । नई मां ने मुस्कुरा कर गायत्री को देखा
नई मां की बातें सुनकर गायत्री हतप्रभ रह गई । उसे तो लगा था कि मां उसे डांटेंगी , मगर यहां पर तो डांट संपत को पड़ रही थी । कितनी बदल जाती हैं ये मांएं ? शादी से पहले तो बेटा बेटा करती रहती हैं लेकिन शादी के बाद बहू बहू करने लगती हैं । सास बहू का प्यार देखकर संपत निहाल हो गया था । मां यद्यपि सौतेली थी मगर प्यार सगी से भी बढकर करती थी ।
मां को आए हुए एक महीना हो गया था । उधर अनीता के ससुराल से भी अनीता का बुलावा आ गया था । घर को भी संभालना था इसलिए नई मां अपने गांव आ गई और अनीता ससुराल चली गई । गायत्री को घर काटने को दौड़ता था । जब तक मां थी , समय का पता ही नहीं चलता था । अब समय काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था । संपत को अपनी ड्यूटी से ही फुरसत नहीं थी । गर्भावस्था के दौरान नित नये अनुभव होते हैं और नित नई समस्याएं भी आती हैं । गायत्री किससे कहे ? संपत ने एक महिला कांस्टेबल घर पर रख ली थी । वह अनुभवी भी थी और गायत्री का ध्यान रखने वाली भी थी । गायत्री उसके साथ अपने सारे अनुभव शेयर कर लेती थी इससे उसका मन बहल जाता था ।
एक दिन गायत्री ने गांव के शिव मंदिर जाकर "सहस्र घट" पूजन करने की इच्छा जताई । संपत ने तुरंत पंडित जी को बुलाकर "सहस्र घट पूजन" कार्यक्रम के बारे में बताया और उसकी तैयारी करने को कहा तो पंडित जी ने पूजन सामग्री की एक सूची पकड़ा दी । संपत ने समस्त व्यवस्थाएं कर दीं । शिवजी का अभिषेक और पूजन संपन्न हो गया । गायत्री मन्नत का धागा भी बांधकर आ गई ।
रात में संपत ने कहा "क्या मन्नत मांगी है शिवजी से" ?
"हम क्यों बतायें ? लोग कहते हैं कि मांगी गई मन्नत के बारे में किसी को नहीं बताना चाहिए" ।
"लोग सही कहते हैं । पर हम क्या "किसी" में आते हैं" ? संपत ने तुरुप का इक्का चल दिया था । इसकी कोई काट गायत्री के पास नहीं थी । गायत्री ने बता दिया कि उसने शिवजी से एक नन्हा सा "संपत" मांगा है । वह बोली "पता है , उसका नाम भी सोच लिया है हमने"
"अच्छा जी । चुपके चुपके नाम भी सोच लिया ? हमसे पूछे बगैर ही" ?
"अब इसमें आपसे क्या पूछना ? आप और मैं कोई अलग अलग हैं क्या" ? अबकी बार गायत्री खेल कर गई ।
"हमें भी तो पता चले कि क्या नाम रखा है लाडले का"
"शिवजी का अभिषेक किया है और पूजा भी तो 'शिवम' नाम सोचा है । कैसा है" ?
"इससे बढिया नाम और हो ही नहीं सकता है । पर मेरी तो तमन्ना है कि आपके जैसी एक गुड़िया आये घर में और मैंने भी उसका नाम सोच लिया है"
"अच्छा ! क्या नाम सोचा है" ?
"गौरी । कैसा है" ?
"बहुत बढिया । तो यह तय रहा कि लड़का हुआ तो नाम शिवम और लड़की हुई तो गौरी । सही है ना" ?
"बिल्कुल सही है । अब सो जाओ । रात बहुत हो चुकी है" । और वे दोनों मीठे सपनों में खो जाते हैं ।
श्री हरि
21.9.22