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भाग 7

16 सितम्बर 2022

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संपत गायत्री को लेकर रामपुर आ गया । यही तो उसकी कर्मस्थली थी । पुलिस थाने के बगल में ही क्वार्टर्स बने हुये थे । थाने का समस्त स्टॉफ उन्हीं क्वार्टर्स में रहता था । भीड़ लग गई थी संपत के घर में । सभी पुलिस वालों की बीवियां,  उनकी मांएं और बहनें गायत्री को देखने आ गयीं थीं । इतने सारे लोगों को देखकर गायत्री भी एकदम से सकपका गई थी लेकिन उसने जल्दी ही खुद को संभाल लिया था । 
घर बहुत दिनों से बंद था इसलिए गंदा था । संपत ने दो पुलिस के जवान लगा दिये साफ सफाई के लिये । ऐसे गंदे घर में संपत गायत्री को कैसे लेकर जाये ? एक पुलिस वाले की मां ने समस्या हल कर दी । कहा "जब तक घर साफ हो तब तक बहुरिया को हमारे घर में बैठा दो । थोड़ी सी चांदनी हमारे घर को भी नसीब हो जायेगी इससे । साहब के घर तो अब रोज ही पूनम का चांद निकला करेगा" । उसकी इस बात पर सब महिलाएं खिलखिला कर हंस पड़ी । संपत भी झेंप गया और गायत्री शरमा कर सिमट सी गई । 

आनन फानन में गायत्री को कमला चाची के घर ले जाया गया । उसके लिए और संपत के लिए दो कुर्सियां आंगन में लगा दी गईं । घर की सभी औरतें गायत्री की सेवा में लग गईं । कोई पानी लाती तो कोई मिठाई, नमकीन वगैरह । कमला चाची ने तो अपनी आंख की कोर से थोड़ा सा काजल लेकर गायत्री के ललाट पर काला टीका लगा दिया और वह उसकी  नजर उतारने लगी "मेरी बेटी को किसी की नजर ना लग जाये , भगवान दोनों की जोड़ी जुग जुग बनाए रखना" ।

सभी औरतों का इतना स्नेह देखकर संपत भाव विभोर हो गया । गायत्री भी उन सबसे जल्दी ही घुलमिल गईं । बच्चों और स्त्रियों की यही विशेषता होती है कि वे अपनी "बिरादरी" में बहुत जल्दी घुलमिल मिल जाते हैं । पुलिस वालों की बीवियां गायत्री को क्वार्टर दिखाने के बहाने घर के अंदर ले गईं और उससे तरह तरह की छेड़खानियां करने लगीं । कुछ औरतें संपत की तरफ हो गईं तो कुछ गायत्री की तरफ । एक औरत कहने लगी 
"हमारे साहब के तो भाग खुल गये । कोहिनूर मिला है उनको" 
दूसरी औरत बोली "हां ये बात तो सही है । मगर हमारे साहब भी कुछ कम नहीं हैं । राजकुमार लगते हैं" 
पहली "बहू का कोई जवाब नहीं है" 
दूसरी "तो साहब कौन से कम हैं ? कितनी लड़कियां मरती हैं साहब पर" ? 
पहली "तुझे क्या पता" ? 
इस प्रश्न पर वह औरत फंस गई । अब वो कैसे बताए कि वो भी पसंद करती है साहब को ? बस इतना ही बोली वह "मैंने औरतों को बातें करते सुना था, इसलिए पता है" । 

यह छेड़खानी कुछ देर और चलती मगर यह सूचना आ गई कि घर साफ हो गया है । संपत और गायत्री को उनके घर  छोड़ने के लिए सब औरतें साथ साथ चलने लगीं । गायत्री इस मधुर व्यवहार से उन सबकी कायल हो गई थी । 

घर पर आकर गायत्री ने देखा कि घर का सारा सामान अस्त व्यस्त पड़ा हुआ है । वह उसे ठीक करने में लग गई । औरतों की यह विशेषता होती है कि वे तुरंत अपने काम में लग जाती हैं । संपत भी अपनी ड्यूटी पर चला गया । 

इंचार्ज साहब से मिलने संपत जब ऑफिस पहुंचा तब उनके चैंबर में भीड़ लगी हुई थी । मालूम हुआ कि दो दलित बहनों की लाशें एक पेड़ से लटकी हुई पाई गई हैं । पूरा मौहल्ला उमड़ पड़ा था थाने पर । हर कोई आदमी पुलिस पर सवाल उठा रहा था । इंचार्ज साहब उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे । संपत को देखकर इंचार्ज साहब ने कहा "थानेदार जी आ गये हैं । अब ये ही इस केस की तफ्तीश करेंगे । सारी घटना इन्हें बता दो" । 

और संपत उस केस की जानकारी लेने लगा । अपनी जांच टीम लेकर संपत मौके पर गया । लाशों के विभिन्न ऐंगलों से फोटो खिंचवाये और उन्हें पेड़ से नीचे उतरवाया । लोगों ने दो तीन चारपाई डाल दी  जिन पर संपत और दूसरे मौजीज लोग बैठ गये और लिखा पढी होने लगी । 

लड़कियों की मां ने बताया कि बड़ी लड़की सत्रह साल की थी और छोटी लड़की पंद्रह साल की थी । एक मोटरसाइकिल पर दो लड़के आये और वे दोनों लड़कियों को जबरन उठाकर ले गये । उनके नाम जुनैद और सुहेल हैं । जंगल में दोनों लड़कियों के साथ उन्होंने खोटा काम किया फिर दोनों को मार दिया और आत्महत्या का रूप देने के लिए उन्हें पेड़ से लटका दिया । 

घटना बहुत वीभत्स थी, दिल दहला देने वाली थी , आक्रोशित करने वाली थी । संपत ने घटना की नजाकत देखते हुए मुस्तैदी के साथ अपना काम आरंभ कर दिया । सबसे पहले पंचनामा बनाया गया । दो जवानों को बयान लिखने को बैठा दिया गया और एंबुलेंस बुलाकर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिये मोर्चरी में ले जाया गया । पोस्टमार्टम के लिये एक बोर्ड का गठन किया गया । लड़कियों के अंतर्वस्त्रों पर लगे वीर्य के सैंपल लिये गये । यह कहना मुश्किल था कि उनके साथ उन दोनों हैवानों ने ही दुष्कर्म किया था या और भी लोग इस वहशी कार्य में साथ थे ? यह तो फोरेंसिक रिपोर्ट आने पर ही पता चल सकता था । 

इस पूरी कवायद में रात के ग्यारह बज गये थे । संपत भूखा प्यासा घर पहुंचा । गायत्री उसका इंतजार कर रही थी ।
"बहुत देर लगा दी, जी" 
"केस ही ऐसा था । अभी फ्री हुआ हूं" 
"जी, आप हाथ मुंह धो लीजिए,  मैं अभी खाना लगा देती हूं" । 
"सुनो, तुमने खा लिया क्या" ? 
गायत्री चुप रही । संपत समझ गया कि गायत्री भी अब तक भूखी है । वह कहने लगा "ऐसा करो , पूरा खाना बना लो, साथ ही खायेंगे" 
"आपको भूख लग रही होगी जी, पहले आप गरम गरम खाना खा लीजिए न , हम बाद में खा लेंगे" । गायत्री खाना बनाते बनाते बोली 

संपत गायत्री के एकदम पीछे आ गया और कमर में हाथ डालकर बोला "हम तो साथ ही खायेंगे" 
"छोड़ो ना, ये क्या कर रहे हो ? रोटी जल जायेगी" ? 
"जल जाने दो । यहां दिल भी तो जल रहा है । जले दिल को जली रोटियां मिलेंगी तो बड़ा मजा आयेगा" 
"आपको तो हमेशा आशिकी ही सूझती है । देखो, ऐसा मत करो ना, प्लीज" 
"क्यों ? ऐसा करने से क्या होता है" ? 
"जो होता है उसे हम बता नहीं सकते हैं जी । बस, आपसे प्रार्थना करते हैं कि प्लीज, हमें छोड़ दीजिए । हम ऐसे खाना नहीं बना सकते हैं" 
"तो मत बनाओ , हम बना देते हैं" । और यह कहकर संपत ने गायत्री के हाथ से बेलन ले लिया 
"आप बनाओगे खाना ? हमारे रहते हुए ? फिर हमें यहां काहे को लेकर आए हो ? अनीता जीजी से तो कह रहे थे कि नौकरी करूं या खाना बनाऊं ? और यहां साहब खाना बनाने की बात कर रहे हैं । चलो अब जल्दी से बैठो और खाना खा लो" । गायत्री ने हक वाले अंदाज में कहा 
"अजी हम भी पुलिस वाले हैं । आपको शायद पता नहीं है कि पुलिस वाले कितने ढीठ होते हैं । वे जो चाहते हैं करके ही रहते हैं" । और संपत ने गायत्री को दोनों बांहों में उठाया और एक कुर्सी पर बैठा दिया । खुद बेलन लेकर रोटियां बनाने लगा 
"आज हमारी भी पाक कला के दर्शन हो जाएंगे मोहतरमा को" । हंसते हुए वह बोला 
"सच्ची में आप बहुत जिद्दी हैं । अनीता जीजी ठीक ही कह रही थीं" 
"अच्छा ! और क्या क्या कह रही थी वह छिछूंदरी" । शरारत से भरा हुआ था संपत 
"देखो जी, आप हमें कुछ भी कह लो पर हमारी जीजी को कुछ नहीं कहना । वो हम पर जान छिड़कती हैं" । 
"और हम" ? संपत ने सीधे उसकी आंखों में झांककर कहा । इस पर गायत्री एकदम से झेंप गई और चुप रह गई । 

चूंकि यहां नई मां नहीं थी इसलिए यहां संपत की दादागिरी चल निकली । दोनों ने साथ खाना खाया । रात के एक बज गये थे । उनका हनीमून काल था वह । दोनों एक दूसरे की बांहों में समा गये । 

घर के दरवाजे पर खट खट की आवाज के साथ ही उन दोनों की नींद खुली । संपत ने दरवाजा खोला तो देखा सामने श्यामा भाभी खड़ी थी । ASI राजेश की पत्नी । राजेश की शादी को अभी एक साल भी नहीं हुआ था । 
"अरे भाभी आप ! सुबह सुबह इतनी जल्दी ? कोई विशेष बात है क्या" ? संपत उबासी लेते हुए बोला 
"सुबह सुबह नहीं , आठ बज गये हैं । लो मैं नाश्ता लेकर आई हूं , दोनों खा लेना" । और श्यामा भाभी ने संपत को गरम गरम जलेबी, पकौड़े, खमण के साथ चाय का थरमस पकड़ा दिया । 
"अरे भाभी, इसकी क्या जरूरत थी" ? 
"जरूरत कैसे नहीं है साहब, सुबह सुबह कैसे बनाएंगी मेमसाहब, नाश्ता ? इसलिए मैं ये ले आई । आपको पता है साहब" ? 
"क्या" ? 
"जब मैं भी पहली बार इस घर में आई थी, तब मेरी पड़ोसन मेरे लिए भी ऐसा ही नाश्ता लेकर आई थी । तो मैं भी पड़ोसी धर्म तो निभाऊंगी ना ? क्यों सही है ना साहब" ? 
"एकदम सही है भाभी । आइए, अंदर आइए न" 
"अरे नहीं साहब । मैं यहां दाल भात में मूसल चंद बनने नहीं आई हूं" । और वह भाग गई । 

अंदर गायत्री यह सब सुन रही थी । पुलिस वालों का आपस में प्यार देखकर वह अभिभूत हो गई । संपत कहने लगा "पुलिस वालों की अपनी अलग ही दुनिया होती है । आम जनता से तो वे घुलते मिलते नहीं हैं इसलिए अपनी छोटी सी दुनिया में ही मस्त रहते हैं । काम का इतना प्रेशर होता है कि अपने बीवी बच्चों को भी टाइम नहीं दे पाते हैं । इसलिए पुलिस वालों के बीवी बच्चे एक दूसरे का बहुत खयाल रखते हैं" । 
"जी, वो तो मैं कल से ही देख रही हूं । अब ऐसा करो , जल्दी से फ्रेश होकर आ जाओ , आपके लिए मैं नाश्ता लगा देती हूं" 
"और आप" ? 
"मैं बाद में कर लूंगी" 
"ना जी ना । हम जिएंगे तो साथ और मरेंगे तो साथ । इसलिए खाएंगे भी साथ और पीएंगे भी साथ" । संपत उसके अधरों का रस पीने के लिये नीचे झुका तो गायत्री ने उसे रोक दिया 
"क्यों रोका" ? 
"छि : , अभी तो हमने ब्रश भी नहीं किया है" 
"तो क्या हुआ ? हमने कौन सा किया है ? चलो हम 'किस' से ही ब्रश करते हैं 
"आप तो बड़े खराब हो जी । हम अभी ब्रश करके आते हैं" । 
संपत की जिंदगी कितनी बदल गई थी । बेदर्द सी दिखने वाली दुनिया कितनी हसीन लगने लगी थी उसे । जैसे जमाने के सारे रंग भर गये हों उसकी जिंदगी में । खुशियों को जैसे पर लग गये हों और वे उन्मुक्त गगन में उड़ती चली जा रही हों । ख्वाब से भी सुंदर लगने लगी थी जिंदगी । लोग स्वर्ग के बारे में बात करते हैं मगर स्वर्ग किसी ने देखा है क्या ? संपत जो जिंदगी जी रहा था इन दिनों , वह जिंदगी स्वर्ग से कम है क्या ? संपत जो पहले अपने भाग्य को कोसा करता था अब अपने भाग्य पर इठलाने लगा था । जब मन में खुशियों की गंगा बहने लगती है तो यह जहां क्षीरसागर सा लगने लगता है और घर बैकुंठ धाम जैसा । 

श्री हरि 
16.9.22 

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