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भाग 6

15 सितम्बर 2022

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गायत्री नहा धोकर रसोई में आ गई । नई मां उसे रसोई में देखकर हतप्रभ रह गई । "अरे बहू, तुम यहां रसोई में क्यों आई हो ? अभी तो तुम्हें आराम करना चाहिए । जाओ और जाकर आराम करो । मैं अभी नाश्ता तैयार करती हूं" । 
"नहीं मां जी , आज से मैं ही नाश्ता, खाना वगैरह बनाऊंगी । आप तो बस इतना बता दीजिए कि नाश्ते में बनाना क्या है" ? 
"नहीं बेटा , अभी तो तुम दुल्हन हो । आज तो तुम्हारा पहला ही दिन है और आज से रसोई ?  थोड़े दिन तो दुल्हन बनी रहो कम से कम । बाद में तो यह सब करना ही है । जाओ, मैं और अनीता कर लेंगे ये सब" । 
"हां भाभी , अम्मा सही कहती हैं । आपको आज ही रसोई में नहीं आना चाहिए । अभी तो आप मेहमान हैं और आज ही आप रसोई में आ गईं !  सब लोग क्या कहेंगे कि आखिर सास ननद ने अपना असली रूप दिखा ही दिया पहले ही दिन" ? 
"लोगों का क्या है जीजी ? लोग तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं । करो तो भी कुछ कहते हैं और ना करो तो भी बहुत कुछ कहते हैं । इसलिए उनकी परवाह न करके जो अपने करने योग्य काम हैं उन्हें करना चाहिए । आप तो मेरी जीजी हो न ? अब आप ही मेरी कुछ सहायता करो और मुझे यह बताते जाओ कि कौन सा सामान कहां रखा है । बाकी मैं सब संभाल लूंगी" । 

गायत्री के आगे नई मां और अनीता की एक ना चली । नई मां को बड़ा अच्छा लग रहा था कि बहू बड़ी जिम्मेदार और परिपक्व मिली है साथ ही संस्कारी भी है । बहू अगर संस्कारी मिल जाए तो समझो सात पीढियां सुधर जाएं और बहू अगर अहंकारी मिल जाए तो समझो साल भर में ही परिवार बिखर जाए । घर को एक रखने में सबसे बड़ा योगदान औरतों का ही होता है । वे चाहें तो इसे स्वर्ग बना दें और वे चाहें तो इसे नर्क बना दें । स्वर्ग और नर्क का रास्ता घर की औरतें ही तय करती हैं । मर्दों को तो औरतों के बनाये हुए रास्ते पर ही जाना होता है । इसके लिए संस्कारों का होना बहुत जरूरी है पर अब संस्कारों का जमाना कहां रहा है ?  इस आधुनिकता ने चाहे और कुछ किया हो या ना किया हो  मगर परिवारों को तोड़कर अवश्य रख दिया है । 

नई मां गायत्री और अनीता को नाश्ते के बारे में बताकर चली गई । दोनों ननद भौजाई मिलकर नाश्ता बनाने लगीं । रात की बात को लेकर अनीता गायत्री को छेड़ने लगी । गायत्री सिर झुकाये मंद मंद मुस्कुराती रही, बोली कुछ नहीं । अनीता कहने लगी "आप चाहे होठों से कुछ ना बोलो मगर आपका चेहरा सब कुछ बोल रहा है, भाभी" 
"अच्छा ! आपको चेहरा भी पढना आता है क्या "? गायत्री हंसते हुए बोली 
"हां आता है । उसे ही तो पढकर बता रही हूं" । अनीता फुल मस्ती में थी 
"अच्छा , क्या लिखा है मेरे चेहरे में" ? 
अनीता उसे गौर से देखकर बोली "रात भैया ने बहुत तंग किया है । बोलो सच है ना" ? 

इस पर गायत्री जोर से हंस पड़ी । वह कैसे बताये कि उसके भैया तो उसकी गोदी में सिर रखकर सो गये थे ? बात संभालते हुए वह बोली "सच में आप तो चेहरा पढने वाली एक्सपर्ट लग रही हैं जीजी । और क्या लिखा है" ? 
"सारा चेहरा मुझसे ही पढ़वा लोगी क्या ? और वो भी मुफ्त में" ? 
दोनों जनी हंसी मजाक करते करते काम भी कर रही थीं ।  गायत्री रसोई में एक मंझी हुई खिलाड़ी नजर आ रही थी जबकि अनीता उसके सामने फिसड्डी साबित हो रही थी । गायत्री के इस व्यवहार और उसकी सिद्धहस्तता ने नई मां और अनीता के मन में और भी दृढ धारणा बना दी कि गायत्री इस घर के लिए सर्वथा उपयुक्त चुनाव है । 

एक दिन पगफेरा की रस्म हुई । गायत्री मायके आ गयी । पगफेरा की रस्म के बाद गायत्री पुन: ससुराल आ गई । संपत की छुट्टियां खत्म हो रही थी । उसे आज ही ड्यूटी पर जाना था । वह चाहता था कि गायत्री उसके साथ चले मगर वह यह बात नई मां से कैसे कहे ? आखिर में उसने अनीता का सहारा लेना उचित समझा । एकांत देखकर उसने अनीता से कहा 
"ऐ अनीता , मेरा एक छोटा सा काम करेगी क्या" ? 
अनीता ने संपत की ओर देखा और उसका चेहरा पढने लगी कि वह उससे कौन सा काम कराना चाहता है ? चेहरा पढने की दक्षता का प्रमाण पत्र तो वह गायत्री से ले ही चुकी थी इसलिए उसे इस कला पर अब अभिमान भी हो चला था । 
"अब ऐसे आंखें फाड़ फाड़कर क्या देख रही है ? जिंदा ही निगल जाएगी क्या" ? संपत शैतानी पर उतर आया । 
"तुमको मुझसे काम करवाना है या नहीं" ? थोड़ा रुष्ट होते हुए अनीता बोली 
"करवाना है बाबा करवाना है । एक तेरा ही तो आसरा है" संपत चिरौरी करने लगा ।
"तो ऐसे काम निकलवाए जाते हैं क्या" ? 
"फिर कैसे निकलवाए जाते हैं" ? ढीठता से संपत ने कहा 
"हमारी शान में कुछ कसीदे पढो । हमारी लल्लो चप्पो करो । हमारे आगे पीछे डोलो,  कुछ मनुहार करो । तब जाकर सोचेंगे कि आपका काम करना चाहिए या नहीं" अनीता ने शरारत से कहा 
"अरे मेरी अम्मा , तू कहे तो तेरे पैर दबा दूं ,चंपी कर दूं या जो तू कहे वो सब कर दूं । बता , तू क्या चाहती है" ? संपत उसके पैरों में लेटकर बोला 
"आ गये ना लाइन पर । अब ठीक है । अपना काम बताइए " । 
"नई मां से सिफारिश कर दे ना कि मैं अपने साथ गायत्री को ले जाऊं । देख वहां पर मुझे ही खाना बनाना पड़ता है । पुलिस के जवानों को खाना बनाना तो आता है नहीं , इसलिए मैं खुद ही खाना बनाता हूं । अब खाना बनाऊं या नौकरी करूं ? दोनों काम तो नहीं हो सकते हैं ना एकसाथ ?  तू अगर मेरी सिफारिश करेगी तो नई मां मान जाएगी" । संपत एक ही सांस में कह गया सब कुछ । 
"अच्छा जी तो ये बात है । भाभी के बिना मन नहीं लगेगा जनाब का । लगता है कि एक ही दिन में जादू कर दिया है भाभी ने सब पर । जिसे देखो वही गीत गा रहा है भाभी के । भई देखो, हम सिफारिश तो कर देंगे मगर मेहनताना देना होगा" 
"बोल कौन सी जागीर करूं तेरे नाम " ? संपत ने अनीता के सिर पर एक हल्की सी चपत लगाकर पूछा । 
"वो अभी उधार रही । बाद में वसूल कर लूंगी । पक्का" ? 
"एकदम पक्का" और अनीता वहां से चली गई । 

थोड़ी देर बाद जब संपत अपनी अटैची लगा रहा था तो नई मां उसके पास आई और कहने लगी "आज जा रहा है क्या" ? 
"जी" 
"पर ये एक ही अटैची क्यों ? दो चार दिन में ही वापस आने वाला है क्या " ? 
"नहीं तो । ऐसा क्यों पूछ रही हो" ? 
"इतनी सी अटैची में दोनों के कपड़े कितने आएंगे" ? 
"दोनों के ? पर जा तो मैं अकेला ही रहा हूं" 
"क्यों , बहू को साथ नहीं ले जा रहा है क्या" ? 
"आपकी आज्ञा के बिना कैसे लेकर जाऊंगा उसे" ?
"जा मैंने आज्ञा दे दी । अब तो खुश" ? नई मां ने मुस्कुराते हुए कहा । 

खुशी के मारे संपत ने नई मां को गोदी में उठा लिया और घर के कई चक्कर काट लिए । 
"अरे गिरायेगा क्या मुझे कमबख्त" ? 
"हिप हिप हुर्रे।  हिप हिप हुर्रे " । 

गायत्री यह सब देख रही थी । जब संपत उसके पास आया तब उसने कहा "यहां मां बाबूजी को छोड़कर जाना अच्छा लगेगा क्या" ? 
"क्यों ? अब तो नई मां ने भी हरी झंडी दे दी है । अब क्या परेशानी है" ? 
"नहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है । मैं ऐसे कैसे चल सकती हूं" ? 
"हमारा तो कोई ध्यान ही नहीं है ? बस केवल मां बाबूजी का ही ध्यान है तुम्हें ? तुम्हें क्या पता कि मैं अकेले कैसे रहूंगा वहां" ? 
"अब तक भी तो अकेले ही रहते थे , अब भी रह लेना" गुलाबी हंसी हंसते हुये गायत्री बोली और वहां से भाग गई  । 
नई मां गायत्री से बोली "बहू, तुम जाने की तैयारी करो । संपत के साथ जाना है तुम्हें" 
"आपको और बाबूजी को छोड़कर कैसे जा सकती हूं मांजी" ? 
"हमारी चिंता मत कर बेटी । हमारे पास तो अनीता है, दौलत है और सुमन भी है । संपत वहां निपट अकेला है । अब तेरे बिना उसका मन भी नहीं लगता है ना । जाओ, दोनों हिलमिल कर रहना वहां पर" 
"पर मां जी ..." 
"अब पर वर कुछ नहीं । ये मेरा आदेश है । समझी" नई मां का स्वर कठोर हो गया था । 

संपत बरामदे में खड़ा खड़ा ये सब सुन रहा था । नई मां कितना ध्यान रखती हैं उसका । अब तक उसने खामख्वाह माहौल खराब कर रखा था घर का । वह भी लोगों की बातों में आकर । उसे नई मां पर बहुत प्यार आ रहा था । 

श्री हरि 
15.9.22 

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