गायत्री का नौवां महीना पूरा हो गया था और किसी भी दिन नन्हा मेहमान आ सकता था । नई मां भी आ गई थी । ऐसे समय पर बड़े बुजुर्ग की जरूरत रहती है । बड़े बुजुर्ग पास में होने से ढाढस सा मिलता है और सिर पर किसी का हाथ सा महसूस होता है । गायत्री और नई मां के बीच ट्यूनिंग बड़ी शानदार थी । गायत्री उनका बहुत सम्मान करती थी और नई मां भी गायत्री का पूरा ध्यान रखती थी ।
घर के कामकाज के लिये अनीता को बुलवा लिया गया । उन दिनों "जच्चा" की मां को बुलवाने का कोई रिवाज नहीं था । पहली बात तो यह थी कि परिवार संयुक्त ही होते थे इसलिए उनकी आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी । दूसरी बात यह थी कि बेटी के घर पर मां बाप का जाना लगभग वर्जित सा था । बस आकर मिल जाओ, इतना ही हुआ करता था । यह शायद इसलिए हो कि बेटी जल्दी से जल्दी ससुराल में घुलमिल जाये । अब तो मांएं 24 घंटे बेटी से फोन से जुड़ी रहती हैं । बेटी सारा ज्ञान सासूजी के बजाय मां से ही लेती है इसलिए वह कभी भी अपना जुड़ाव ससुराल से नहीं कर पाती है और धीरे धीरे वह अलग थलग महसूस करती है ।
अनीता ने घर का सारा मोर्चा संभाल रखा था और नई मां ने गायत्री को । रोजाना शाम को मंगल गान गाती थीं तीनों औरतें । आस पड़ोस की औरतें भी आ जाती थीं और सब मिलकर "जच्चा" गाती थीं । बाल कृष्ण के गीत गाये जाते थे । घर का वातावरण बड़ा भक्तिमय हो गया था । घर के माहौल का बहुत असर होता है जच्चा और बच्चा पर । घर में यदि तनाव है तो जच्चा भी तनाव में रहेगी और बच्चा भी अपंग या मंद बुद्धि हो सकता है । नई मां , अनीता और संपत सब मिलकर गायत्री को प्रसन्न रख रहे थे ।
आखिर वह दिन आ ही गया जिसका सबको इंतजार था । गायत्री को अस्पताल ले जाया गया । नई मां साथ में गई । नर्स ने संपत को बताया कि बेटा हुआ है । संपत खुशी से फूला नहीं समाया । ईश्वर की कृपा है । वह चाहे तो बेटा दे और वह चाहे तो बेटी दे । बेटा नारायण का स्वरूप होता है और बेटी लक्ष्मी स्वरूपा । सामान्य प्रसूति होने के कारण ऑपरेशन की जरूरत हो नहीं पड़ी ।
नामकरण तो पहले ही हो चुका था । गायत्री ने उसका नाम शिवम पहले ही रख दिया था । शिवम था भी बहुत सुंदर और हृष्ट-पुष्ट । नई मां ने अपनी आंख के काजल से शिवम के माथे पर ढिठौना लगा दिया था कि कहीं किसी की नजर ना लग जाये । सब कुछ अच्छे से हो जाने पर सबने भगवान को बहुत बहुत धन्यावाद दिया और जच्चा बच्चा को लेकर घर पर आ गये ।
एकांत मिलते ही संपत ने गायत्री को बांहों में भर कर कहा "थैंक्स गायत्री , मुझे पापा बनाने के लिए" । गायत्री भी संपत के चौड़े सीने में खुद को समाते हुए बोली "आपने भी तो मुझे मां बनने का गौरव प्रदान किया है । अब तक मैं एक अधूरी सी नारी थी , आपने मुझे पूर्ण नारी बनाकर मेरा सौभाग्य बढा दिया है । आज मैं अपने आपको दुनिया की सबसे सुखी औरत मानती हूं । आप जैसा पति, मां से बढकर प्यार करने वाली सास, बहन की तरह व्यवहार करने वाली ननद और शिवम जैसा पुत्र पाकर कौन अपने सौभाग्य पर नहीं इतरायेगी ? कभी कभी तो डर लगता है कि कहीं हमारी खुशियों को जमाने की नजर ना लग जाये" । गायत्री ने अपनी चिंता भी जता दी थी ।
"ईश्वर हम पर मेहरबान है गायत्री , फिर कोई क्या कर लेगा ? फिर हमने कोई बुरे कर्म तो किये नहीं हैं जिनके फल भोगने पड़ें । मां बाबूजी का आशीर्वाद भी तो हमारे साथ है फिर हमें क्या चिंता" ?
"आप कहते हैं तो सही ही कहते होंगे । पर मुझे कभी कभी डर सा लगता है । आप हमारा साथ कभी नहीं छोड़ना । हमसे वादा कीजिए"
"अरे, ये क्या ? मैं कहीं भागा जा रहा हूं क्या" ?
"नहीं, हम कुछ नहीं जानते । आप वादा करिये कि आप हमारा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे" । और वह संपत से बुरी तरह लिपट गई । संपत भी उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराने लगा "अच्छा , हम वादा करते हैं कि हम आपसे कभी अलग नहीं होंगे । अब तो खुश" ?
और गायत्री के होठों पर एक मुस्कान तैर गई ।
श्री हरि
23.9.22