भैरवनाथ का अंत कैसे हुआ…
एक गरीब ब्राह्मण, जिसका नाम श्रीधर पंडित था। वह बहुत ईमानदार और मेहनती था। अपनी कुटिया में परिवार के साथ रहता था।
एक दिन वह ऐसे ही बाहर पहाड़ों पर घूमने निकला तो, माता वेष्णो, एक छोटी सी कन्या का रूप धारण कर उसके सामने प्रकट हुई...💐 और कहने लगी की, हे! श्रीधर पंडित मैं एक विशाल भंडारे का आयोजन करना चाहती हूं, तुम पूरे गांव में विशाल भंडारे का निमंत्रण दे दो…
और हां दूर पर्वत पर भैरवनाथ तपस्या कर रहे और वहां गुरु गोरखनाथ अपने चेलों सहित पधारे हुए है। उन्हें निमंत्रण जरूर देकर आना… इतना कहते ही कन्या अदृश्य हो गई…
श्रीधर सोचने लगे कि, यह कन्या कौन थी…? जरूर कोई चमत्कारिक शक्ति होगी... मैं भंडारे का निमंत्रण दे देता हूं। लेकिन फिर वे सोचने लगे कि अगर कन्या ने भंडारे का आयोजन नहीं किया तो, मेरी बहुत बड़ी बदनामी हो जाएगी।
श्रीधर ने अंतिम निर्णय लेते हुए सोचा कि जो होगा देखा जाएगा, निमंत्रण दे देते है। उसने पूरे गांव में निमंत्रण दे दिया। सभी गांव वालो को कह दिया कि हमारे घर विशाल भंडारे का आयोजन... और अंत में जहां भैरवनाथ तपस्या कर रहे थे, वहां पर पहुंचकर गुरु गोरखनाथ और भैरव नाथ को विशाल भंडारे का निमंत्रण दिया… तो...
भैरवनाथ बहुत तेज हंसते हुए😊 कहने लगे कि, है! श्रीधर पंडित क्या तू पागल हो गया है। हमें तो राजा इंद्र भी भरपेट भोजन ना खिला सका। अंत मे उसने हमसे माफी मांगी, तो तेरी क्या औकात है। हमे विशाल भंडारे का निमंत्रण देकर बहुत बड़ी गलती कर रहे हो…
श्रीधर ने उस कन्या की सारी कहानी भैरवनाथ को बता दी और कहा कि हे! नाथ मैं जानता हूं कि, मैं इतना बड़ा विशाल भंडारा नहीं कर सकता। लेकिन उस कन्या का यही आदेश है…
भैरवनाथ ने हंसते हुए कहा कि, वाह श्रीधर पंडित खूब कही एक छोटी सी कन्या पूरे गांव का और नाथ पंथ का भंडारा करेगी..
गुरु गोरखनाथ ने भैरव को समझाते हुए कहा कि, हे! भैरवनाथ किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। अगर श्रीधर पंडित ने हमें भंडारे का निमंत्रण दिया है तो, हमें भंडारे में अवश्य जाना चाहिए।
हे! श्रीधर पंडित सुनो, आप भंडारे का आयोजन करो हम भंडारे में अवश्य पधारेंगे। गुरु गोरखनाथ के मुख से यह शब्द सुनकर श्रीधर पंडित अपनी कुटिया में वापस आ जाते है। भैरव नाथ गुरु गोरखनाथ से क्षमा मांग कर भंडारे में जाने के लिए कह देते है।
जैसे-जैसे भंडारे का समय नजदीक आ रहा था। वैसे वैसे श्रीधर की चिंता और गहराती जा रही थी। उस कन्या का कहीं अता पता नहीं था।
भंडारे का समय और तिथि वाले दिन श्रीधर मंदिर में माथा टेक कर रोने लगा। हे वैष्णो माता अगर भंडारा नहीं हुआ तो मेरी तो समाज में नाक ही कट जाएगी और गुरु गोरख नाथ व भैरवनाथ तो पूरे गांव को जलाकर भस्म ही कर देंगे। अब मैं क्या करूं…? भंडारे की सामग्री अभी तक तैयार भी नहीं हुई है और गांव वालों ने आना शुरू कर दिया है।
तभी श्रीधर आंखें खोलकर देखते है कि, सामने एक छोटी सी कन्या खड़ी है। जिसके चेहरे पर बहुत भयंकर तेज है। वह श्रीधर से कहती है कि, हे! श्रीधर पंडित तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं अभी 5 मिनट में भंडारे का सामन तैयार करती हूं। आप गांव वालों को भंडारा खाने के लिए बोल दो। इतना सुनते ही श्रीधर के चेहरे पर खुशी की लहर आ गई और वह खुशी-खुशी गांव वालों को भंडारा खाने के लिए कह देता है।
गांव वाले भंडारा खा ही रहे होते हैं कि, महायोगी गुरु गोरखनाथ, भैरवनाथ के साथ आ पहुंचते है और भंडारे का आयोजन देख हैरान रह जाते है।
सभी नाथ पंथ भंडारा खाना शुरू करते है। तभी भैरवनाथ के अंदर उस कन्या के बारे में जानने की इच्छा उत्पन्न होती है और फिर वे बहुत सारा खाना खाने के बाद भी जब कन्या को परेशान ना कर सके तो कन्या से कहते है कि, हे! कन्या मुझे मेरी इच्छा का खाना चाहिए…? कन्या कहती है कि, बोलिए महायोगी आपको क्या चाहिए। यहां सब कुछ उपलब्ध है। भैरवनाथ ने कहा कि, हे! कन्या मुझे मांस मदिरा का भोजन दे… तब उस कन्या ने कहा कि, हे! नाथ यह सिर्फ वैष्णो भंडारा है और यहां आपको वैष्णव खाना ही मिलेगा। वैष्णव खाने में चाहे आप कुछ भी मांग सकते है।
इतना सुनते ही भैरवनाथ कहते है कि, नहीं मुझे मांस मदिरा का ही भोजन चाहिए। कन्या मना कर वापस जाने लगती है। इतने में भैरवनाथ कन्या का हाथ पकड़ लेते है और कहते हैं कि हे! कन्या मैं तुम्हारी असलियत जाने बिना यहां से नहीं जाऊंगा। हाथ पकड़ते ही कन्या अदृश्य हो जाती है।
भैरवनाथ हैरान! रह जाते है और गुरु गोरख नाथ की तरफ देखते हुए कहते है कि, हे! गुरु गोरखनाथ मुझे आज्ञा दो मैं इस कन्या का पता लगाना चाहता हूं। यह मायावी शक्ति कौन है…?
गोरखनाथ कहते हैं कि हे! शिष्य भैरव बेवजह की जिद मत करो यह तुम्हारे लिए भारी पड़ सकता है। भैरवनाथ, नहीं गोरख नाथ मैं महायोगी भैरव हूं। मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। आप सिर्फ आज्ञा दो बाकी मेरे ऊपर छोड़ दो…
गोरखनाथ कहते हैं कि, हे! भैरव आपकी यही जिद है तो जाओ आप का कल्याण हो।
वह वैष्णव नामक कन्या वहां से अदृश्य होकर त्रिकूट पर्वत में एक गुफा के अंदर जा पहुंचती है और गुफा के बाहर हनुमान जी को पहरे पर लगा देती है और कहती है कि, हे! लांगुर वीर ध्यान रहे अंदर कोई आने ना पाए। हनुमान जी कहते है ठीक है माता मेरे प्राण रहते कोई अंदर नहीं आ सकता।
भैरवनाथ उस कन्या का पीछा करते-करते त्रिकूट पर्वत पर पहुंच जाते हैं और हनुमान जी से गुफा के अंदर जाने की जिद करते है।
भैरवनाथ के सर पर खून सवार था। वह तो सिर्फ कन्या के बारे में जानना चाहते थे। वह हनुमान से भिड़ गए। हनुमान और भैरव नाथ में भयंकर युद्ध होने लगा। यह सब वैष्णव अंदर से देख रही थी।
हनुमान जी को युद्ध में हारता हुआ देख वैष्णव गुफा से बाहर आई और भैरवनाथ से बोली कि, हे! भैरवनाथ तुम यहां से चले जाओ यही तुम्हारे लिए उचित होगा।
भैरवनाथ ने कहा कि हे! कन्या मैं तुम्हारी असलियत जाने बिना यहां से नहीं जाऊंगा। उचित और अनुचित का तो प्रश्न ही नहीं उठता। मेरा नाम भैरवनाथ है। मैं ऐसे ही हार मानने वाला नहीं हूं।
फिर क्या था…? भैरवनाथ और वैष्णो में युद्ध शुरू हो गया। भयंकर युद्ध होने के बाद वैष्णव ने भैरवनाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया। जो त्रिकूट पर्वत से 3 किलोमीटर दूर भैरव घाटी में जा गिरा।
सिर धड़ से अलग होने के बाद भी भैरवनाथ अपनी मायावी शक्तियों से अपने गुरु महायोगी गोरखनाथ को याद करते है। तभी गोरखनाथ वहा प्रकट होते है और कहते है कि! हे भैरवनाथ यह सब कैसे हुआ…? भैरवनाथ सारी कहानी बता देते है।
तब गोरखनाथ भैरव को वैष्णो के पास लेकर जाते है। भैरव को वैष्णव के बारे में सब कुछ बता कर कहते हैं कि, हे! भैरव यही विधि का विधान था। आप चाहो तो वैष्णो आपको जीवनदान दे सकती है।
भैरवनाथ कहते है कि, नहीं गोरखनाथ मुझे जीवन दान नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ इस कलंक से छुटकारा चाहिए। आने वाली दुनिया यह ना कहे कि भैरवनाथ ने एक कन्या का पीछा किया।
तब गुरु गोरखनाथ वैष्णव से कहते हैं कि हे! माता वैष्णो भैरवनाथ को क्षमा कर दो। फिर वैष्णव भैरवनाथ को क्षमादान देकर कहती है कि, हे! भैरवनाथ आने वाली दुनिया आपको कलंकित नहीं कहेगी। कलयुग में त्रिकूट पर्वत पर मेरा एक बहुत भव्य मंदिर होगा। जहां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होंगी।
जहां आपका सर गिरा है वह भैरव घाटी के नाम से प्रसिद्ध होगा और जो श्रद्धालु हमारे मंदिर में आएगा उसका भैरव घाटी में जाना अनिवार्य होगा तभी भक्त की मनोकामनाएं पूरी होंगी।
जहां त्रिकूट पर्वत की गुफा में माता वैष्णो रुकी थी। वहां पर वैष्णो देवी धाम है और वहां से ऊपर 3 किलोमीटर दूर जहां भैरवनाथ का सिर गिरा था वहां भैरव नाथ का मंदिर है। वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद बाबा भैरव नाथ के दर्शन करना अनिवार्य है। अन्यथा यात्रा पूरी नहीं मानी जाती।
महायोगी भैरवनाथ बहुत बड़े योगी, तांत्रिक व मायावी थे और उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आता था। शायद इसीलिए कलयुग आने से पहले ही विधि के विधान में भैरवनाथ का अंत लिखा था।