भूमिका:-
प्रस्तुत कविता में जीवन के विभिन्न रूपों व पारिस्थितियों को, समय के माध्यम से समेटने की कोशिश रही है। साथ ही पाठक को यह दर्शाने का प्रयास
है कि नकारात्मक हालात जीवन का ही अंग हैं,
अतः इनसे चिंतित न हो। अंत तक मानसिकता को
सकारात्मक बनाए रखने की कोशिश ही एक दिन सफलता दिलाएगी।
VIMAL KISHORE हर पल, हलचल, बहता चलता, चलते-चलते
ही राह जोहर पल, हलचल
कुछ शांत, कुछ शोर मचाता हुआ,
धीमे-धीमे
ही सरकता सा,
कुछ नए
संदीप जलाता हुआ,
सीधी-सीधी
सी लगती है,
छोटी सी
जलन जो लगती थी,
अब
चिंगारी सी सुलगती है,
कुच-बंद
दीवारों में जीना,
या फिर
छोटी सी कश्ती जो
न आदि
मिले न अंत मिले,
इक अथाह
साग़र में खिसकती जो,
तिल-तिल
करके जो चले कोल्हू,
इक ही
क्रिया, वही परिक्रमा,
कुछ अर्थ
लिए, सामर्थ्य लिए,
कभी जुड़
जाना, कभी बिखरना।
गिरता, संभलता सा पहिया,
चलना है, बस चलते रहना,
हो कौन
धुरी, हो कौन डगर,
अनजानी
राहों पर संभलना,
कल तक
संकट, मुश्किल थी जो,
कुछ
अनुभव, कुछ यादें ही तो हैं,
पहले जो
पहलू रहे कभी,
सिफ़र में
शेष बातें ही तो हैं।
तस्वीरों
में रुकता-चलता,
कब बदलती
तस्वीरें हैं,
यों ही
इक दिन, अगले ही पल,
कब बदलती
तक़दीरें हैं।
अब चलना
है, तब चलना है,
हर इक
तस्वीर में ढलना है,
कुछ सहना
है, कुछ बहना है,
बस यूँ
ही तैरते रहना है,
कभी बंजर
से, कभी हरियाले,
इस जीवन के रूप निराले।
धीमे ही
सही पर चलता है,
जीवन का रूप
बदलता है,
कभी
घनघोर अंधेरा,
तो कभी
रोशनी फैलता हुआ।
हर पल, हलचल, बहता चलता,
कुछ शांत, कुछ शोर मचाता हुआ,
धीमे-धीमे
ही सरकता सा,
कुछ नए
संदीप जलाता हुआ,
हर पल, हलचल।