जून 1975, इंदिरा गांधी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद बतौर सांसद अयोग्य ठहरा दी गई थीं. जयप्रकाश नारायण सम्पूर्ण क्रांति का नारा दे रहे थे. लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि घिरी हुई सरकार आपातकाल जैसा कदम उठा लेगी. 25 जून की रात उस समय विपक्ष का चेहरा रहे चंद्रशेखर नेपाल के नेता बीपी कोइराला के साथ कनॉट प्लेस के रिवोली सिनेमा में फिल्म देखकर निकल रहे थे. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गिफ्तार करने वाला पुलिस अफसर नरम दिल का था. उसने चंद्रशेखर को आधे घंटे का समय दिया ताकि वो गिरफ्तार होने से पहले जरूरी फोन कर सकें. जिस समय चंद्रशेखर फोन कर रहे थे. वहां बैठी एक टेलीफोन ऑपरेटर उनकी बात ध्यान से सुन रही थी. वो मजदूर संगठन से जुड़ी हुई थी. उसने तुरंत ओडिशा के गोपालपुर फोन किया और वहां छुट्टी मानाने गए जॉर्ज फर्नांडिस को आपातकाल लगने की सूचना दी. पुलिस के पहुंचने के कुछ ही मिनट पहले जॉर्ज फर्नाडिस वहां से मछुआरे के भेष में फरार होने में कामयाब रहे.
कुछ ही दिनों में जॉर्ज ने लंबी दाढ़ी बढ़ा ली. वो सिख के भेष में कभी तमिलनाडु, कभी गुजरात तो कभी बिहार जाते रहे. जॉर्ज को छोड़कर विपक्ष के लगभग सभी नेता जेल में थे. जेल से बाहर जॉर्ज इंदिरा गांधी सरकार के विरोध में कुछ धमाकेदार करने की सोच रहे थे. बड़ौदा में इंदिरा गांधी की सभा होनी थी. जॉर्ज ने अपने कुछ साथियों के साथ योजना बनाई कि इंदिरा गांधी की सभा के ठीक पास सार्वजनिक टॉयलेट में डायनामाइट से धमाका किया जाए. इसके लिए उन्होंने कुछ डायनामाइट भी जुटा लिए थे. वो इस कारनामे को अंजाम दे पाते, इससे पहले बिहार में उनके कुछ साथी पकड़े गए. मुकदमा कायम हुआ. जॉर्ज बड़ौदा डायनामाइट केस में मुख्य आरोपी बनाए गए.
जॉर्ज एक सिख के भेष में कलकत्ता के सेंट पॉल केथेड्रल में छुपे हुए थे. कलकत्ता के एक सीनियर पुलिस अधिकारी को उन पर शक हो गया. उन्होंने सरदार खुशवंत सिंह उर्फ़ जॉर्ज फर्नांडिस के साथ दोस्ती गांठी. एक दिन आपसी बातचीत में उन्होंने जॉर्ज से मराठी में कुछ पूछा. जॉर्ज ने तपाक से मराठी में जवाब दिया. इस तरह लंबे समय तक इंदिरा सरकार की आंख में धूल झोंकने के बाद जॉर्ज धर लिए गए. उस पुलिस अधिकारी को ऊपर से मौखिक आदेश मिला कि जॉर्ज को गोली मार दी जाए. पुलिस अधिकारी ने जवाब में कहा कि उन्हें ये आदेश लिखित में चाहिए. जॉर्ज फर्नांडिस की जान बच गई. उन्हें दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया.
जॉर्ज की जान तो बच गई थी, लेकिन कोई भी वकील डर के मारे उनका केस लेने के लिए तैयार नहीं था. उस समय सुषमा स्वराज की उम्र महज 24 साल थी. चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई पढ़ने के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते महज 2 साल का वक़्त बीता था. अभी उनकी और स्वराज कौशल की शादी नहीं हुई थी. दोनों नौजवान वकील तीस हजारी कोर्ट में जॉर्ज के बचाव में पेश हुए.
जेल में बैठे आदमी का प्रचार
मार्च 1977 में आपातकाल में ढील दी गई. राजनीतिक बंदियों को छोड़ा गया. नए सिरे से चुनाव की घोषणा की गई.लेकिन जॉर्ज पर क्रिमिनल मुकदमा चल रहा था. लिहाजा वो जेल में ही रहे. अब तक जॉर्ज फर्नांडिस दक्षिण बॉम्बे की सीट से चुनाव लड़ते आए थे. लेकिन जेपी की सलाह पर 1977 के चुनाव में उन्होंने मैदान बदल लिया. मुजफ्फरपुर से मैदान में उतरे. जेल में थे तो खुद परचा दाखिल नहीं कर सकते थे. उनका परचा दाखिल करने के लिए दो महिलाएं मुजफ्फरपुर पहुंची. पहली, उनकी बीवी लैला कबीर और दूसरी 25 साल की वकील सुषमा स्वराज.
इस चुनाव में जॉर्ज जेल में थे और उनका प्रचार उनकी एक तस्वीर के जरिए किया जा रहा था. तस्वीर जिसमें जॉर्ज के हाथ में हथकड़ी पड़ी थी. तीस हजारी अदालत के बाहर खिंची गई यह तस्वीर आपातकाल के दौरान इंदिरा के विरोध का प्रतीक बन गई थी. सुषमा यही तस्वीर हाथ में लेकर मुजफ्फरपुर की गलियों में घुमती दिखाई दीं. यही वो दौर था जब उनका सबका मुजफ्फरपुर के बदनाम पते से हुए. नाम था चतुर्भुज स्थान. यह मुजफ्फरपुर का रेड लाइट एरिया था. बाद के दौर में सुषमा ने यहां काम करने वाली के पुनर्वास के लिए कई प्रयास किए.