दाम्पत्येभिरुचिहेतमायैव व्यावहारके। स्त्रीत्वे पुंस्तवे च हि रितर्विप्रत्वे सूत्रमेव हि।।
अर्थात-कलियुग में पुरूष और स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे में रुचि के अनुसार साथ-साथ रहेंगे। यानी कि लिव इन में रहेंगे। मनमुताबिक महिला के संपर्क में रहेंगे जब मनभर जाएगा तो दूसरे को अपना लेंगे। और कई ऐसी विसंगतियां कलयुक में देखने को मिल सकती है।
बता दें कि, श्रीमद्भागवत महापुराण हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ की रचना आज से लगभग 5000 वर्ष से 1000 साल पहले मानी गई है। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि कलियुग में क्या-क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी इस पुराण में पहले कर दी गई थी।
अर्थ: कलियुग में पुरुष और स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे में रुचि के अनुसार साथ-साथ रहेंगे। व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। पहले के समय में जो ब्राह्मण रहते थे। वो अपने शरीर पर बहुत कुछ धारण करते थे पर कलयुग में वे लोग सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे।
2. दाक्ष्यम कुटुम्बभरणं यशाड्थे धर्मसेवनम्। एवं प्रजाभिर्दुभिराकीर्णो क्षितिमंडले।।
अर्थ: धर्म-कर्म के काम केवल लोगों के सामने अच्छा दिखने और दिखावे के लिए किए जाएगे। पृथ्वी भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी और लोग सत्ता हासिल करने के लिए एक दूसरे को मारेंगे।
3. क्षित्तृड्भ्या व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्चया। त्रिंशद्विंशतिवर्षाणि परमायु: कलौ नृणाम।।
अर्थ: लोग भूख-प्यार और कई तरह की चिंताओं के दुखी रहेंगे। कई तरह की बीमारियां उन्हें हर समय घेरे रहेंगे। कलियुग में मनुष्यों की उम्र केवल बीस या तीस वर्ष की होगी।
अर्थ: धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन-ब-दिन घटती जाएगी।
5. वित्तमेव कलौ नृणां जन्माचारगुणोदय:। धर्मन्यायव्यवस्थायां कारणं बलमेव हि।।
अर्थ: कलियुग में जिस व्यक्ति के पास जितना धन होगा वो उतना ही गुणी माना जाएगा और कानून, न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर लागू किया जाएगा।
6. लिड्गमेवाक्षमख्यातावनेयोन्यापत्तिकारणम। अवृत्ताया न्यायदौर्बल्यं पाडिण्त्ये चापलं वच:।।
अर्थ: जो मनुष्य घूस देने या धन खर्च करने में असमर्थ होगा, उसे अदालतों से ठीक-ठीक न्याय न मिल सकेगा। जो व्यक्ति बहुत चालाक और स्वाथीज़् होगा वो इस युग में बहुत विद्वान माना जाएगा ।
अर्थ: इस युग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा वो अधमीज़्, अपवित्र और बेकार माना जाएगा। विवाह दो लोगों के बीच बस एक समझौता बनकर रह जाएगा और लोग बस स्नान करके समझेंगे की वो अंतरआत्मा से भी साफ सुथरे हो गए है ।
8. दरे वार्ययनं तीर्थ लावण्यं केशधारणम। उदरंभरता स्वार्थ सत्य्त्वे धाष्टर्यमेव हि।।
अर्थ: लोग दूर के नदी-तालाबों को तो तीथज़् मानेंगे, लेकिन अपने पास रह रहे माता-पिता की निंदा करेंगे। सिर पर बड़े-बड़े बाल रखना ही सुंदरता मानी जाएगी और केवल पेट भरना ही लोगों का लक्ष्य हो जाएगा।
9. अनावृष्टया व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्या। शीतवीतीवपप्रावृड्हिमैरन्योन्यत: प्रजा:।।
अर्थ: कभी बारिश न होगी, सूखा पड़ जाएगा। कभी कड़ाके की सदीज़् पड़ेगी तो कभी भीषण गमीज़् हो जाएगी। कभी आंधी आएगी तो कभी बाढ़ आ जाएगी। इन परिस्थितियों से लोग परेशान होंगे और नष्ट होते जाएंगे।
10. आत्छित्रदारद्रविणा याय्स्त्र्ति गिरिकाननम। छााकमूलामिषाक्षौद्रफलपुष्पाष्टिभोजना:।।
अर्थ: अकाल और अत्याधिक करों के कारण परेशान होकर लोग घर छोड़-कर सड़कों और पहाड़ों पर रहने को मजबूर हो जाएंगे, साथ ही पत्ते, जड़, मांस, जंगली शहद, फल, फूल और बीज खाने को मजबूर हो जाएंगे।