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रिश्तों की बुनियाद अंतिम क़िश्त

20 मार्च 2022

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( रिश्तों की बुनियाद )  अंतिम क़िश्त 

इनके चेहरे पर हल्की फुल्की चोट लगी है ।  डॉ . गुप्ता ने बाबा के जख्म को अच्छे से जांच करके कहा कि धाव कुछ गहरे हैं । टांका लगाना पड़ेगा ।  घाव दाढ़ी के अंदर है अतः दाढ़ी उतारनी पड़ेगी  । फिर डा गुप्ता ने बाबा जी से उनका नाम पूछा तो बाबा ने कहा मेरा नाम चेतन है । ये नाम सुनकर प्रदीप जी चौंक गये और ध्यान से बाबा के चेहरे को देखने लगे । डाक्टर गुप्ता ने पता नहीं क्या सोचकर प्रदीप जी को भी अपने साथ ओटी के भीतर ले गये । ओटी के भीतर प्रदीप जी ने जब दाढी उतरने के बाद बाबा जी का चेहरा देखा तो उनकी आंखों से आंसू निकल आये । वे तुरंत पहचान गये कि ये तो मेरे सिरसा वाले समधी चेतन जी हैं । डाक्टर गुप्ता के द्वारा टांका लगाकर जब चेतन जी को ओटी से बाहर लाया गया तो प्रदीप जी ने तुरंत उनका पैर छूते हुए कहा चेतन जी आपकी नज़रें कमज़ोर हैं इसलिये आप हमें शायद पहचान नहीं पा रहे हैं । मैं  आपका इलाहाबाद वाला समधी हूं । ये सुनकर चेतन जी की आखें डबडबा गई । वे कुछ कह नहीं पाये । उन्हें शायद समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अपने जज्बात का इज़हार कैसे करूं । घर पहुंचते ही प्रदीप जी ने जोर से आवाज देकर कहा बेटी आभा देखो मैं किन्हें घर लेकर आया हूं । आभा व उसकी मम्मी दोनों लगभग एक साथ ड्राइंग रूम में आये । दोनों ने एक ही नज़र में चेतन जी को पहचान लिया । आभा तो रोते रोते चेतन जी के पैरों पर झुक कर कहने लगी । बाबूजी मैंने शायद बहुत बड़ा पाप किया है कि आप लोगों को छोड़कर बिना बताये यहां चली आई । जबकि आपकी सेवा करना मेरा भी धर्म था आपके सुख सुविधा का खयाल रखना मेरा कर्तव्य था । फिर आप तो पुण्यात्मा हैं , आपने गांगा की तट पर एक अबला नारी को गुंडों से बचाने अपनी जान की बाज़ी लगा थी । उस समय तक मैं तो आपके लिये एक अन्जान नारी ही थी ।  जवाब में चेतन जी ने कहा नहीं बेटी अबला नारी की रक्षा करना हर पुरूष का प्रथम कर्तव्य होना चाहिये । मैं तो सिर्फ अपना धर्म निभा रहा था । साथ हो तुम्हें माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं । इस सारे वाक़ियात में अजय की गलती ज्यादा थी। तुम तो एक प्रकार से भुक्तभोगी थी अतः तुम्हारा गुस्सा होना जायज ही कहलायेगा । आभा बिल्कुल खामोश खड़ी रही पर उसकी आंखें भीग गई थी । उसके चेहरे से सहमति का भाव प्रकट हो रहा था । अचानक ही आभा को अपने बच्चे की याद आई तो वो दहाड़ मारकर रोने लगी । हाय मेरा लाल कहां होगा । किसी दुष्ट के हाथों पड़ गया होगा तो पता नहीं वो उसके साथ क्या करेगा ? तब प्रदीप जी ने तू  चिन्ता न कर कुंभ के कारण आजकल पोलिस भी मुस्तैद है । कोई वारदात करने की हिम्मत करेगा भी तो जल्द ही पकड़ में आयेगा ही । दो घंटे बाद बस स्टैंड थाना से खबर आ गई कि एक व्यक्ति को हमने शंका के आधार पर डिटेन किया है । उस व्यक्ति के पास एक चार साल का बच्चा है और वह व्यक्ति कह रहा है कि उसे यह बच्चा मेले में रोते हुए अकेले मिला है । वे चारों तुरंत ही बस स्टैंड थाना पहुंच गये और वहां जो कुछ देखा तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक गये । उनका ही बच्चा उस व्यक्ति की गोद में रहा था । अजय का चेहरा उस समय दीवार की तरफ था । अजय को अचानक ऐसा लगा कि कुछ लोग अभी अभी पोलिस स्टेशन आये हैं तो वह उत्सुकता वश मुड़ कर उनको देखने लगा । उन सबको देखते ही वो खुशी से उछल पड़ा । सबसे पहला चेहरा जो अजय की आंखों के सामने आया वह तो उनके पिताजी श्री चेतन जी का था । जिसके लिए अजय चिंतित भी था । अपने पिता जी को देखने के बाद अजय की नज़र आभा व उनके माता पिता पर पड़ी तो उसके चेहरे में आश्चर्य के साथ साथ ख़ुशी के भाव भी दिखनेलगे । इस बीच गोद में  बैठे बच्चे की आंख खुल गई और वह सामने आभा को देख मम्मी मम्मी कर उसकी गोद में जाने को उछलने लगा । तब अजय को यह समझ आ गया  कि यह बच्चा तो मेरा ही बच्चा है । इस बीच आभा आगे बढ़ कर अजय से माफी मांगने लगी । अजय ने तुरंत ही उसे गले से लगा लिया । और कहने लगा हमारे बीच मनभेद पैदा होने के पीछे तो तुम्हारे प्रति मेरा व्यवहार हो था । तुम्हारी कोई गलती नहीं थी । फिर वे सब आंसू पोछ कर हंसने लगे ।
 उधर अस्पताल में विनोद की तबीयत तेजी से सुधर रही थी । पांचवे दिन डाक्टर ने कहा कि जल्द आपकी  छुट्टी हो जायेगी । इन पांच दिनों में साधू और साध्वी उसे रोज़ देखने आते थे ।  जिस दिन विनोद की छुट्टी होने वाली थी उस दिन भी दोनों सुबह आये और आशीर्वाद देकर चले गये । विनोद और तेजस्वनी दोनों अस्पताल से जाने से पहले अपना सामान समेटने लगे । अचानक विनोद को एक सोने की हार गिरा दिखा फ़र्श पर । हार में एक लाकेट था । जिस पर लिखा था * धरती मां तुझे प्रणाम *। ये देखते ही उसके होश गुम हो गये , आंखों में आंसू आ गये । उसने तुरंत ही बुलाकर पूछा कि आज मुझसे मिलने कौन कौन आये थे । तेजस्वनी ने कहा आज तो सिर्फ वे साधु और साध्वी ही मिलने आये थे जिन्होंने मुझे और तुम्हें बचाया था , यह सुन विनोद फफक फफक कर रोते हुए कहने लगा अरे पगली वे दोनों ही मेरे माता पिता हैं  । 2 साल उनसे दूर रहने और बाल उतरवा कर साथ - साध्वी का भेष धारण करने के कारण हमने उन्हें पहचाना नहीं  । दोनों आटो लेकर उस कुटिया के आगे पहुंच गये जहां उनके माता पिता रहते थे , उनके माता पिता कुटिया के बाहर ही बैठे थे , विनोद और तेजस्वनी उनके पैरों पर गिर गये और लगभग रोते हुए बोले बाबूजी व माता जी हमें माफ़ कर दो , हमारी आंखों पे पर्दा पड़ गया था । हम आपसे माफी मांगते हुए आप लोगों को ससम्मान सिरसा ले जाने आये हैं ।जहां तक सिरसा जाने की बात है अभी तो हम नहीं जा पायेंगे पर वहां बाद में आयेंगे जरूर और ये भी वचन देते हैं कि हर वर्ष हम 15 दिनों के लिये सिरसा जरूर आयेंगे । जाओ तुम सब सिरसा में खुशी खुशी रहो । सबसे मिल जुल कर रहो । जाओ मां गंगा से सच्चे दिल से पुत्र का वरदान मांगो साथ ही ये वादा करो कि हर वर्ष उनके दर्शन करने एक बार यहां जरूर आओगे । मां गंगा तुम्हारी मुराद जरूर पूरी करेगी विनोद और तेजस्वनी के सर झुक गये और दोनों ने विनोद की माता पिता से आशीर्वाद लिये और और रेलवे स्टेशन की ओर रवाना हो गये । 
सिरसा का वातावरण पिछले पांच वर्षों में अमूल - चूल बदल गया है । -अजय व तेजस्वनी विनोद का परिवार वहां खुशी खुशी रह  रहा है । अजय के पिता जी अधिकांश समय अपने पोते के साथ खेलते रहते हैं । उनका पोता भी अब अपने मम्मी - पापा से ज्यादा प्यार अपने दादा से करता है । उधर अजय फिर खेती के काम को बड़े ही लगन से करता है ।
वहीं  विनोद व तेजस्वनी के परिवार में मां गंगा की कृपा से एक बालक का प्रसाद मिल गया है । आजकल सिरसा के बड़े तालाब में हर शाम गंगा पूजा होती है । जिसमें अजय या विनोद मुखिया बनते हैं । साल में कम से कम एक बार दोनों परिवार मां गंगा को प्रणाम करने इलाहाबाद जरूर जाते हैं । सिरसा का हर परिवार इलाहाबाद जाने के लिए उत्सुक रहता है व वहां जाने के नाम से खुश हो जाता है ।
 आज फिर सिरसा के स्कूल के मैदान में दो बसें लगी हैं । यहां से सगभग 100 लोग इलाहाबाद जा रहे हैं । एक बस की अगुवाई विनोद कर का है और दूसरे बस की अजय कर रहा है । इलाहाबाद में सबको ठहराने और खाने पीने की जिम्मेदारी आभा के मां बाप व विनोद के माता पिता कर उठा रहे हैं । उन चारों को इंतजार है कि कब सिरसा की दोनों बसें इलाहाबाद की सीमा में प्रवेश करती हैं । ..

( समाप्त )
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रिश्तों की बुनियाद कहानी
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