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रिश्तों की बुनियाद ( कहानी प्रथम क़िश्त )

17 मार्च 2022

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**रिश्तों की बुनियाद **   (कहानी प्रथम क़िश्त)  

         दुर्ग धमधा के बीच एक छोटा सा गांव है सिरसा । आबादी वा मुश्किल दस हजार होगी । भौतिक सुविधाओं के नाम से वो सारी चीजें उपलब्ध हैं । अजय वर्मा उसी गांव में पला बढ़ा एक एक ग्रेडुवेट नौजवान किसान है । अपने परिवार में वह अकेला लड़का है । उनके परिवार के पास 20 एकड़ खेती की ज़मीन है । जिससे वे सालाना 5 से 6 लाख रुपये कमा लेते हैं । उनकी माता अरुन्धति वर्मा 55 वर्ष की हो गई हैं और पिता श्री चेतन वर्मा जी की लगभग उम्र 60 वर्ष होगी । अजय अब 27 वर्ष का हो गया है और इलाहाबाद के वर्मा परिवार की सुपुत्री आभा वर्मा से उसकी शादी की बात चल रही है । आभा वर्मा के पिता श्री प्रदीप वर्मा जी इलाहाबाद कोआपरेटीव बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। दोनों तरफ़ के पारिवारिक सदस्य एक दूसरे के घर , रहन सहन , आर्थिक स्थिति का जायजा लेने दो तीन बार आ जा चुके हैं । दोनों परिवार के हर सदस्य को रिश्तों का यह मेल पसंद आ चुका है । आभा और अजय ने भी विवाह हेतु अपनी सहमति प्रदान कर दी तो शादी की तारीख तय हो गई । अक्टूबर की 15 तारीख को दोनों का बड़े ही धूमधाम से विवाह हो गया । इलाहाबाद जैसे बड़े शहर में रहने वाली आभा को सिरसा जैसे छोटे से गांव में खुद को सही तरीके से ढालने में थोड़ी कठिनाई तो आयी ,पर धीरे धीरे  वो नये माहौल की अभ्यस्त हो गई । शुरुवात के 5 वर्ष अजय व आभा के बहुत अच्छे गुज़रे , जीवन का  आनंद उठाते हुए अपनी नई ज़िम्मेदारी निभाने में उन दोनों को कोई परेशानी नहीं आई  । 6 वें वर्ष उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई । अपने पुत्र का उन्होंने नाम दिया अनुज अनुज वर्मा ।  देखते ही देखते 2 वर्ष और गुजर गये । अनुज 2 साल का हो गया । 2 साल पूरा होते होते अजय की माता जी का निधन हो गया । उनके चले जाने के बाद अजय के पिता जी अवसाद से घिर गये । वे शरीर से तन्दुरुस्त थे पर मानसिक रूप से वे कमजोर हो गये थे । वे हर समय अपने कमरे में अकेले बैठे रहते थे । उनकी हालत देख अजय का मन दुख से भर गया  । अजय ने प्रण कर लिया कि अब वे अपने पिता को जितनी ज्यादा हो सके देखभाल करूंगा और वह अब अपने पिता की सेवा मेँ ज्यादा तल्लीन रहने लगे । तब अजय की पत्नी आभा को महसूस होने लगी कि उसका पति मेरी तरफ से विमुख होने लगा है और अपना अधिकांश समय अपने पिता को देने लगा है अपने बच्चे अनुज से भी अजय का लगाव कम होते प्रतीत होने लगा था । इस स्थिति से आभा कुढ़ने लगी थी । साथ ही अजय पर अवसर ताने कसने लगी कि तुम्हारे लिये तो तुम्हारे पिता ही सब कुछ हैं । हम लोग तो सिर्फ दिखावे की चीज़ होकर रह गये हैं । मेरी भावनाओं से तुमको कोई मतलब रहा नहीं । ऐसा क्यूं ? क्या मैं तुम्हारी कुछ भी नहीं ? जवाब में अजय उसको समझाता ऐसी कोई बात नहीं है , तुम तो मेरी अर्धांगिनी हो । इस घर की मालकिन , तुम ऐसा क्यूं सोचते हो । मैं तो सिर्फ एक अच्छे पुत्र की भूमिका निभा रहा हूं । उनको अवसाद से निकालने का प्रयास कर रहा हूं । मैं ही अगर अपने पिता का खयाल न रखूं तो और कौन रखेगा ?  जवाब में आभा कहती ऐसी भी क्या सेवा ? अपनी पत्नी और बच्चे की ओर आंख उठा के भी नहीं देखते । हमें क्या चाहिये इसका जरा भी तुमको खयाल नहीं रहता । ऐसे तो जीवन की गाड़ी नहीं चलने वाली संबंधों में ताल मेल बिठाना निहायत जरूरी है । अगर  गाड़ी का एक चक्का पंचर हो जाए तो गाड़ी ठीक से चल नहीं  पाती। जवाब में अजय ने कहा  इस घर में जो भी कुछ है सब तुम्हारा है । तुम ही तो इस घर की मालकिन हो । आभा- हां हां ऐसी मालकिन हूं जिसकी हालात एक नौकरानी से भी बदतर है । अजय , आभा को समझाते समझाते थक जाता पर आभा के मन में जो गाँठ पड़ गई थी वह बेहद मजबूत थी ।  अब आभा और अजय के बीच की दीवार और ऊंची होने लगी थी । वह भी डिप्रेशन का शिकार होने लगी थी । अजय ने उसे दुर्ग के मनोचिकित्सक डॉ . दानी को दिखा कर सलाह भी लिया पर आभा का चिड़चिड़ापन कम नहीं हुआ। इसके बावजूद अजय ज्यादा वक्त आभा को नहीं दे पाता था । वह अपने पिता की ही सेवा में लगा रहता था । आभा भी अब अलग राह पकड़ने लगी थी । वह दिन रात अपने बच्चे अनुज के साथ ही रहती और अजय से दूरी बनाये रखने की कोशिश करती । अब आभा - अजय का परिवार दो खानों में अपना जीवन जीने लगा था । जिसके एक खाने में आभा और अनुज अपने तरीके से जीवन जी रहे थे व दूसरे खाने में अजय व उसके पिता । संवाद हीनता बढ़ते जा रही थी । आभा और अजय के बीच अब नित झगड़े भी होने लगे थे । गाली गलौज के साथ साथ हाथापाई भी होने लगी । अजय के पिता चेतन जी कभी कभी अजय को समझाते कि बेटा मेरी देखभाल से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी तुम्हारी अपने परिवार के प्रति है , अगर उनकी तरफ से तुम विमुख रहोगे तो एक दिन अनर्थ हो सकता है । मैं तो कहता हूं कि तुम मेरी देखभाल के लिये एक नौकर रख लो । एक दिन आभा को मेडिकल चेक - अप के लिये शाम 5 बजे दुर्ग जाने की बात आभा ने सुबह अजय को बता दी थी पर शायद अजय को यह बात याद नहीं रही और वह अपने पिताजी को शाम साढ़े चार बजे सैर कराने निकल गया और लगभग 6 बजे वे वापस आये । उस समय आभा घर में बौराई बैठी थी । चेहरा एकदम लाल हो गया था अजय को देखते ही वह फूट पड़ी और घर के सामानों को फेंकने लगी । अजय ने अपनी भूल पर हांथ जोड़कर माफ़ी भी मांगी पर आभा का गुस्सा शान्त नहीं हुआ । वह उसी तरह से सामान फेंकती रही और चिल्लाती रही । अजय कुछ और समय तक यह सब देखता रहा पर फिर उससे रहा नहीं गया और उसने गुस्से में आभा को दो चार तमाचे जड़ दिया । अंतिम चांटा इतना ज़ोरदार था कि आभा सहन नहीं कर सकी और भरभरा कर गिर गई । दस मिनटों बाद उसे होश आया तो वह रोते रोते अपने कमरे में घुस गई और कमरे को अंदर से बोल्ट कर दिया । अजय भी गुस्से में था ही वह भी जाकर पिता जी के कमरे में सो गया । अब आभा को लगने लगा था कि साथ रहने का कोई फ़ायदा नहीं अतः एक दिन वह अपने बच्चे को लेकर घर से बिना किसी को कुछ बताये निकल गई और शाम को इलाहाबाद जाने वाली सारनाथ एक्सप्रेस में बैठ कर इलाहाबाद की ओर चल पड़ी । सिरसा में अजय कुछ लोगों की मदद से आभा को ढूंढने निकले तो किसी के द्वारा पता चला कि उसने आभा को अपने बच्चे के रेल्वे स्टेशन में देखा है । अजय समझ गया कि अब ढूंढने का कोई फायदा नहीं है । वह इलाहाबाद वाली ट्रेन से प्रस्थान कर गई होगी । दूसरे दिन आभा अपने बच्चे के साथ जब इलाहाबाद अपने मायक पहुंची तो उसके मां बाप पहले तो आश्चर्यचकित हो गये कि अचानक ही आभा कैसे अपने बच्चे के साथ यहां आ गई । दामाद बाबू आखिर कहां हैं  । आभा ने तुरंत ही रोते हुवे अपना दुख बताया कि वह किस हालात में वहां रह रही है । अजय ने मेरा और मेरे बच्चे का ख्याल रखना छोड़ दिया है । दिन  रात अपने पिताजी के साथ बैठे बैठे गप्प मारते रहते हैं । रोज हमारा किसी न किसी बात पर बहस होने लगी है व कभी कभी झगड़ा भी होने लगा था । जब मुझे लगने लगा कि अब वहां  रहना मतलब अपनी और अपने बेटे की जिन्दगी खराब करना है तो मैं बिन किसी को कुछ बताये सीधे आप लोगों के पास आ गई । अब आप लोगों के सहारे ही अपना जीवन काटना है और अपने बच्चे का भविष्य बनाना है । मैं  आप लोगों को बोझ तो नहीं लगूंगी ? आप लोग मुझे अपनायेंगे या नहीं ? इतना कह के वह रोने लगी तब आभा की माता ने उसे गले लगा कर समझाने लगी । तुम कैसी बात करती हो।तुम हमारी बेटी हो इस घर में तुम्हारा भी हक है । वैसे मुझे उम्मीद है कि तुम्हारे और अजय के बीच जो दूरी बढी है , एक न एक दिन कम होगी और तुम लोग फिर आपस में राजी खुशी से साथ साथ रहोगे । तुम कहो तो हम लोग सिरसा जाकर दामाद जी को समझाते हैं । जवाब में आभा ने कहा उन्हें समझाने से कोई फायदा नहीं आपके सामने तो शायद हां हां कहें पर बाद में फिर वही करेंगे जो आज तक कर रहे हैं । आभा ने कहा अब मैं वहां तभी जाऊंगी जब वह मुझसे माफ़ी मांगे व  खुद इज्जत के साथ मुझे अपने साथ ले जावे । वरना में कभी सिरसा नहीं जाऊंगी और अपनी जिन्दगी इलाहाबाद में  ही गुज़ारुंगी।

( क्रमश: )
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रचनाएँ
रिश्तों की बुनियाद कहानी
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सिरसा मे रहने वाले एक परिवार के पति पत्नी के बीच दरी ऐसी बढती है की पत्नी ससुराल को त्याग कर अपने मायके इलाहाबाद चली जाती है। बाद मे उनका मिलन कुछ विचित्र परिस्थितियों में होता हा।
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