रिश्तों की बुनियाद ( कहानी दूसरी क़िश्त )
( अब तक --अपने पति के व्यौहार से परेशान होकर आभा अपने ससुराल का घर छोड़कर इलाहाबाद अपने मायके आ गई--इससे आगे )
उधर अजय भी गुस्से से भरा था कि आभा बिना बताये घर से निकल गई और शायद इलाहाबाद चली गई । अब उसे आना होगा तो या खुद आयेगी या फिर उधर से वो कहेगी कि मुझे आकर ले जाओ तभी मैं सोचूंगा कि मुझे क्या करना है ? अपनी तरफ़ से उनसे क्यूं संपर्क करुं ? इस तरह दोनों अपने अभिमान के फंदे में फंसे रहे और बात वहीं की वहीं रही । धीरे धीरे 4 महीने गुज़र गये आभा अपने बच्चे के साथ इलाहाबाद अपने मायके में ही रही और अजय सिरसा में अपने पिता की सेवा में रत रहा । समय के साथ आभा ने मन बना लिया कि ज्यादा दिनों तक मायके में बोझ बनके रहना सही नहीं। उसने अपना निर्णय अपने माता पिता को बताया तो उन्होंने कहा ठीक है हम भी तुम्हारे साथ रहेंगे । तुम कोई स्कूल में टीचरशिप ज्वाइन कर लेना तो तुम्हारा आर्थिक पक्ष भी ठीक रहेगा । बाक़ी हम तो हैं ही। इस तरह 10 दिनों के बाद आभा अपने पुत्र और अपने माता पिता के साथ बगल वाले मुहल्ले में एक मकान किराये लेकर वहां शिफ्ट हो गई । उसे एक स्कूल में टीचरशिप का काम भी मिल गया । उधर अजय, आभा और अनुज के जाने से कुछ दिनों तक परेशान रहा । देखते ही देखते 3 वर्ष गुजर गये । न आभा लौट कर सिरसा आई न ही अजय ने इलाहाबाद जाकर उन्हें लाने का प्रयास किया । इन तीन सालों में अजय के पिता जी की आंखें और श्रवण शक्ति कमजोर हो गईं । चिकित्सकों को दिखाया तो पता चला कि आंखें व कानों की नसें सूख गई है ज्यादा कोई फायदा नहीं होगा । एक दिन अजय के पिता ने अजय से कहा बेटा 6 महीने बाद इलाहाबाद में कुम्भ का मेला लगने वाला है । हमारी मंडली के सदस्य वहां जा रहे हैं । हो सके तो मुझे भी कुंभ का मेला दिखाने ले चलो । अजय ने तुरंत हामी भर दी और इलाहाबाद जाने की तैयारी में जुट गया । सिरसा में अजय के पड़ोस में विनोद चौहान का घर था , वह भी अजय का हमउम्र था दोनों में हल्की फुल्की दोस्ती थी । आते जाते दोनों एक दूसरे का हाल चाल पूछ लेते थे । विनोद की शादी हुए चार बरस हो गये थे । उसकी पत्नी तेजस्वनी लखनऊ की थी , बड़ी ही फ़ैसनपरस्त तेज़ तर्रार व घमंडी भी । वह अपने सास ससुर यानि विनोद के माता पिता के उपर भी गुर्राती रहती थी ।
वे दोनों जैसे तैसे अपनी बहू की प्रताड़ना साल भर सह सके पर जब पानी सर से उपर जाने लगा तो एक दिन वे दोनों बिना किसी को बताये घर छोड़ कर कहीं चले गये ।
उधर विनोद और तेजस्वनी का विवाह हुए 3 वर्ष हो चुके थे पर अभी तक उनकी कोई औलाद नहीं थी । इस संबंध में उन्होंने विभिन्न प्रकार की मेडिकल जांचें भी करायी व भांति भांति के इलाज भी भिन्न भिन्न डक्टरों से कराया पर परिणाम सिफ़र ही रहा । इसी बीच सिरसा में चित्रकूट से बाबा अखिलानंद भागवत कथा पढ़ने आये । लोगों के कहने पर विनोद और तेजस्वनी ने उनसे संपर्क किया और अपनी समस्या का निदान पूछने लगे तो उन्होंने बताया कि कुछ महीने बाद इलाहाबाद में कुंभ का मेला लगने वाला है । तुम दोनों कुंभ के मेले में 10 दिन रहकर और रोज़ पावन गंगा नदी में डूबकी लगाना तो 6 महीनों के अंदर तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति ज़रूर होगी । विनोद और तेजेस्वनी ने मन बना लिया कि इस बरस इलाहाबाद के कुंभ मेले के दौरान गंगा मैया में डूबकी लगा कर आयेंगे और मां गंगा से पुत्र रत्न का आशीर्वाद मांगेगे । जब कुंभ का मेला इलाहाबाद में लगा तो एक दिन अजय अपने पिता को लेकर सारनाथ एक्सप्रेस से इलाहाबाद रवाना हो गये । वैसे तो अजय के पिता चेतन जी दृष्टि व श्रवण शक्ति बहुत कमजोर थी पर वे शरीर से हुष्ट पुष्ट थे । इलाहाबाद में अजय अपने पिता के साथ एक धर्मशाला में रुक गये । नित्यकर्म से निवृत्त होकर वे रोज सुबह धर्मशाला से निकलते तो रात 10 बजे ही वापस लौटते थे । पांचवे दिन जब अजय व उनके पिता रात्रि 10 बजे मेले से धर्मशाला लौटने की तैयारी कर रहे थे तभी अजय के पेट में दर्द होने लगा और पेट गुड़गुड़ाने लगा । उस समय मेला का वह इलाका सुनसान हो चुका था । उसने अपने पिता को पास ही स्थित एक सिमेंट की बेंच पर बैठा कर उनसे कहा कि आप यहाँ मेरा इंतजार कीजिये मैं दीर्घ शंका से निवृत होकर आता हूं । तब अजय के पिताजी ने कहा ठीक है तुम इत्मिनान से आओ मैं यहीं आराम से खामोशी का आनंद लेते बैठा हूं । अजय वहां से चला गया और उनके पिता चुपचाप बेंच पर बैठ गये । अजय के पिता अपने साथ हमेशा एक लंबा सा डंडा रखते थे । जो उन्हें कभी चलने में भी सहारा देता था और कभी मार्ग प्रशस्त करने में भी । दस मिनटों तक वे मां गंगा की धारा को अपनी कमज़ोर दृष्टि से देखते रहे । उन्हें उस समय वहां का वातावरण बहुत ही अच्छा लग रहा था । । इतने में उन्हें किसी औरत की चीख सुनाई दी जो दूर से आती महसूस हो रही थी पर धीरे धीरे चीख की आवाज उनके पास आती गई । इतने में एक औरत उनके पैरों पर गिरकर निढाल हो गई और रोते कहने लगी । बाबूजी मुझे बचा लो मेरे पीछे चार गुंडे पड़े हैं । मेरे साथ चार साल का मेरा बच्चा भी है जिसे दूर एक बेंच पर बिठा कर भागते हुए आप तक पहुंची हूं । हमारे आस पास और कोई भी व्यक्ति और नहीं है । जिससे मैं मदद मांग सकूं । वह औरत आपनी बात कह ही रही थी कि चेतन जी के आंखों के सामने चार व्यक्तियों के धुंधले चेहरे नजर आने लगे । फिर चिल्लाते हुवे किसी ने कहा कि ऐ बुढ्ढे बेंच पर बिल्कुल ख़ामोश बैठे रहो । हमारे काम में बाधा डालने की जरा भी कोशिश की तो अपनी टांग तुड़वा डालोगे । इतना सुनते ही चेतन जी ने सोच लिया था कि उसे क्या करना है? उन्होंने जवाब दिया मैं तो बिल्कुल ख़ामोश ही बैठा हूं । पता नहीं आप लोग मुझ पर क्यूँ चिल्ला रहे हो ? इतना कहते अपने डंडे को मजबूती से पकड़ लिया और मन ही मन महादेव व अन्जनी पुत्र का उद्घोष करने लगे । उन चारों बदमाशों में से एक ने कहा आपके पैरों के पास जो औरत बैठी है, उसे अपने से दूर कर दो । जवाब में चेतनजी ने कहा कि इस औरत ने मुझे बाबू जी कहा है । अब तो में इसका धर्म पिता हो गया हूं और एक पिता के रहते कोई पापी उसकी पुत्री पर जुल्म ढाये । ऐसा तो संभव नहीं है । मेरे जीते जी तुम लोग मेरी बेटी को छू भी नहीं सकते । ये सुनकर वे चारों गुंडे घेरा बनाकर चेतन जी की ओर बढ़ने लगे । इस बात का अहसास चेतन जी को भी हो रहा था । उन्होंने तुरंत ही उस महिला से कहा बेटी तुम बेंच के नीचे दुबक कर बैठ जाओ । मैं इनसे निपटता हूँ । हालांकि मेरी नज़र कुछ कमजोर है पर मैं इन जैसे दस बीस लोगों को आसानी से धूल चंटा सकता हूं । इतना कहते कहते चेतन जी अपने पैरों पर खड़े हो गये और डंडे को दोनों हाथों में पकड़ कर एक विशिष्ट लयबद्ध तरीके से घुमाने लगे । उनका पहला प्रहार पीछे से आ रहे दाढी वाले गुंडे पर हुआ और वह गुंडा मुंह से बिना कुछ शब्द निकाले वहीं ढेर हो गया । ये देख बाकी तीनों गुंडों ने चाकू निकाल लिये ये तेजी से चेतन पर टूटने को हुए पर इस बीच डंडे का दूसरा प्रहार दाएं से चेतन की ओर बढ़ रहे गुंडे के हाथों पर हुआ और एक चटक की आवाज के साथ उसकी हाथ की हड्डी टूट गई । वह चार कदम पीछे हटकर जमीन पर बैठ कर दर्द से बिलखने लगा । इस बीच एक गुडे ने चैन निकाल कर वेतन जी पर वार किया जो उनके पीठ पर लगी । वे इस बार डगमगा गये पर तुरंत ही संभल कर डंडे को तेजी से घुमाते रहे जिसकी जद में अब चैन वाला गुंडा आया । उसके पेट पर डंडे का वार ऐसा था कि वह पेट पकड़ कर बैठ गया , अगले ही पल चेतन जी के डंडे के निशाने पर चौथे गुड़े का माथा आ गया और वह गुंडा कराहते हुए किधर भागा पता ही नहीं चला ? गुंडों के भाग जाने के बाद चेतन जी ने कहा बेटी तुम बाहर आ जाओ अब तुम और हम पूरी तरह से सुरक्षित हैं । मुझे दिखाई कम देता है । मुझे यहाँ मेरे बेटे ने बिठा कर कहीं गया है यह कह कर कि 10 मिनटों में आ जाऊंगा पर 1 घंटे से ऊपर हो गया है । उसकी कोई खबर नहीं है । मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं ? तब उस महिला ने कहा कि मैं इस क्षेत्र की रहने वाली हूँ आप जहां जाना चाहेंगे में छोड़ दूंगी। नहीं तो इलाहाबाद के बाहरी हिस्से में मेरा घर है आपको वहाँ ले चलूंगी । मेरे साथ मेरा बेटा भी है । अभी वो चार साल का ही है, जिसे मैंने यहाँ से 500मिटर बैठा कर आयी हूँ। इतना कह कर वह उस स्थान की ओर जाने लगी जिधर वह अपने को कर आई थी । 10 मिनटों में जब वो वहां पहुंची तो उसका दिल धक्क से रह गया । बेन्च पूरी तरह खाली थी । बच्चे का दूर दूर तक नामो - निशां नहीं था । ये देख उसे चक्कर आने लगे और वह भरभरा कर गिर गई।
उधर सुलभ सौचालय में भीड़ होने के कारण अजय को वापस लौटने में दस मिनटों की जगह आधा घंटा लग गया । वह लगभग दौड़ते हुए अपने पिता को बैठाये स्थान की ओर भागा । दौड़ते दौड़ते हुए उसने देखा एक बेंच पर बैठा छोटा सा बच्चा रो रहा है और वह बार बार मां मां चिल्ला रहा है । अजय से रहा नहीं गया और बच्चे को पुचकारते हुए पूछा मोटे तुम क्यूँ रो रहे हो और तुम्हारा नाम क्या है ? उसने रोते हुए कहा कि मेरी मम्मी ने मुझे यहां यह कह कर कहीं गई है कि मैं जल्द ही वापस आ रही हूँ । तुम यहां से कहीं न जाना । लेकिन मम्मो लौटी नहीं है । मुझे बहुत डर लग रहा है । तब अजय ने पूछा तम्हारी मम्मी किस ओर गई है । तब सोचते हुए बच्चे ने एक ओर इशारा कर दिया । यह देख अजय ने कहा तुम घबराओ मत मैं तुम्हें मम्मी के पास चलता हूँ । फिर वह बच्चे को गोद में उठा कर उस ओर चल पड़ा जिधर बच्चे ने इशारा किया था ।
उधर विनोद चौहान और उसकी पत्नी इलाहाबाद स्टेशन पहुंचने के बाद स्टेशन के पास ही स्थित एक होटल में ठहर गये । उस दिन वे सिर्फ आराम करने के मूड में थे।
वे दौनों भोजन करने के बाद सो गए। शाम को किसी ने उनके कमरे का दरवाजा खतखटाया तो विनोद ने दरवाजा खोला । सामने साधू जैसे दिखने वाले दो व्यक्तियों को खड़ा पाया । उनमें से एक ने कहा हमें पता है कि आप की मनोकामना लिये मां गंगा के पास आये हैं । हम आप लोगों को गंगा के उस पाट पर ले जायेंगे जहां ऐसी मनोकामना को पूर्ण करने के लिये पूजा पाठ किया जाता है । अत : हम सुबह 6 बजे उस ओर निकल जायेंगे आप लोग सुबह जल्द तैयार हो जाइयेगा । विधी विधान से पूजा करने में लगभग 2 घंटे लगते हैं । विनोद उनकी बातें सुनकर आश्चर्य चकित हो गया आखिर इन लोगों को कैसे पता चला कि हम किस उद्देश्य से यहां आये हैं । साथ ही उसे खुशी भी हुई कि ये लोग हमें उसी स्थान पर ले जायेंगे, जो इसी कार्य के लिये शुभ माना जाता है । बस यहां से रवाना होते वक्त एक बात का खयाल रखना । यह कहते हुए उनमें से एक व्यक्ति ने विनोद के कान में कुछ कहा जिसे सुन विनोद ने हामी भरते हुए अपना सिर हिलाया । अगली सुबह दोनों पंडे आटो लेकर होटल आ गये । तुरंत ही विनोद और उसकी पत्नी दोनों आटो में बैठ गये । उनकी आटो 15 मिनटों तक पश्चिम दिशा में लगातार चलती हुई लगभग 10 किमी दूर गंगा के उस घाट के पास पहुंची जो पूरी तरह से सुनसान था । यहां गंगा की धारा के किनारे एक दो झोपड़ियां थी । जिसमें संभवत : कोई साधू रहा करते थे । पंडों ने आटो रुकवा ली और हिसाब कर आटो वाले को वापस जाने को छोड़ दिया । वे फिर एक दिशा में आगे चलने लगे और विनोद व उसकी पत्नी को पीछे पीछे आने को कहा । विनोद उस उक्त धोती कुर्ते में था व उसकी पत्नी लाल साड़ी पहनी हुई थी साथ ही सिर मे पैर तक विभिन्न प्रकार के गहने से लदी थी । गले में सोने का हार , हाथों में पांच पांच सोने की चूड़ियां व पैरों में चांदी के पायल थे । वह कोई नवविवाहिता सी नजर आ रही थी।
( क्रमशः )