जब आदित्य की लालिमा,पूरब से उभरती है।
उसकी दिव्य रोशनी से,प्रकृति भी निखरती है।
चलायमान हो जाती वसुधा,नवप्रभात जब आता है।
उठो,जागो,परिश्रम करो, यह संदेश वह लाता है।
जीवन चक्र निरंतर यूँ ही, चलता जाए सृष्टि में।
परमपिता की शरण में सब,सभी उनकी दृष्टि में।
सांझ भए शीतल हो जाती, सूर्य की वह तीव्र तपन।
थक हार कर जीवन भी, निद्रा में हो जाए मगन।
🌺.......🌺🌺.......🌺