जीवन का सच्चा आनंद
दुख में ही रमता है।
सुख की चाह
केवल मन ही करता है।
आत्मा एक ज्योति है
स्वभाव से वियोगी है।
परमज्योति परमात्मा
का ही तो अंश है आत्मा।
नश्वर शरीर में आत्मा आती है
परमात्मा से बिछुड़ जाती है।
लेकिन जब तक शरीर में रहती है
परमज्योति की ही चाह रखती है।
जब भी गम का प्रसंग कहीं आता है
मन दुखी पर आत्मा को दुख ही लुभाता है।
मन मधुकर की तरह लोलुप ही होता है
सुख रूपी शहद को ही चाटता है।
आत्मा परमात्मा जब भी मिलते हैं
आंखों से अश्रुधार निकल पड़ते हैं।।