रूह शरीर के क़फ़स में
इस क़द्र फँस गई
अपना नित्य रूप भूलकर
शरीर की ग़ुलामी में धँस गई।
इस जहाँ के मोह ने
रूह को दुनियादारी के बंधन में डाल दिया
मन की चंचलता ने
रूह की रूहानियत को ही मार दिया।
रूह की रूहानियत को गर
जीवित रखना है।
मन की चंचलता को
नियंत्रण में करना है।
प्रेम के स्वच्छ जल
से इसकी जड़ों को सींचना है।
मोह का क़फ़स तोड़कर
रूह को आज़ाद पंछी बन प्रेम गगन में उड़ना है॥