किसी भी कर्म के फल की
जब हम अपने मन में लालसा पालते हैं।
निश्चित ही उस फल के फलित होने से
हम कोसों दूर होते जाते हैं।
करम फल तभी फलित होता है
जब कोई उसको निष्काम जल से सींचता है।
हम बेवजह ही फल के चक्कर में भरमाते हैं
कर्म पर पूरा ध्यान न देकर भाग्य के सहारे हो जाते हैं।
फल की महत्वाकांक्षा ही कर्म हीन बनाती है
भाग्य के सामने इंसांनों को दीन बनाती है।
जैसे ही फल से दिमाग हटता जाता है
मानुष का मन उस कर्म में लगता जाता है।
एक दिन मंजिल मिल ही जाती है
कर्म में जैसे जैसे दक्षता आती जाती है।
फल उसी का वरण करता है
जब कोई अपने कर्मबल से उसका रुख मोड़ता है।।