दोस्तों आज पने स्वाभाव से अलग शीर्षक दिया है मैंने इस कहानी का आप चौंकिएगा मत क्यूंकि कहानी इन शब्दों से ही मर्म रखती है
सुबह से जब किवाड़ न खुले तब सबने सोचा की आज आंटी जी क्यूँ अब तक सो रहीं हैं , सुबह भोर में जगने वाली आंटी के किवाड़ क्यूँ अब तक बंद हैं ? क्या हुआ होगा कुछ जिज्ञासा कुछ पडोसी धर्म निभाने की इच्छा से कुछ लोग उस आंटी के घर के पास जमा हो गए सबने मिलकर तय किया की दरवाजा खटखटाया जाय उनमे से एक बुजुर्ग सज्जन थे जिन्होंने आगे आकर दरवाजा खटखटाया भी पर ये क्या ? अन्दर से कोई जवाब नहीं आया लोगों में तरह तरह की खुस फुस होने लगी आपस में सब अनेक संभावनाओं की कल्पना करने लगे इतने में एक गाड़ी आकार वहां रुकी उसमे से उस आंटी की सहेली निकली और सबसे पूछा की यहाँ भीड़ क्यों लगा रखी है तो भीड़ में से एक सज्जन सामने आये और कहा आंटी जी दरवाजा नहीं खोल रही न ही कोई जवाब दे रही है तब उस आंटी की सहेली ने दरवाजा खटखटाया किन्तु फिर भी कोई प्रत्युत्तर न मिला तो उसने कहा दरवाजा ही तोड़ डालो सबने मिलकर दरवाजा तोडा और सामने का दृश्य देखकर सब अवाक् रह गए उन आंटी के एक हाथ में गीता थी एक में गंगाजल और वो मानो आराम से गहरी नींद में सोई पड़ी थी .सबने पास जाकर देखा तो कोई चीख पड़ा की अरे आंटी को क्या हुआ आंटीजी तो स्वर्ग सिधार गई ..फिर किसी ने आंखोमे आंसू भरकर श्रध्धांजलि दे डाली और सब उनके जीवन की बातो को याद करने लगे चुप थी तो सिर्फ उसकी सहेली न आँखों में एक आंसू था न ही कोई दुःख था बल्कि उसके चहरे पर एक एइसा भाव मानो कह रही हो अच्छा हुआ बहना छुटकारा मिला तुझे इस नारकीय जीवन की पीड़ा से. अब अगले जनम में तो तू सुख प्राप्त करना इस जन्म ने तुझे दिया ही क्या है की मैं तेरे जाने का अफ़सोस करूँ .. भरपूर परिवार होने के बावजूद अकेली रहती थी , जिंदगी के पहले प्रहर में याने की बचपन से ही हरपल के मानसिक तनाव के बीच बचपन गुजरा था , शादी की तो पति ने त्यागा तीन बच्चों के साथ किसी तरह बच्चों का मुह देखकर उनकी ख़ुशी में खुश रहकर कड़ी मेहनत करके बच्चों को पढाया लिखाया पालापोसा शादियाँ की किन्तु दुर्भग्य की बहु ने आकार बेटे से कह दिया या अम्माजी रहेंगी या मैं इस तरह के रोज के क्लेश होने लगे फिर भी वो इस घर में हर पल की अशांति फिर भी खुश थी बच्चो के बच्चे संभालती बच्चे सोचते मा अछि काम आरही है, हमे हमारे बच्चों को संभालने के लिए आया के पैसे बाख जाते हैं और हमें आराम मिल जाता है . पर जब उनके बच्चे भी बड़े हो गए तब बेटे ने कह दिया हमें आपके साथ नहीं रहना आपके घर की व्यवस्था कर दी है आप अकेले रहो और तब से आंटी जी अग्नि परीक्षा शुरू (अकेला इंसान जिसने दुखों के सिवा कुछ नहीं देखा कैसे अपने दिन बिताता है उसकी अंतर्व्यथा की हम और आप तो कल्पना भी नहीं कर सकते .
पागलों सा दिमाग हो गया था उनका एक ही बात की रट लग जाती. कभी कभी अकेले अकेले रो देती तो कभी कोई पडोसी उनके घर आता तो उसे भगवान मानकर उसका स्वागत करती और खुश होती पर शायद किस्मत को यह भी मंजूर न था इसलिए उसे बहुत बड़ी बीमारी हुई शायद वजह थी अकेलापन ,जीवन के साधनों की कमी रात दिन की चिंता थी उन्हें कहा जाता है चिंता चिता तक पहुंचाती है इंसान को
बच्चों ने उनका दिल दुखाने की कोई कसर बाकि न रखी थी (.मेरा मानना है की यदि औलाद ऐसी ही होती है तो जिनके औलाद नहीं वो अधिक भाग्यशाली होते हैं )
इस कहानी को लिखने का मेरा तात्पर्य यही है की यदि जीवन एइसा ही है लोगो में स्वार्थ इतना ही है तो क्यूँ न हम ये कहें " ओ जाने वाले कही भी लौट के न आना ,क्यूंकि जीवन का सामना सिर्फ और सिर्फ स्वारथ से है तो एइसा जीवन किस काम का ? अक्सर आज के सोशल मिडिया में फेस बुक आदि में मा को लेकर बहुत लम्बे लम्बे भाषण आते हैं लोग एइसे वाकय लिखकर क्या अपनी सिर्फ महानता ही जताते हैं? या कोई सच में आपने माता पिता की सेवा उनका आदर इन शब्दों के अनुसार करता भी है ? यदि इसका जवाब ना में है तो मैं इतना जरुर कहूँगी की बेकार में अपना और दुसरों का समय नष्ट न करे और यदि कुछ भी लिखते हैं आप तो अक्षर सह उसक पालन कीजिये यू बड़े बड़े वक्तव्यों से आज के वृध्धों की व्यथा में कमी नहीं आएगी करना है तो वास्तविक जीवन में कुछ कीजिये .
आपको पता है? जब इन्सान की उम्र ५५ पार कर जाती है तब उसे हरपल किसी के साथ की जरुरत होती है .और इस उम्र में उसके आपने ही इंसान को अकेला कर दें तो उनका दिल कितना दुखता है और सोचिये आप कितने पाप के भागीदार बने ?
एइसे में आप कैसे अपने ही माता पिता का साथ छोड़ सकते हो? कैसे आप उनके अन्दर बसी भावनाओं को नहीं समझ सकते ? जिसने आपको जीवन दिया है उसके जीवन के अंतिम दिनों में कैसे उसका मन दुखाकर आप खुश रह सकते हो ?? मैं मानती हूँ की एक उम्र के बाद माता पिता भी बच्चे जैसे हो जाते है तो होने दो वो एक बात १० बार कहे आप सुनो उसे. उनके लिए पुरे दिन में से कुछ समय निकालो आप और उनका हाल पूछो देखो फिर आपको कितनी दुवायें मिलती है कभी उनके लिए उनकी पसंद का खाना बनाइये कभी बहार ले जाइये उनका मन भी कितना खुश रहेगा और मा बाप की दुवायें कभी व्यर्थ नहीं जाती आप अच्छा करोगे आपके बच्चे वो देखेंगे और वैसा ही सुलूक आपके साथ करेंगे आपको सुखी रहना है तो watsup और फेस बुक से कुछ पल बहार निकल कर वो समय अपने माता पिता को दें . सिर्फ मा बाप के सम्मान में झूठे फारवर्ड करके सन्देश भेजने से आप पुन्य के भागी नहीं बन जायेंगे सच्ची सेवा ही आपका जीवन बदलेगी .
अब उस कहानी के अंतिम भाग पर हम एक विहंगम दृष्टि कर ले .. उसके बाद उस आंटी के बेटे को फोन करके बुलाया गया वो आया और मा की शांत मुद्रा को देखकर मानो उसे जलन हुई और वो रोने लगा जी हाँ मैं इसे जलन ही कहूँगी क्यूंकि एईसी औलादें मा बाप को शांत सोता तक नहीं देख सकतीं है वो चाहती है अरे इस बूढी को कैसे इतनी शांति मिली सच जब आज के समाज के लोगों की अंतर्व्यथा सुनती हूँ तब तब मन करता है की मेरा बस चले तो किसी बच्चे को २० साल के होने के बाद उनके मा बाप के पास रहने ही न दूँ आखिर क्यूँ इतना स्वार्थ क्यूँ इंसान सिर्फ अपनी ही महानता की नुमाइश करना कहता है जिसने खुद भूखे रहकर अपने बच्चो को खिलाया अपनी हर इच्छा को दबाकर अपने बच्चों की इच्छाएं पूरी की उसी मा बाप को हम इतनी आसानी से कैसे ठुकरा सकते हैं? क्या जवाब है आपके पास मेरे सवाल का ? कृपया मुझे बताइयेगा ...