आइए पढ़ते है गाथा विनय शर्मा की।
विनय शर्मा जिसके बारे में कहा जाता था कि स्वयं सरस्वती माता उसके कंठ में विराजमान है। जब वो भजन गाता था तो लोग मंत्रमुग्ध हो कर उसे सुनते थे।
आस पास जहां कहीं भी धार्मिक कार्यक्रम होता तो विनय को वहाँ अवश्य ही बुलाया जाता था और वो भी इस तरह के धार्मिक कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता था।
उसे ना तो कोई लालच नहीं और ना ही कोई घमंड। किसी ने कुछ दे दिया तो ठीक, नहीं दिया तो भी ठीक।
एक दिन विनय एक जागरण में गा रहा था। एक गाड़ी वहाँ से गुजर रही थी। उस गाड़ी में एक बहुत बड़े संगीतज्ञ जा रहे थे। उनके कानों में विनय की आवाज़ सुनाई पड़ी।
“ड्राईवर गाड़ी रोको”, उस संगीतज्ञ ने ड्राईवर से कहा।
ड्राईवर ने साइड से लगा कर गाड़ी रोक दी।
वो संगीतज्ञ गाड़ी से उतरे और उस जागरण में आ कर बैठ गए।
वो संगीतज्ञ भी भजन सुन कर भावविभोर हो गए।
जागरण समापन के बाद, प्रसाद ले कर वो संगीतज्ञ विनय को खोजने लगे।
विनय वहीं माता के चरणों में बैठा हुआ था। वो संगीतज्ञ फिर विनय के पास आ गए।
“तुम्हारी आवाज़ बहुत ही मधुर है, नाम क्या है तुम्हारा?”, उन संगीतज्ञ ने पूछा
“जी विनय नाम है मेरा”, विनय ने उत्तर दिया।
“विनय तुम्हारी आवाज़ में एक जादू है, मैं चाहता हूँ कि तुम्हें पूरी दुनिया में पहचान मिले, ये मेरा कार्ड है इसे रखो, हो सके तो कल मेरे दफ्तर में आ जाना”, उन संगीतज्ञ ने कहा और फिर वहाँ से चले गए।
“विनय ने वो कार्ड देखा, ‘सुरेन्द्र पाठक’, ये तो बहुत बड़े संगीतज्ञ हैं”, विनय ने खुद से कहा।
अगले दिन विनय उनके दफ्तर पर पहुँच गया।
इतना बड़ा दफ्तर देख कर विनय की आँखें फटी रह गई। ऐसी जगह अब तक उसने कभी नहीं देखी थी। बहुत सारे लोग वहाँ काम कर रहे थे।
“भाई साहब मुझे सुरेन्द्र सर से मिलना था”, विनय ने एक आदमी को रोक कर पूछा।
“ऐसे वो किसी से नहीं मिलते”, उस आदमी ने जवाब दिया।
“उन्होने मुझे खुद ही यहाँ बुलाया था”, विनय ने कहा।
“वो तुम्हें खुद बुलाएँगे? अपनी शक्ल देखी है?, चलो निकलो यहाँ से”, उस आदमी ने दुत्कारते हुए कहा।
विनय सिर झुका कर वहाँ से लौटने लगा।
सुरेन्द्र पाठक बाहर से आ रहे थे।
“विनय, तुम वापस क्यों जा रहे हो? चलो आओ मेरे साथ आओ”, सुरेन्द्र ने कहा और विनय को अपने साथ अपने कैबिन में ले गए।
“बैठो”, सुरेन्द्र ने चेयर की तरफ इशारा करते हुए कहा।
विनय थोड़ा झिझकता हुआ बैठ गया।
“मैंने तुम्हारे गाने के लिए रिकॉर्डिंग की व्यवस्था की है, तुम गाने के लिए तैयार हो ना?”, सुरेन्द्र ने पूछा।
“जी मैं तैयार हूँ”, विनय ने कहा।
सुरेन्द्र विनय को खुद रिकॉर्डिंग रूम तक ले गए।
विनय पहले थोड़ा हिचकिचाया लेकिन फिर उसने गाना शुरू कर दिया। जो भी लोग पहले उसे ऐसा ही ऐरा गेरा समझ रहे थे उन्होने भी विनय के लिए खड़े हो कर ताली बजानी शुरू कर दी।
विनय की आवाज़ में वो पहले भजन की रिकॉर्डिंग का गाना जब रिलीज़ हुआ तो उसे अप्रत्याशित सफलता मिली। धीरे धीरे वो लोगों में प्रसिद्ध होने लगा।
पहले वो सिर्फ भजन ही गाता था लेकिन जब उसे मुँहबोले पैसे मिलने लगे तो वो हर तरह के गाने गाने लगा।
पहले एक आम से घर में रहने वाला लड़का अब एक बंगले में रहने लगा था। नौकर चाकर सब वहाँ थे।
अब अगर कोई उसके पास धार्मिक कार्यक्रम में गाने के लिए बुलाता तो वो मुँहबोले पैसे मांगता था।
सफलता का नशा उसके सिर चढ़ कर बोलने लगा था।
विनय अब किसी को भी कुछ नहीं समझता था और ना ही किसी से सीधे मुंह बात करता था। उसे हर वक्त गुस्सा सा रहने लगा था। सुकून नाम का शब्द उसकी जिंदगी से हट गया था।
विनय का लाइव कॉन्सर्ट आने वाला था। उसके शो की सारी टिकिट पहले ही बिक चुकी थी।
ये कॉन्सर्ट उसके लिए बहुत ही ज्यादा इंपोर्टेंट था क्योंकि इसमें बहुत सारी देश और विदेश की बड़ी हस्तियाँ आ रही थी।
विनय काफी दिनों से इसकी तैयारी में लगा हुआ था।
तभी उसके बंगले के बाहर एक महिला आईं। उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज़ था।
बंगले के दरवाजे पर खड़े गार्ड भी उन्हे रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पाये।
वो बंगले के अंदर प्रवेश कर गईं।
विनय का मैनेजर वहाँ से गुजर रहा था। उसने उन महिला को देखा तो टोक दिया।
“आप कौन हैं? और यहाँ कैसे आईं?”, विनय के मैनेजर ने पूछा।
महिला ने पलट कर मैनेजर को देखा।
“मुझे विनय से मिलना है, हर साल वो नवरात्रों पर देवी के मंदिर में भजन गाता है, एक नवरात्र जा चुका है लेकिन विनय मंदिर नहीं आया”, उस महिला ने पूछा।
महिला के तेज़ को देख कर मैनेजर भी थोड़ा घबरा गया था।
“विनय सर बहुत ज्यादा व्यस्त हैं वो अभी किसी से नहीं मिल सकते”, मैनेजर ने खुद को संभालते हुए कहा।
“मैं यहीं बात एक बार खुद विनय से पूछना चाहती हूँ”, महिला ने कहा।
मैनेजर जल्दी से विनय के पास पहुँच गया।
“सर बाहर एक महिला हैं, वो आपसे मिलना चाहती हैं”, मैनेजर ने विनय से कहा।
“कौन महिला? कहाँ से आई हैं?”, विनय ने झुंझुलाते हुए पूछा।
“देवी माता के मंदिर से आईं हैं”, मैनेजर ने कहा।
“तुम्हें अच्छे से पता है कि मुझे किसी से नहीं मिलना है तो नहीं मिलना है, जाओ जा कर मना कर आओ”, विनय ने नाराज़ होते हुए कहा।
“सर मैंने उनसे मना भी किया था लेकिन वो कह रहीं हैं कि आप खुद जा कर उनसे मना कर दो”, मैनेजर ने बताया।
“अजीब मुसीबत है, चलो मैं खुद ही मना करके आता हूँ”, विनय ने झुंझुलाते हुए कहा और अपने कमरे से जब बाहर आया तो उन महिला को देख कर विनय भी उनके तेज़ से खुद को बचा नहीं पाया।
“माफ कीजिये लेकिन मैं वहाँ नहीं आ पाऊँगा”, विनय ने उस महिला से कहा।
“तुम हर बार जरूर आते हो, चाहे एक भजन गाओ लेकिन तुम्हें आना ही है”, महिला ने आदेश दे कर कहा।
उनकी बात सुन कर विनय को गुस्सा आ गया।
“तुम मुझे आदेश दे रही हो, तुम जानती नहीं कि बड़े बड़े लोग मुझे गाने पर बुलाने के लिए हाथ जोड़ कर खड़े रहते हैं, इस तरह की छोटी जगह पर भजन गाने के लिए मेरे पास वक्त नहीं है, अब जाओ यहाँ से”, विनय ने गुस्से में कहा।
“जैसी तुम्हारी इच्छा, अब मैं नहीं तुम खुद मेरे पास आओगे”, महिला ने कहा और फिर वहाँ से चली गई।
आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन विनय का कॉन्सर्ट था।
वहाँ लोगों की भारी भीड़ थी। जितने लोग हॉल के अंदर थे उससे कई गुना ज्यादा बाहर थे।
विनय स्टेज पर आया और उसने जैसे ही गाने की कोशिश की तो उसके गले से आवाज़ ही नहीं निकल पाई। उसने फिर से कोशिश की तो गले से आवाज़ तो आई लेकिन बहुत ही खराब आवाज़ निकल रही थी। जितने भी लोग वहाँ विनय को सुनने के लिए आए थे उन सबने हूटिंग करनी शुरू कर दी और विनय पर सामान फेकना शुरू कर दिया।
विनय ने ऐसा कुछ पहली बार देखा था। वो तुरंत ही स्टेज से हट गया।
लोगों की भीड़ ने वहाँ की सारी कुर्सियाँ तोड़ डाली और खूब हँगामा करने लगे। आखिर में उन सभी लोगों को टिकिट के पूरे पैसे दे कर शांत किया गया।
विनय ने उसके बाद अपने गले का बहुत ईलाज करवाया लेकिन उसकी आवाज़ बेसुरी ही रही। धीरे धीरे लोग उसे भूलने लगे और वो गुमनामी के अंधेरे में खो गया।
उसके पास जो भी सेविंग्स थी वो सब उसके ईलाज और बाकी के खर्चो में लग गए। आवाज़ खराब होने की वजह से सुरेन्द्र पाठक भी उसकी ज्यादा मदद नहीं कर पाये।
हार कर विनय वापस उसी घर में आ गया जिसमें वो पहले रहता था।
“सुख में इंसान भगवान को कभी कभार ही याद करता है लेकिन दुख आते ही उसे भगवान याद आ जाते हैं”
विनय भी सुबह शाम मंदिर से आने वाले भजनों को सुनता रहता और उन्हें दोहराता रहता लेकिन शर्म और झिझक के कारण से वो कभी भी मंदिर नहीं जा पाता था।
छह महीने बाद नवरात्र फिर से आए।
सब जगह खुशियाँ फैली हुई थी।
विनय अपने घर में गुमसुम सा बैठा हुआ था। तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई।
विनय ने जा कर दरवाजा खोला तो देखा सामने एक छोटी लड़की खड़ी थी।
“आप यहाँ हो? चलो आओ हम सब आपकी मंदिर में प्रतीक्षा कर रहे हैं, आपको गाना है”, उस लड़की ने कहा।
विनय के हाथ अपने आप ही जुड़ गए।
“मुझे क्षमा करें लेकिन मैं अब गाने के लायक नहीं रहा”, विनय ने थकी हुई आवाज़ में कहा।
“हमें पता है कि आप बहुत अच्छा गाते हैं, हम सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जल्दी से आ जाइए”, ये कह कर वो लड़की तेज़ी से मंदिर की तरफ चली गई।
विनय कुछ देर वहां खड़ा रहा और फिर धीरे धीरे करके मंदिर की तरफ बढ़ गया।
मंदिर में कोई आदमी भजन गा रहा था।
विनय को देख कर वो एकाएक चुप हो गया। विनय ने फिर गाना शुरू किया। उसके कंठ से आज और भी ज्यादा मधुर आवाज़ निकल रही थी। लोग भावविभोर हो कर विनय को सुन रहे थे और साथ में सभी की आंखो से आँसू भी आने लगे थे।
विनय को खुद को आश्चर्य हो रहा था कि उसकी आवाज़ ठीक कैसे हो गई।
भजन समाप्त होने के बाद लोग विनय को उसकी आवाज़ सही होने की बधाई देने लगे लेकिन विनय की नज़रें उस छोटी लड़की को खोज रही थी। विनय ने उस छोटी लड़की को सब तरफ देखा लेकिन वो उसे कहीं पर भी दिखाई नहीं दी। विनय ने फिर दो चार लोगों से भी पूछा उन्होने बताया कि वहाँ कोई ऐसी लड़की आई ही नहीं थी।
विनय की नज़रें तुरंत देवी माता पर गईं तो उसे एहसास हुआ कि देवी माता उसकी तरफ देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही हैं। वो महिला और छोटी लड़की भी माता के साथ ही खड़ी थी।
ये देख कर विनय को सब समझ आ गया। वो फिर माता के चरणों में झुक गया।
“अपने इस नासमझ बेटे को क्षमा कर देना माता”, ये कह कर विनय की आँखों से आँसू गिरने लगे और इसी के साथ उसका घमंड, गुस्सा वो सब भी उन आंसुओं के साथ बह गया।
विनय की आवाज़ वापस ठीक होने की बात सुरेन्द्र के कानों में भी पड़ी तो वो वापस विनय के पास आए।
“चलो एक बार फिर से शुरुआत करते हैं”, सुरेन्द्र ने विनय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“मुझे क्षमा करें लेकिन अब मैं इन सब लोभ में नहीं पड़ूँगा, मुझे पता चल गया है कि मुझे क्या करना है, मैं यहीं खुश हूँ और मुझे इन्हीं सबमें सुकून मिलता है, मैं अब उस दुनिया में नहीं जाऊंगा, मेरी माता के चरणों में ही मेरी दुनिया है”, विनय ने हाथ जोड़ कर उनसे कहा।
“जैसी तुम्हारी इच्छा”, सुरेन्द्र ये कह कर वहाँ से चले गए और विनय फिर से माता के चरणों में आ कर बैठ गया।
उसे अब बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था।
“बोलिए देवी माता की जय 🙏🏻”
(समाप्त)