गावःपवित्रं परमं गावाे माङ्गल्यमुत्तमम् ।
गावःस्वर्गस्यसाेपानं गावाे धन्याः सनातनाः।।
____गायें परम पवित्र,
परम मंगलमयी ,
____स्वर्ग की साेपान,
सनातन एवंम
____धन्यस्वरूपा है ।
गवां हि तीर्थे वसतीह गङ्गा पुष्टिस्तथा तद्रजसि प्रवृध्दा ।
लक्ष्मीः करीषे प्रणतौ च धर्मस्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात् ॥
गौ रूपी तीर्थ में गंगा अादि सभी नदियाें तथा तीर्थौं का अावास है,
उसकी परम पावन धूलि में पुष्टि विद्यमान है, उसके गाेमय में साक्षात् लक्ष्मी है तथा इन्हें प्रणाम करनेमें धर्म सम्पन्न हाे जाता है ।
अतः गाेमाता सदा सर्वदा प्रणाम करने याेग्य है ।
गवां सेवा तु कर्तव्या गृहस्थैः पुण्यलिप्सुभिः।
गवां सेवापराे यस्तु तस्य श्रीर्वर्धतेचिरात्॥
प्रत्येक पुण्य की इच्छा रखने वाले सद्गृहस्थ काे गायाें की सेवा
अवस्य करनी चाहिये,
क्याेंकि जाे नित्य श्रध्दा भक्ति से गायाें कि प्रयत्नपूर्वक सेवा करता है , उसकी सम्पत्ति शीघ्र ही वृध्दि
काे प्राप्त हाेती है ,अौर नित्य वर्धमान रहती है ।
।।जय गौमाता ।। जय गोपाल।।