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जिन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है!

6 अगस्त 2022

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                                                       डा0 कुलदीप चौहान

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रात के दो बजे थे, ट्रेन किसी अज्ञात स्टेशन पर रूकी थी!

अज्ञात शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया था क्योंकि यहां अन्धेरा व्याप्त था, घनघोर अन्धेरा, शायद कोई छोटा स्टेषन होगा! हालांकि ट्रेन एक्सप्रेस थी इसके स्टॉपेज भी बडे स्टेषन है फिर भी यहां रूक गयी थी, षायद लाईन क्लीयर नही होगी! मै प्रथम श्रेणी के डिब्बे में अपने कूपे में था, हालांकि एक कूपे में दो बर्थ होती है किन्तु दुर्भाग्य से मेरा कोई सह यात्री नही था इस लिए यात्रा काफी उबाऊ लग रही थी, किताबें पढते-पढते भी जी भर गया था और पडे-पडे षरीर भी दुःखने लगा था!

षरीर को बेहतर ढंग की अंगडाई देने के लिए मै कूपे से बाहर आया,दरवाजे पर आकर बाहर झांक कर जगह का अन्दाजा लेने की कोषिश में दीदे फाडने लगा, जल्द ही मेरे दिमाग ने मुझे उपहास के भाव में नसीहत दी, कि आंखे है अन्धेरे में देखने वाली लालटेन नही!

अतः मै, बाहर देखने की बेकार की कोषिश को छोड कर टायलेट में आ गया!

टायॅलेट से निर्वत होकर मै थोडी देर तक यूॅं ही दरवाजे पर खडा रहा ! ट्रेन अब धीरे-धीरे आंगे को सरकने लगी थी ! वह अज्ञात स्टेषन जिसमें गहरा अन्धेरा व्याप्त था पीछे छूटने लगा!

जब ट्रेन ने रफ्तार पकड ली तब मै दरवाजा बन्द करके अपने कूपे की तरफ चल दिया!

जैसे मैने कूपे में कदम रखा तो किसी सुन्दरी को बालों में कंघी करते पा एक बार तो मै सकपका गया मैने बर्थ के नम्बर पर एक नजर डाली तो पाया मेरा बर्थ ही था! मुझे अच्छी तरह से याद था कि मेरे बराबर वाली बर्थ अनबुग्ड थी! फिर मेरे दिमाग ने सोचा षायद टी.टी. ने किसी को बुक कर दी होगी !

मै खामोषी से अपनी बर्थ पर बैठ गया! और टी.टी. को कोसने लगा ’कमबख्त ने सीट भी बुक की तो किसी लडकी को, आंगे का सफर तो और भी बोरिंग वाला गुजरने वाला था!

एक नौजवान और बला की खूबषूरत लडकी के साथ यात्रा काफी केयरफुली होने वाली थी केयरफुली इसलिए की मेरी किस्मत में ऊपर वाले ने बेसहारा नौजवान और खूबषूरत लडकियों को केयर करने की ही लिखी है! अन्जान बेसहारा मुसीबतजदा लडकी को न जाने कहॉं से मेरे पास भेज देता है फिर मुझे उसकी मदद करनी पडती है और इसी मदद-मदद में उससे दिल लग जाता है लेकिन जब वह मुसीबत से निकलती है तो अपना सहारा ढूॅढ कर मुझे ओ.क.े टा-टा, बायॅ-बॉय कर जाती है! और मै हर बार यही प्रण करता हूॅं की आंगे से मै हंसीनो के जाल में न फंसू लेकिन ऐसा हो नही पाता!

उस लडकी को मैने एक सरसरी नजर से ही देखा था फिर मै अपनी वह किताब निकाल कर पढने लगा जिसे मैने अधूरा छोडा था !

जल्द ही मै किताब के अल्फाजों की दुनियां मे खो गया!

‘‘सुनिये’’

अचानक एक मधुर आवाज ने मेरा ध्यान भंग कर दिया!

मैने देखा सामने सहयात्री वह खूबषूरत लडकी मुझे पुकार रही थी-‘‘आपने मुझसे कुछ कहा?’’

लडकी ने दाएं-बाएं, इधर-उधर देख कर कहा-‘‘ और कोई तो नजर आ नही रहा है यहां पर!’’

’’जी कहिए?’’-मैने सकपका कर कहा!

’’क्या कहूॅं?’’

‘‘अरे आप ही ने तो कहा कि आपको कुछ कहना है?’’

‘‘अच्छा मुझे कुछ कहना था, आपके चक्कर में भूॅल ही गयी मुझे क्या कहना था’’

‘‘मेरे चक्कर में?’’-मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा!

‘‘इसमें हैरान होकर मेरी तरफ देखने वाली बात क्या है?’’

उसने बेतकुल्लफी से मेरी तरफ देखते हुए कहा!

मैने खामोषी को अपनाने में अपनी भलाई समझी, वापस अपना ध्यान किताब में लगाने की कोषिस करने लगा!

‘‘सुनिये’’

‘‘जी बोलिये’’-इस बार मेेरा ध्यान उसकी तरफ भी लगा हुआ था!

‘‘इस ट्रेन का आखिरी स्टेषन कौन सा होगा?’’

‘‘जम्मू’’-मैने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया!

‘‘आप कहां तक जा रहे है?’’

‘‘आपको मुझसे क्या लेना, आपको कहां जाना है?’’

‘‘मुझे वही जाना है जहां आपको जाना है!’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘टिकट तो आपको ही बनवाना है मेरा’’

‘‘आपका टिकट मै क्यों बनवाऊंगा’’

‘‘क्योंकि आप एक भले इन्सान है और बेसहारा, मजलूम लोगों की मदद करना आपकी खूबी है!’’

‘‘किसने बताई मेरी ये खूबियां, मै तो आपको जानता तक नही आप मुूझे कैसे जानती है?’’

‘‘किताब पडने का मुझे भी षौक है, आप मषहूर लेखक अषोक है‘ न’?’’

‘‘ओह आप रीडर है, तभी मै चक्कर में पड गया कि मुझे कोई अजनबी कैसे जानता है?’’-मेरी हैरानी की क्षुदा उसके जवाब से षांत हुई! उसकी बातों में पडकर एक बार को मै भूल गया कि मै एक राइटर हूॅं और मेरे सबसे ज्यादा रीडर तो नौजवान लडकियां ही है, असल में मै अपने जीवन में कई तरह की लडकियों से टकराया हूॅं, लेकिन यह लडकी कुछ अलग तरह के व्यक्तित्व वाली लगी!

‘‘आपके सभी उपन्यास आपके साथ घटी सच्ची घटनाओं पर आधारित होते है इसीलिए मुझे पता है कि आप हैल्पिंग नेचर वाले व्यक्ति है!’’-उसने मेरी तरफ प्यार और अपनत्व भरी निगाहों से देखते हुए जवाब दिया!

‘‘आप कहां से ट्रेन में चढी?

‘‘अभी पिछले स्टेषन से!’’

‘‘यह स्टेषन कौन सा था?’’

’’बिजनौर’’

‘‘बडा स्टेषन है?’’

‘‘नही कस्बा है’’

‘‘तो आप बिजनोर में रहती है?’’

‘‘नही!’’

‘‘तो फिर यहां क्या कर रही थी?’’

‘‘ट्रेन में चढने आयी थी?’’

तभी टी.टी. महोदय ने कूपे में प्रवेष किया!वह उस लडकी को देख कर चौंका-आप?’’

‘‘जी यह मेरी साथी है!’’-मैने जवाब दिया!

‘‘आप लोग टिकिट दिखाईये ’’

’’मेरा टिकिट ये रहा और इसका बना दीजिये’’

टी.टी. ने  उस अजनबी लडकी का टिकिट गुजर चुके एक बडे जंक्षन से जम्मू तक का बनाया तब मुझे पता चला उसका नाम! उसका नाम ‘जेस्मीन फय्याज था’

टी.टी. के जाने के बाद जेस्मीन मुझसे पुनः मुखाबित हुई-‘‘ लेखक जी सच में आपसे मिल कर मेरी भावनाएं एक हिरनी की तरह कुलांचें मार रही है मन कुछ गाने और नाचने का कर रहा है! मै तो यूॅं ही अपनी जिन्दगी को एक कटी पतंग की तरह लेकर निकल पडी थी मुझे नही पता था कि इस अन्जानी राह में मुझे पहले कौन टकराने वाला है, लेकिन इतना जरूर मेेरे मन में था कि राह की षुरूवात में मुझे जो भी जैसा भी राही मिलेगा मेरी जिंदगी की राह भी उसी दिषा में परिवर्तित हो जाएगी।’’  

‘‘हूॅं, इसका मतलब ये हुआ की आपको यदि कोई बुरा राही टकरा जाता तो आप बुराई के दल दल में समा जाती’’

‘‘हॉं यदि मुझे गुनाहों के दल दल में उतरना पड जाता तो मै उतर जाती’’

‘‘अभी आपने यह तय कैसे मान लिया कि आप गुनाह से बच गयी है’’

‘‘क्यों आप मेरे साथ गुनाह करेंगें’’

‘‘क्यों मैने क्या समाज सेवा करने का ठेका ले लिया है, मै भी इन्सान हॅूं मेरा भी दिल है, तुम एक खूबषूरत जिस्म हों मुझे भी इसे पाने की लालसा हो सकती है, अन्य पुरूशों की तरह?’’

‘‘मै तैयार हूॅं, मैने तो आपको कह ही दिया था कि मै अपनी जिंदगी को एक कटी पतंग की तरह लेकर निकली हॅंू जो भी चाहें लूट कर अपने कब्जे में कर सकता है और जितने दिन तक चाहें मौज कर सकता है’’

जेस्मीन ने पूरी गम्भीरता से मेरी आंखें में आंखें डालकर बेबाकी से कहा। मुझे जेस्मीन की आंखें में एक आक्रोश नजर आया।

यह आक्रोश, इन्सानी रिष्तों की खोखली बुनियाद के साथ-साथ दुनियां बनाने वाले के ऊपर भी था।

मैने जेस्मीन से कुछ नही कहा, अपनी बर्थ पर अराम से लेट गया, मै सोचने लगा कि आखिर जेस्मीन की जिंदगी में ऐसा क्या घटा था जिसके कारण उसकी भावना एक दम से षून्य हो गयी थी।

अचानक मैने अपने हांथ में मुलायम स्पर्ष का अहसास किया मैने देखा कि जेस्मीन मेरे करीब खडी थी और उसने मेरे हांथ को थाम रखा था।

मेरे षरीर में सनसनी सी हुई, वह मध भरी निगाहों से मुझे देख नही थी। 

’’क्या बात है आप अपनी सीट से उठ कर क्यों आयी है?’’

‘‘आपका कर्ज उतारने आयी हूॅं’’

‘‘कौन सा कर्ज?’’

‘‘अभी आपने जो मेरा टिकिट जो लिया है उसकी कीमत’’

‘‘कहां है?’’-मैने उसके खाली हांथों को देखते हुए पूॅंछा।

‘‘पैसे नही दे रही हूॅं?’’

’’फिर ?’’

‘‘मेरे पास जवानी की दौलत है उसे देने आयी हूॅं।’’

‘‘यह क्या बेहूदगी है’’-मै गुस्से से कांप उठा।

‘‘आप ही ने तो कहा था कि आपने समाज सेवा बन्द कर दी है, और आप मेरे खूबषूरत जिस्म की ख्वाहिष रखते है, आपने जो मेरी मदद की थी उसकी कीमत आपने मांगी थी’’

‘‘मैने कुछ भी बड बडाया और तुमने उस पर अमल करना षुरू कर दिया, तुम्हें अपनी इज्जत की परवाह नही है जिस्म का सौदा करना क्या आसान बात है, तुम्हारा दिल इसे करने की गवाही कैसे कर गया?’’

’’मेरा दिल अब खत्म हो चुका है। इस एहषान फरामोष और मतलब फरोष दुनियां ने मुझे इस कदर हर्ट किया है कि दिल और जज्बात, भरोसा और प्यार के रिष्ते बेमानी हो गये है, आज के दौर मे बस हर कोई जिस्म का दीवाना और भूखा हो गया है, क्यों और किसके लिये मै अपने जिस्म की सिक्योरिटी में जिन्दगी की परेयषानियां झेलूॅं?’’

अब जेस्मीन की नजरों में मस्ती की जगह दर्द की परछायी नजर आने लगी थी! गुस्से में मैने जो अल्फाज उससे कहे थे मुझे उसका पछतावा होने लगा था! मै षर्मीन्दगी के साथ उससे बोला-’’मुझे मांफ कीजियेगा जेस्मीन मैने किसी और की झूॅंझल आप पर उतार दी थी मेरी मंषा यह बिल्कुल नही थी, मै किसी की मजबूरी का फायदा उठाने वाला षख्स कदापि नही हूॅं! तुमने मेरे बारे में गलत अन्दाजा कर लिया है, मैने आपको हर्ट किया मै इसके लिये षर्मिंदा हूॅं।’’-इतना कहते कहते मेरी आंखे भर आयी!

‘‘आषोक जी मै जानती हॅूं कि आप एक नेक इन्सान है, और मै आपके कहने के भाव से ही समझ गयी थी कि आपने यह बात किसी झुझंलाहट में कही थी, और वह झुझंलाहट आपको अपने ऊपर ही आ रही थी अपनी मदद करने वाली फितरत पर, लोगो ने आपका खूब इस्तेमाल किया होगा, ऐसा मेरा अनुमान है आपकी रचनाओं को पढने स,े पर यकीन मानिये मै इस वजह से आपके पास नही आयी हूॅं, मुझे लगा कि आपसे हर किसी ने लिया ही लिया है कभी आपको कुछ दिया नही है, मै यदि आपको कुछ खुषी दे दूॅं तो षायद आपके अन्दर का नेक इन्सान जो कि हर्ट हो चुका है टूटने से बच जाये!’’

‘‘तुमने फिर से गलत समझा है जेस्मीन, मुझे जिस्म की खुषी नही चाहिए, यह खुषी मात्र कुछ पलों की है, यह तो एक तरह का नषा है, जो कुछ ही देर के लिये चढता और उतर जाता है, मुझे सच्चे प्यार की तलाष है जो कि मुझे अभी तक नही मिला है, खैर छोडिये इन बातों को यह बताइये कि क्या आपने मेरी सभी रचनाएं पढी है?‘‘

’’हां मैने आपकी हर किताब और कहानियां पढी है, एक तरह से मैने केवल आपको ही पढा है, वैसे तो मुझे किताबें पढने का बहुत षौक है, लेकिन आपकी रचनाओं में हकीकत से रूबरू हो जाती हूॅं।

‘‘कोई ऐसी रचना बताओ जो अपके दिल को ज्यादा छू गयी हो!’’

‘‘मुझे तो आपकी सारी रचनाएं दिल को लगती है!’’

‘‘फिर भी कोई एक विषेश जरूर होती है!’’

‘‘आप बताइये आपको अपनी कौन सी रचना ज्यादा प्रभावित करती है?’’

‘‘तुम बहुत चतुर हो जेस्मीन गंेद को बडी चतुराई से मेरे पाले में ढकेल दी’’

‘‘आषोक जी आपकी रचनाओं को रेटिंग देना मेरे लिए संभव नही है, आपकी हर रचना एक दूसरे से बेहतर ही है’’

’’तुमने मेरी अभी नवीनत्म रचना पढी है?’’

‘‘तीन बार जिंदगी तीन बार मौत?’’

‘‘हॉं बिल्कुल ठीक कहा ‘तीन बार जिंदगी तीन बार मौत’ इसी रचना पर हम लोग चर्चा करते है ताकि सफर आराम से कट जाये, अब तुम आराम से अपनी सीट पर बैठ जाओ!’’

‘‘अगर मै आपके पास बैठ जाऊं तो कोई एतराज?’’

‘‘नही’’- मैने फौरन जेस्मीन को बैठने का स्थान दे दिया।

बात षुरू हुई मेरी नयी रचना के पात्रों के चरित्रों पर।

‘‘जेस्मीन आपको इस उपन्यास में कौन सा करेक्टर अच्छा लगा?’’-मैने पूॅंछा।

‘‘मुझे मानव आहूजा ने काफी प्रभावित किया था, समीर एक लूजर करेक्टर लगा, उसने जिंदगी में हर चीज खोयी ही है पा नही सका, जबकि एक लेखक होने के कारण आपकी उस करेक्टर के प्रति काफी सेंपेथी रही।’’

‘‘आप सीमा, सना, और षहाना के बारे में क्या कहना चाहोगी?’’

‘‘सीमा एक टेडेषनल लडकी थी, सना कमजोर मनोवृति की थी जबकि षहाना अपनी इच्छाओं का बार बार दमन करने वाली और सच्चे प्यार को न पहचान सकने वाली लडकी लगी इसीलिये वह बार बार हर्ट होती रही, हालांकि उसे जो भी षख्स मिला हर्ट करने वाला ही मिला और आपने इसमें उसकी किस्मत को ही दोश माना है लेकिन मै, आपकी इस बात से इत्तफाक नही रखती!’’

‘‘वो क्यों?’’

‘‘वो इस लिये कि षहाना को समीर जैसा पाक पवित्र सोच रखने वाला इन्सान मिला और यह भी उसकी किस्मत थी कि वह उससे प्यार करने लगा था, नो नीड वाला प्यार, निःष्वार्थ प्यार की भावना रखने वाले लोग कहां है आज कल पति-पत्नी का रिष्ता तो मेरी नजर में सबसे स्वार्थी है, खास तौर से पति नाम का प्राणी पत्नी को अपनी कनीज बना कर रखता है, चाहें दबा कर, या फिर प्यार जता कर अपना स्वार्थपूरा करते रहते है औरत तो हमेषा इमोष्नली ब्लेकमेल होती रही है या दबती रही है!’’

‘‘तुम्हारा मतलब ये है कि औरत हमेषा से मासुम रही है और मर्द क्रूर?’’

‘‘सभी मर्द क्रूर नही होते और सभी औरते भी सती सावित्री नही होती लेकिन औरत के प्रति नजरिया हर मर्द का एक सा ही रहता है, हां कुछ मर्द अपने नजरिये को बदल लेते है और कुछ तो बदलने का ढोंग करते है और पकडे भी जाते है यदि औरत भावनाओं में न बहे!’’

‘‘जेस्मीन मै आपकी इस बात से सहमत हॅूं जो अभी कही है, लेकिन इस सबके बाद भी तो लडकियां एैसे लडकों ही पसन्द करती है, समीर जैसों के साथ तो बस अपना मकसद हल करती है, जबकि विमलेष, अषरफ, रईश, षाबेज जिनकी नजर में औरत केवल एक जिस्म है, इन्हें हमेषा लडकियों का प्यार मिलता रहा है और लडकियां इनकी दीवानी हो जाती है, क्योंकि ये लोग बातों के धनी होते हैं, प्यार को प्रजेंट करने का सलीका आता है, लडकियों को क्या पसंद है क्या नही यह जान लेते है, यानि कि भावनाओं के प्रवीण सौदागर है, मिन्टों में लडकियां इनकी भावनाओं के भंवर जाल में फंस जाती है और फिर निकल नही पाती है!’’

‘‘आपने सही कहा, षहाना जानती थी की मानव आहूजा एक मक्कार इन्सान है और वह झूॅंठ पर झूॅंठ बोलता जा रहा है, लेकिन इसके बाद भी वह उसकी हर बात में आ जाती थी, इस चक्कर में समीर से भी उसका झगडा हो गया, षहाना जैसी समझदार लडकी भी अक्ल की अंधी हो गयी थी, लेकिन आपने तब भी उसे दोशी नही होने दिया आखिर आप महिला चरित्र के फेवर में क्यों रहते है?’’

‘‘क्योंकि मेरी नजर में औरत प्यार की देवी होती है उसके प्यार में स्वार्थ नही होता वह जिससे प्यार करती है उसे अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है, वह जिस भी पुरूश से प्यार करती है उसे अपना तन मन और धन सब सौंप देती है, घर में एक पत्नी की तरह उसका इन्तजार करती है उसके घर का सारा काम करती है, संतान पालती है, इच्छा हो या न हो, बीमार हो या सही हो रात को बिस्तर पर पुरूश की जिस्मानी भूख मिटाती है, और पुरूश इसके बाद करवट बदल कर सो जाता है, पलट कर पूॅंछता भरी नहीं कि उसके प्यार में कोई कमी तो नहीं रह गयी। जबकि औरत चुप चाप पुरूश का हर स्वार्थ निभाती रहती है, क्योंकि उसने खुद को उसके स्वार्थ केे आगे समर्पण कर दिया होता है, और वह निभाती रहती है अपना धर्म समझ कर, जबकि पुरूश तो अपना कोई धर्म स्त्री के प्रति समझता ही नही है, लडका जब किसी लडकी की सुन्दरता से मुग्ध होकर उसे प्रभावित करने की चापलूसियां षुरू कर देता है और उसे अपने प्यार का आदि बना कर उससे षादी कर लेता है

तब वह अपना प्रेमी वाला चोला बदल कर अपनी औकात में आ जाता है, और जब प्यार की खुमारी उतरती है तब दोनो का जीवन कठिन हो जाता है!’’

‘‘तो इस लिये आप औरत का हमेषा फेवर करते है, अगर ये ही बात है तो षहाना ने तो कही भी कम्प्रोमाइज नही किया पहले मानव, फिर अषरफ, रईष और षाबेज से तो षादी भी की अन्त में उससे भी अलग हो रही है!’’

‘‘हुई तो नही वो अलग, अभी तो उसके मन में आक्रोश है, पछतावा है !’’

‘‘उसने षादी क्यों की? वो अपनी उस जिंदगी को याद करके ज्यादा दुःखी हो रही थी जब वों आजाद थी अपनी मन की मालिक थी, जिससे चाहें रिष्ता रखती या न रखती, लेकिन षादी के बाद तो जो उसका पति कहता वही करना पड रहा था, किससे रिष्ता रखना किससे नही उसकी मर्जी पर था!’’

‘‘नही, वह इस बात से दुःखी थी की षादी से पहले षाबेज बिल्कुल अलग करेक्टर था, उसे लगा था कि षाबेज ही उसकी हर भावना समझने वाला मर्द है, उस पर पूरा यकींन रखने वाला, लेकिन षादी के बाद तो वह एक दूसरा ही करेक्टर नजर आ रहा था!’’

‘‘यह षहाना की ही गलती थी कि उसने समीर को नही समझा’’

‘‘ इन्सान अपने ही करमों का फल प्राप्त करता है चाहें औरत हो या पुरूश’’

‘‘आपने षहाना की कहानी भी काफी दर्द भरी लिखी है, उसकी जिन्दगी में जख्म ही जख्म है, अगर हकीकत में किसी को इतने जख्म मिले तो वो अपनी जान ही दे दे!’’-जेस्मीन एक दम भावुक होकर बोली।

’’मेरी कहानी का करेक्टर षहाना का जीवन बडा ही कश्ट भरा रहा, और उपन्यास के अन्त तक वह सुख की तलाष मे ही रही, तुम्हें कहानी में सबसे ज्यादा प्रभावित किस अध्याय ने किया!’’

कही न कही हकीकत में किसी की जिन्दगी की बायोग्राफी भी हो सकती है!’’-जेस्मीन ने मेरी तरफ देखते हुए कहा!

’’जेस्मी!’’-मै जानबूझकर जेस्मीन का नाम ’निक’ में कनर्वट करते हुए बोला-’’लेखक खुद कुछ नही लिखता है बल्कि उससे ऊपर वाला ही लिखवाता है, इस लिए वो जो कुछ भी लिखता है उसके ही किसी बन्दे की बायोगा्रफी ही होती है!’’

‘‘मै तो ऐसी जिन्दगी को लानत भेजती हॅूं!’’- घायल मनोदषा से जेस्मीन ने कहा! कुछ ठहर कर वह पुनः बोली-

‘‘बुरे से भी अगर बुरा हो सकता है, वो घटा है मेरे साथ!’’

’’क्या तुम अपनी दास्तान मुझे बताओगी!’’

‘‘कहानी लिखने के लिए?’’-जेस्मीन ने पूॅंछा!

‘‘नही, अभी तो एक दोस्त होने के नाते सुनना चाहता हूॅं, लेखक बनकर नही!’’

‘‘आपको मै जरूर बताऊगी, क्योंकि आपका नया उपन्यास पढने के बाद ही मैने यह सोच लिया था कि जिन्दगी की इतनी बारीक समझ रखने वाले से कभी किसी मोड पर मुलाकात हो गयी तो मै अपनी दास्तां सुनाकर पूछूॅंगी कि बताओ अब मेरी जिन्दगी का इरादा क्या है?’’

‘‘मै, किसी की जिन्दगी के भविश्य के बारे में भला क्या बता सकता हॅूं, यह तो ऊपर वाले के अख्तियार में है!’’

‘‘लेकिन मुझे यह यकीन है कि आप के अन्दर वो क्षमता है, मेरी जिन्दगी में अगर कोई अच्छा पल आया है तो वह है आपसे सरप्राइजली मुलाकात, मेरा जन्म राजस्थान के एक पिछडे गांव में हुआ था। और जेस्मीन अतीत की गहरी नींद की आगोष में चली गयी, उसके अतीत में जैसे मै भी उसी के साथ चला गया था!

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होश सम्हालते ही मैने पाया कि मै, अपने अब्बू अम्मी की दूसरे नम्बर की संतान थी, मेरे बाद मुझसे दो साल छोटा एक भाई था, मुझसे तीन साल बडी मेरी बहन थी मेरे अब्बू दो लडके और चाहते थे, उन्होंने मेरी अम्मी को तो बस संतान बनाने वाली मषीन समझ रखा था, औलादें पैदा करते चले गये, मुझसे दो साल छोटे भाई के एक साल पूरे होते होते एक बहन और आ गयी!

अपने अब्बू के जुल्म को सहने वाली मेरी अम्मी पर मुझे तरस कम और गुस्सा ज्यादा आता था!

औलाद पैदा करने का भूत मानो मेरे अब्बू पर परमानेन्ट चिपक गया था!

उनका टार्गेट था तीन लडके पैदा करने का और मेेरे ग्यारह साल की होते होते मेरे सामने एक बहन और आने के बाद तीसरा भाई भी आ गया!

अब तक मेरी अम्मी एक बीमारी का घर बन चुकी थी!

इस कदर उनका जिस्म खोखला हो गया था कि बस घिसट रही थी!

उनकी औलादों को पालने का जिम्मा एक तरह से मुझ नन्हीं जान पर ही आ गया था!

मेरी अपिया की षादी एक बिजनेस मैन से कर दी गयी थी, वो विजनेस मैन जरूर था लेकिन गंवार और अनपढ घटिया आदमी निकला था!

आये दिन मेरी अपिया साबेहा चुप चाप अपने आंशू बहाते रहती थी!

बारह साल की उम्र में ही मुझे हर रिष्तों की समझ आ गयी थी!

‘मै, अपने छोटे भाई से बहुत मुहब्बत करती थी, क्योंकि वो मेरे साथ ज्यादा रहता था जबकि साहेबा के साथ मेरा

ज्यादा वक्त नही गुजरा था, छोटे भाई बहनों केे साथ मै ही रहती थी इसलिये उनका मुझसे ज्यादा लगाव था!

बाजी से अगर अटेचमेंट था तो मुझसे ही था! 

एक दिन मैने उन्हें छत केे ऊपर रोते पकड लिया!

मैने एक मां कि तरह उससे पूॅंछ लिया-‘‘बाजी आप रोती क्यों है, मुझे बताओ?’’

डूबते को तिनके का ही सहारा काफी होता है! बाजी ने मेरी भावना का सहारा पाया तो वो मुझसे चिपट कर बेतहाषा रोने लगी!

मै भी उन्हें अपने सीने से लगाये रोने ही दे रही थी, साथ ही दिलाषा देने वाले भाव से उसकी पीठ भी सहला रही थी!

मै जान रही थी की साहेबा के साथ कुछ अच्छा नही गुजर रहा था।

मै साहेबा के चुप होने का इन्तजार करने लगी।

मुझे उत्सुकता जरूर थी कि आखिर साहेबा के साथ क्या गलत हो रहा था।

साहेबा न जाने कितनी देर तक रोती रही होगी, मै वक्त का अन्दाजा नही कर सकी थी।

आखिरकार हिचकिया थमने लगी थी साहेबा की।

‘‘बेबी’’-साहेबा मेरी तरफ देखते हुए बोली-‘‘मै जीना नही चाहती, मै तुझे अपने सारे जेवर दे रही हॅूं, तू उन्हें अपने पास ही रखना वो तेरे काम आयेगें!’’

‘‘बात क्या है, बाजी!’’

‘‘कुछ नही बेबी, मेरा दिल अब इस दुनियां से भर गया है!’’-साहेबा की आंखें एक बार फिर डब डबा आयी।

‘‘बात क्या है बाजी? आपको बताना होगा?’’

‘‘तू नही समझेगी अभी बच्ची है, यह बडों की बातें है’’

‘‘वक्त ने मुझे बहुत जल्दी बडा कर दिया है बाजी, आपको मेरी कसम बताओ न आपको क्या तकलीफ है?’’

‘‘बेबी, मै तेरे जीजा से तंग आ गयी हूॅं, उन्होंने मेरा जीना मुहाल कर दिया है’’

‘‘आप ये बात अब्बू से कहिए’’

’’ बेबी तुम अभी अब्बू को नही जानती, यहां हर आदमी कई-कई मुखौटे लगा कर जी रहे है, अभी तक तुमने अब्बू का प्यार ही तों देखा है लेकिन ये प्यार जहर से भी जहरीला है, तुम अम्मी की हालत नही देख रही हो!’’

‘‘तुम फिक्र मत करो बाजी मै कुछ करूंगी, लेकिन अल्लाह के लिये कभी मरने की बातें मत करना!’’

’’तुम क्या कर पाओगी बेबी?’’

‘‘मै कुछ न कुछ करूंगी, अब्बू से मै ही बात करूंगी!’’

‘‘अब्बू को कुछ मत बताना मेरी बहन!’-साहेबा एक दम गिडगिडा कर बोली।

‘‘ठीक है, लेकिन मरने के बारे में भूल कर भी मत सोचना!’’

‘‘हां नही सोचूॅंगी!’’

‘‘वादा!’’

‘‘हां वादा!’’

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नौ साल का आमिर माषा अल्लाह हाईट में मेरे बराबर आ गया था! मुझे उससे बहुत मुहब्बत थी, सभी भाई बहनों में

मुझे उसी से लगाव, पढने में भी वो काफी तेज था! पढाई से मुझे भी काफी लगाव था, मैने खुद का आई.पी.एस. बनने ख्वाब देख रखा था, और इसके लिये खुद को पढाई में झोंक रखा था मै स्वयं तो पढती थी आमिर को भी पढाती थी!

साहेबा की परेषानी के बारे में मैने उस मासुम से भी डिस्कस किया ! उसका तो खून खौल उठा लेकिन मैने उसके जज्बातों को काबू में किया, हालांकि बाद में मुझे पछतावा भी हो रहा था कि मैने उस बेचारे को बिना वजह टेंषन दे डाली थी।

मैने आमिर को अपनी कसम देकर इस विशय पर खामोेष रहने का वादा ले लिया था ।

लेकिन मै दिनरात इसी टेंषन में रहने लगी थी कि आखिर बाजी की प्रॉब्लम को कैसे षार्टआउट किया जाए ।

आखिरकार मैने स्वयं ही जीजा जी से बात करने का निर्णय लिया ।

मै बाजी के ससुराल बिना किसी को बताये पहुॅंची ।

सज्जाद भाई घर पर ही थे। सुबह का वक्त था वो जाने को ही तैयार थे,मुझे देखकर उनका चेहरा खिल गया।

पता नही क्यों मुझे उनके ये भाव कुछ अजीब से लगे,लेकिन मैने ध्यान नही दिया।

‘‘आईये बेबी आज हमारी याद कैसे आ गयी, माषा अल्लाह क्या रंग रूप निखर आया है हमारी साली साहेबा का’’ 

‘‘भाईजान मुझे आपसे बाजी के बारे में बात करनी है’’

पता नही क्यो मुझे वहां घुटन सी होने लगी थी इसलिये फौरन मतलब की बात पर आ गयी थी ।

‘‘क्या बात करनी है उसके बारे में?’’

‘‘वो इस बार काफी परेषान है’’

‘‘तो मै क्या करू?’’

‘‘वो आपकी बेरूखी से परेषान है’’

‘‘मुझे उससे मोहब्बत नही है, मुझे तुम पसंद हो अगर तुम हां कर दो तो दोनों साथ रह लेना’’

‘‘भाईजान आप तो काफी बेषरम हो गये है, आपकी गोद में खेली हूॅं, और आपके मन में मेरे लिये एैसे जज्बातों को पनाह दे रहे है’’

‘‘मुहब्बत के जज्बात पनाह पा रहे है, गुनाह के तो नही’’

‘‘यह गुनाह ही है?’’

गुस्से से मेरा चेहरा लहू की तरह सुर्ख हो गया था।

सज्जाद भाई मेरे बारे में ये ख्यालात पाले हुए होंगे इस बात की मैने ख्वाब में भी ताबीर नही की थी।

मुझे अपनी सुन्दरता पर बहुत ही जलाल आ रहा था, दिल कर रहा था कि मै खुद को मिटा दूॅं।

अब वहां पर रूकना मुझे बेमानी लग रह था, सज्जाद भाई के दिलों दिमांग पर मेरी जवानी का भूत सवार हो

गया था। बाजी की समस्या का हल तो मुझे होता नजर नही आ रहा था। कम से कम मुझसे तो नही ही।

‘देखिये भाई जान आप का अपना परिवार है, आपका मेरे प्रति ये सोचना गलत है, अल्लाह के लिये आप अपने मन को समझाइये और बाजी को दुःखी मत करिये’’

‘‘बाजी-बाजी तेरे को मेरे दुःख से कोई हमदर्दी नही है, मै दिन रात तेरे प्यार मे खोया रहता हूॅं कभी मुझ पर भी तरस खाया है, देख तू मान जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा रानी बना कर रखूंगा तुझे और तेरी बाजी को’’

सज्जाद भाई के सिर पर मेरे जिस्म का भूत सवार होता मुझे साफ नजर आ रहा था। मेरा वहां रूकना और 

सज्जाद भाई को समझाना फिजूल लग रहा था। मैने फिलहाल वहां से निकल चलने में ही अपनी भलाई समझी।


                                                         सज्जाद भाई की मौत

कहर भरी ही खबर थी बाजी के लिये! सज्जाद भाई ने आत्महत्या कर ली थी ! कोई भी उनके द्धारा उठाये

गये इस कदम का रहस्य नही जानता था ! मेरे लिये तो बाजी से भी भयानक सदमें जैसा था ! क्योंकि केवल

मै जानती थी की सज्जाद भाई ने आत्म हत्या क्यों की थी? 

मै खुद को इसका कारण मान रही थी जबकि मेरा खुदा जानता था कि यह मेरे अख्तियार में नही था !

फिर भी मेरी रूह इस बात के लिये मुझे ही दोशी मान रहा था !

मेरी बाजी का बुरा हाल था ! वह उनकी मौत का दोशी खुद को मान रही थी !

कैसी बिडंबना थी,? दोनों उस  ब्यक्ति की मौत का खुद को जिम्मेवार मान रही थी जो कि हकीकत में खुद ही अपनी मौत का जिम्मेवार था ! और एैसे षख्स के लिए खुदा भी मौत का तमन्नाई होता है !

जो कि जिस्म की ख्वाईष में रिष्तों को भी कलंकित करने में गुरेज नही कर रहा था।

लेकिन जो भी हुआ था, अच्छा तो नही ही हुआ था ! समय गुजरने लगा बाजी की इददत् का समय गुजर गया

पापा को बाजी की चिन्ता सताने लगी थी ! जवान लडकी का विधवा हो जाना एक बडा गम तो था ही अब

उनको दुबारा से स्थापित करने की एक बडी जिम्मेवारी उनके कंधो पर आ पडी थी !

वक्त तेजी से करवटें लेने लगा था ! बाजी के लिये एक रिष्ता मिल गया था, पापा ने बिल्कुल भी देर नही 

की बाजी हालांकि दिल से षादी के लिये अब तैयार नही थी ! उन्हें पहला ही अनुभव उनको एक बडा घाव

दे गया था ! लेकिन वह चाह कर भी कुछ नही कर सकती थी !

सच बात तो यह थी कि बाजी की षादी षुदा जिन्दगी को देख कर षादी के प्रति मेरा इरादा भी बदल गया

था ! मैने मन ही मन ये ठान लिया था कि कुछ भी हो मै षादी नही करूंगी! मै खुद को इस काबिल बनाऊगी

कि मुझे किसी के सहारे की जरूरत ही न पडे।

बाजी को सज्जाद भाई से बेपनाह मोहब्बत थी, वो उनकी यादों से निकल नही पा रही थी !

यानि कि एक एैसे षख्स से मुहब्बत, जिसकी नजर में मुहब्बत केवल जिस्म की ख्वाईष भर थी।

मुझे कुछ धुंधला सा याद पड रहा था कि मेरी बाजी से षादी करने के लिये सज्जाद भाई दीवानों की तरह पीछे पडे थे,उस समय उनको मेरी बाजी के सिवा कुछ भी नजर नही आता था! बाजी को पाने की हसरतों ने उनकी रातों की नींद उडा रखी थी! बाजी भी उनकी चाहत की कायल हो चुकी थी! वह सज्जाद भाई की चाहत को पाकर खुद को बडा खुषनसीब समझ रही थी!

सज्जाद भाई दिन में तीनो पहर बाजी से फोन पर बात करते रहते थे।

दोनों पल-पल का हिसाब एक दूसरे को देते थे।

इन दोनों की मोहब्बत बेहिसाब परवाज कर रही थी।

पता नही क्यों मेरे अब्बू सज्जाद भाई को पसंद नहीं करते थे।

जबकि सज्जाद भाई षरीफ और खूबषूरत होने के साथ-साथ कमाऊ पूत भी थे।

अपने घर की जिम्मेवारी उन्होंने अपने कंधों पर उठा रखी थी।

लोग उनकी काफी तारीफें करते थे।

मेरी बाजी सज्जाद भाई से मोहब्बत तो करती थी लेकिन वह इस बारे में अब्बू को बताने का साहस नही रखती थी। वही ही क्यों मेरे अब्बू से अपनी बात रखने का साहस कोई भी नही रखता था।

अब जो भी कुछ करना था सज्जाद भाई को करना था।

सज्जाद भाई भी गजब का दिमाग रखते थे।

उन्होंने यह पता लगाया कि मेरे अब्बू सलमान चचा की काफी इज्जत करते है और उनका हर कहना मानते है,बस सज्जाद भाई को सलमान चचा तक पकड करनी थी।

सलमान चचा मेरे अब्बू के विजनेस पार्टनर थे।

जब मेरे अब्बू अपना गांव छोडकर इलाहाबाद आये थे,तब सलमान चचा ने ही उन्हें सहारा दिया और रोजगार से लगाया। यही नही मेरे अब्बू का निकाह भी कराया था। अब कोई भी समझ सकता है कि सलमान चचा मेरे अब्बू के लिए क्या अहमियत रखते होंगें।

सज्जाद भाई की सलमान चचा से डायरेक्ट कोई वाकिफकारी तो थी नही इसलिए वो एक एैसे सूत्र की तलाष में जुट गये जिससे सलमान चचा तक पहुॅंचा जा सके।

सज्जाद भाई को तो मेरी बाजी को हांसिल करने का जुनून सवार था।

स्थिति यहां तक थी कि वह बाजी के बिना जीने को राजी नही थे।

यही स्थिति बाजी की भी थी।

बाजी दिन रात दुआं करती रहती थी।

आखिरकार सज्जाद भाई कि कोषिसें रंग लायी।

सज्जाद भाई के दूर के रिष्ते में मौसी थी जो कि सलमान चचा की बहन लगती थी।

सज्जाद भाई ने उनसे बाजी के बारे में बात चलाने के बारे में कहा।

मौसी सज्जाद भाई को मानती भी बहुत थी।

मौसी ने सलमान चचा की बेगम के कान में सज्जाद की बात डाली।

सलमान चचा की बेगम ने सलमान चचा को बाजी के रिष्ते के बारे में सुझाया।

इस तरह बाजी का रिष्ता अब्बू तक पहुॅंचा।

अब्बू हालांकि सलमान चचा के इस पैगाम से अन्दर ही अन्दर नाखुष थे, लेकिन सलमान चचा के उन पर एहसान थे, और वो सलमान चचा की दिल से इज्जत करते थे इसलिए इन्कार नही कर सके और बाजी को मानों तीनों जहां मिल गये थे। उनकी खुषी का तो कोई ठिकाना ही नही था।

रिष्ते की रस्मों का मौसम सा चल पडा, छह महीने के अन्दर ही सज्जाद भाई की षरीके हयात बन गयी हमारी बाजी।

समय गुजरता रहा बाजी की षादी के पॉंच साल पंख लगाते ही उड गये।

यह बाजी की खुषकिस्मत कहिए या फिर अल्लाह जो करता है बेहतर करता है वाली बात।

बजी को अभी तक कोई संतान नही हुई थी, इस वजह से ससुराल में उसे बांझ का ताना बरदाष्त करना पडता था। कभी कभी तो सज्जाद भाई दूसरी षादी का जिक्र कर देते थे तो बाजी का कलेजा मुॅंह को आने लगता था।

लेकिन औलाद न होने की मायूसी षौहर के चेहरे पर अब लगातार नजर आने लगी थी।

बाजी को सज्जाद भाई का दुःख देखा नही जा रहा था, वह सज्जाद भाई से बेपनाह मुहब्बत करती थी एक दिन उन्होंने सज्जाद भाई से बात की।

‘‘आखिर बात क्या है जान मेरे, क्या आप खुष नही है मुझसे ?’’

‘‘मै अपने आप से और अपनी किस्मत से दुःखी हूॅ।’’

‘‘एैसा कौन सा गम है जो आप मुझसे नही कहना चाहते हो‘‘

’’मै अपना गम तुम्हें बता कर तुम्हें कोई गम नही देना चाहता हूॅं’’

’’क्या आपको मेरी मोहब्बत पर एतबार नही रहा।’’

‘‘एैसी बात नही है जानू।’’

’’तो बताइये न प्लीज आपको मेरी कसम है’’

‘‘हमारे पास कोई कमी नही है, अल्हाताला ने हमें सब कुछ दिया है लेकिन एक कमी और पूरी कर दे तों हमारी जिंदगी का अधूरापन खत्म हो जाएगा’’

मेरी बाजी सज्जाद भाई की बात फौरन समझ गयी।

‘‘आप तो अच्छी तरह जानते है कि मेरा इलाज चल रहा है, और डाक्टरों का कहना है कि मेरे अन्दर कोई कमी नही है एक बार आप भी अपनी जांच करा लीजिए न, हर बार जिस डाक्टर को मैने दिखाया मेरा टेस्ट कराने के साथ आपकी जांच को भी लिखा लेकिन आपने कभी भी जांच नही करायी हो सकता हो इस अधूरे इलाज के कारण हमें कामयाबी नही मिल रही हो।’’

बाजी कि इस बात से सज्जाद भाई भडक उठे।

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो मै नामर्द हूॅं।’’

‘‘मैने ये कब कहा, मैने तो डाक्टर की लिखी जांच कराने के बारे में कहा है, भला इस जांच से नामर्दी का क्या ताल्लुक।’’

‘‘मुझे कोई जांच कराने की जरूरत नही, डाक्टर फालतू की जांचे लिखते रहते है।’’

‘‘तो फिर मेरी जांचें क्यो बार बार हो रही है मेरा भी तो सब ठीक है।’’

‘‘क्योंकि मां औरत को ही बनना होता है और कमी के अवसर औरत में ही ज्यादा होते है, तुम्हारे अन्दर ही कमी है इसीलिए तुम मां नही बन पा रही हो, और कान खुल कर सुन लो तुम मै दुनिया वालों के तानों से तंग आ गया हॅॅंॅू। अगर तुम जल्दी मां नही बनी तो मुझे कोई फैसला करना पडेगा।’’

‘‘क्या फेसला करेंगें आप।’’

‘‘सुनना चाहती हो?’’

‘‘हां सुनना चाहती हूं।’’ 

‘‘मजबूरन मुझे दूसरी षादी के बारे में सोचना पडेगा।’’  

बाजी पर मानों एक साथ कई बिजलियां टूट पडी।

यह बात वो षख्स कह रहा था जो उससे बेपनाह मोहब्बत करता था।

जिसने उसे हांसिल करने के लिए कितनी तिकडमें भिडाई थी।

साल गुजरते ही दिल भर गया उससे।

मर्दों की यह कैसी मोहब्बत?

रोने के अलावा और कोई बात न कर सकी थी बाजी।

बस यहीं से बाजी की जिन्दगी बोझिल होना षुरू हो चली।

एक सज्जाद थे जिनकी नजर में मेरी चढती जवानी परवाज करने लगी थी और एक बाजी थी जो सज्जाद भाई की दूसरी षादी की मंषा जाननें के बाद भी उतनी ही मोहब्बत कर रही थी। 

उनके मन में सज्जाद को छोडने का कोई ख्याल नही था।

वह तो उनकी दासी बन कर भी उनके साथ जीवन गुजारने का सपना बुन रही थी।

लेकिन अल्लाहताला को यह मंजूर न हुआ।

अगर मै, अपने साथ हुए सुलूक को भी बाजी को बताती तो भी मुझे पता था कि बाजी उन्हें भूलने वाली और कुसूरवार मानने वाली नही थी क्योंकि मोहब्बत का जुनूनं स्वार्थ की पराकाश्ठा होती है, जिससे इन्सान पसंद करने लगता है उसकी कमियां वो देखना बन्द कर देता है, बस उसे हांसिल किए रहने की धुन सवार रहती है और उसके दूरगामी परिणाम की तरफ उसका ध्यान जाता भी है तो स्वार्थी तर्कों से झुंठलाकर वह अपने को उसी जुनूनं में रखें रहता है।

लेकिन खुदा के कहर से तो कोई नापाक इरादे रखने वाला बच ही नही सकता।

जबकि सज्जाद की मौत का दोशी मेरी बाजी मुझे ही मान लेती अगर उनके आत्महत्या की वजह पता चल जाती।

सज्जाद की खुषी के लिए बाजी मुझे भी षहीद करवाने से नही चूकती यह मुझे और अल्लाहताला दोनों को पता था।

मै परवरद्गिार की लाख लाख षुक्रगुजार थी जो कि उसने मुझे सज्जाद की हवस का निवाला बनने से बचा दिया।

सज्जाद की खुदकुषी की वजह को इसी अन्दाजे में रखा गया कि वह अपनी बीवी से बेपनाह मुहब्बत करता था और उसे बच्चा नही हो रहा था इस लिए उसने मानसिक तनाव के चलते अपनी जान दे दी।

इस बात के लिए भी अल्लाह का लाख षुक्र था कि सज्जाद अपने मरने का कोई खत लिख कर नही गया था नही तो मेरी जिन्दगी तबाह होनी ही थी।

दुनिया के लिए सज्जाद की मौत की वजह औलाद का न होना थी पर मै असली वजह को जानती थी सिर्फ मै और मरने वाला और अल्लाह।


                                                                इदद्त और निकाह

वक्त तेजी से गुजरने लगा था, एक महीने ही में सज्जाद भाई बीता हुआ कल बन चुके थे। उनकी मौत का गम अब धुंधलाने लगा था।

बाजी के भी अष्क अब सूख चुके थे। वक्त के मरहम ने बाजी को सब्र करना सिखा दिया था। 

यह सब देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि इन्सान के जीते जी माया है और उसके जाने के बाद उसका असर खत्म होते देर नही लगती।

सजाद की मौत से पहले कोई ये कल्पना भी नही कर सकता था कि ये बीवी और षौहर एक दूसरे के बिना जिन्दा भी रह सकते है।

इन दोनों की चाहत से परिवार के लोग काफी अभीभूत थे। लोग मिषाले दिया करते थे कि जोडा हो तो एैसा हो।

लेकिन कौन जानता है कि सामने से दिखनी वाली कोई खूबषूरत और कीमती लगने वाली दीवार अन्दर से एक दम खोखली होगी।

इन्सान बेषक खूबषूरत सपने देखता है और उसे साकार करने की कोषिस भी करता है लेकिन सपने साकार होने में केवल कोषिसे ही कामयाबी नही दे सकती उसके लिए तकदीर का साथ होना भी जरूरी है।

इस बात का यकीन मै नही करती थी लेकिन बाजी को देख कर मुझे यकीन करना ही पडा।

बाजी का सज्जाद भाई को पाने की बेपनाह तमन्ना उनकी कोषिसों से परवान चढी लेकिन वक्त ने इस कामयाबी का समय बहुत ही कम रखा।

आज वो एक बार फिर तन्हा थी।

अब उन्हें फिर किसी चाहत की कल्पना करनी होगी और उसे साकार होने की आषा भी रखनी होगी।

बाजी का बे औलाद होना और उनका खूबषूरत होना उनके लिए बहुत अच्छा साबित होने लगा था क्योंकि एक महीने बाद से ही रिष्ते आने षुरू हो गये थे।

सज्जाद की खुदकुषी करने का एक कारण ये भी चर्चा में था कि वो नामर्द था और औलाद पैदा करने की कूवत उसमें कभी पैदा नही हो सकती थी इसी के चलते उसने खुद को खत्म कर लिया था।

यह ‘चर्चा ए आम’ होने से बाजी को फायदा ही पहुॅचा रहा था।

वो बांझ के कलंक से आजाद थी।

लेकिन बाजी अभी तक सज्जाद की यादों में थी। पहले और गहरे प्यार की यादों में डूबने के बात उबरना आसान तो नही हो सकता।

षायद इसी लिए बाजी को षादी की चर्चा पर सख्त एतराज था।

लेकिन अब्बू के सामने अपना एतराज जताने का हौसला उनमें अब भी नही था।

वैसे भी उनकी जिन्दगी दागदार हो चुकी थी।

दाग विधवा होने का।

बाजी तो अपने जीवन को बेरंग मान चुकी थी।

लेकिन उनके इस दाग से अब्बू और अम्मी जरूर परेषान थी वो चाहते थे कि उनका निकाह हो और एक बोझ जो एक बार फिर उनके कन्धों में आ पडा था छुटकारा मिल सके।

जबकि मुझे षादी के नाम से ही चिढ होने लगी थी।

आखिर षादी के लिए मर्द ही क्यों?

मर्द जिसकी नजर में औरत केवल उसके जिस्म की भूख और उसके बच्चे पैदा करने की मषीन भर है।

औरत जब तक षुन्दर है और उसके जिस्म की आग बुझाने के काबिल है तब तक वह उसकी चापलूसी में आंगे पीछे घूमता रहता है जहां उसे कोई दूसरी औरत पसंद आयी तो कुत्ते की तरह उसे हांसिल करने के लिए दुम हिलाते दूसरी औरत के पीछे घूमने लगेगा।

छिः यह मर्द जात।

आखिर बाजी के लिए रिष्तों की लाईन एक बार फिर लगने लगी।

एक षब्बीर भाई जो कि स्वभाव से एक दम से संकोची थे षायद इसी कारण वो अपने मन की बात उस समय बाजी से नही कर सके थे वो बाजी को निकाह से पहले से चाहते थे लेकिन मोहब्बत ए इजहार में सज्जाद आगें निकल गये थे और वो बाजी की पहली मुहब्बत बन गये थे।

षब्बीर ने षादी नही की थी या उन्हें कोई पसन्द नही आ रही थी या कोई उन्हें रिष्ता दे नही रहा था इसके कई कारण थे। लेकिन षब्बीर ने यही प्रचारित कर रखा था कि वो षबनम से मुहब्बत करते है और उनकी याद में ही अपना सारा जीवन बिता देगें।

मर्दों के भी ड्रामों की कोई इन्तिहां नही।

षब्बीर के घर में छह भाई बहन और बीमार बूढी मां की जिम्मेवारी उनके कंधों पर थी। और जहां तक मेरी समझ थी तो कोई भी मां-बाप अपनी बेटी को इतने बडे परिवार में झोंकना नहीं चहेगा जबकि ऐसे परिवार की पूरी जिम्मेवारी उसी के 

कंधों पर हो। लेकिन षब्बीर ने जानबूझ कर अपना प्यार तब समाज वालों में फैलाया जब की मेरी बाजी की षादी हो गयी थी।

आज मौका देख कर षब्बीर भाई ने रिष्ता भिजवा दिया इस उम्मीद के साथ कि अब षायद ज्यादा कम्पटीषन नहीं हो।

लेकिन मेरी बाजी अभी भी सुन्दरता में कम नहीं थी।

अच्छे रिष्ते इस समय भी बाजी की झोली में आन पडे थे। अब सवाल सिर्फ उन्हें चुनने का था।

षब्बीर भाई की तरफ से कफी दबाव बनाया जा रहा था।

लेकिन मुझे प्यार मुहब्बत या चाहत से चिढ हा गयी थी।

पता नहीं क्यों मुझे यह सब बनावटी लगने लगा था। हकीकत में बनावटी ही होता है सब। कोई भी बाजार में वही वस्तु खरीदता है जो उसे लुभावनी, काम आने वाली लगती है। एैसा ही रिष्तों के मामले में भी होता है रिष्ते के लिए लोग सुन्दर लडकियों के घर ही लोग जाते है। किसी कुरूप के यहां नहीं।

जितनी बार षब्बीर भाई का मुहब्बत भरा पैगाम मेरे घर में भिजवाया जा रहा था उतनी ही उनके प्रति मेरे मन में चिढन होती जा रही थी।

सज्जाद भाई के प्यार को मै देख चुकी थी कुछ हद तक षब्बीर भाई की दीवानगी जैसी ही लग रही थी।

मै अर्न्तद्धंद में फंस गयी थी और खुद से ही तर्क-वितर्क करने लगी ।

मेरे दिमाग ने कहा कि सभी मर्द तो एक जैसे नहीं हो सकते।

जरूरी नहीं कि षब्बीर भाई भी वैसे ही निकले।

और फिर जितने रिष्ते आये है वो सभी मर्द ही तो है।

किसी न किसी के साथ तो बाजी को जाना होगा।

सभी आये रिष्तों में कुछ न कुछ तो कमियां है ही।

हां ये बात अलग है कि षब्बीर भाई का परिवार बडा भी है और जिम्मेवारी भी उनके पास ही थी इस लिहाज से वो कंपटीषन से पिछड रहे थे।

मेरे अब्बू जी को षहर से बाहर का एक रिष्ता पसंद आ रहा था।

लेकिन बाजी वहां जाना नही चाह रही थी। 

एक दिन बाजी ने मुझसे अपनी षादी के बारे में बात षुरू की।

‘‘जेस्मी आज अबू नहीं है मै उनसे अपने मन की घुटन बयां नहीं कर सकती एक तू ही है जो कि मेरी सहेली भी है और बहन तो है ही।’’

‘‘जी अपिया आप बताइये आपको क्या घुटन है।’’

‘‘एक तो मुझे दुबारा निकाह की इच्छा नहीं हो रही है, दूसरा मै षहर से बाहर नहीं जाना चाहती।’’

’’आपको षादी से बेरूखी क्यों हो रही है?’’

‘‘तू अभी छोटी है इन बातों को नहीं समझ सकती’’

‘‘तो फिर मुझसे बात क्यों कर रही है आप?’’

‘‘मन को हल्का करने के लिए’’

‘‘अपिया मन को तो तभी हल्का किया जा सकता है जब मन की बात को बाहर निकाला जाए।’’

बाजी ने हैरानी से मेरी तरफ देखा और बाली- ‘‘तू तो समझदारी वाली बाते सीख गयी है।’’

‘‘वक्त की ठोकरें सब कुछ सिखा देती अपिया।’’

‘‘जेस्मी, सज्जाद मेरा पहला प्यार था जिसे काल के क्रूर पंजों ने मुझसे छीन लिया है दो साल गुजारे हैं मैने उनके साथ उनके जिस्म की तपिष को अभी तक अपने तन-मन में बसा हुआ पाया है एैसे में कैसे मै किसी दूसरे को एसेप्ट करूंगी

मुझे यह सोच कर भी अजीब सा लगता है कि कैसे मै उसके प्रति अपनापन ला पाउंगी जब भी मै नये षख्स के सामने हूंगी बार बार सज्जाद मेरे अन्तर्मन के पर्दे पर नुमाईया हो जाएगा इस बात को लेकर मै गहरी उलझन में हूॅं कभी सोचती ही कि षादी न करूं और कभी सोचती हूॅं अभी मै अकेली हूॅं षादी कर लेनी चाहिए अभी उम्र भी है लेकिन क्या सज्जाद का साया मुझे छोडेगा।’’

‘‘अपिया आप यह सोचिये कि इदद्त से पहले और इदद्त के बाद में सज्जाद भाई के लिये जो गम आपमें था उसका पैमाना उतना ही है या अब कुछ खाली भी हुआ है।’’

मैने जो सवाल किया था उस पर बाजी सोच में पड गयी।

‘‘अपिया हकीकत में वक्त हर जख्म को भर देता है अभी सज्जाद भाई के बाद आपके जीवन में एक खालीपन आ गया है लेकिन जब उसमें फिर किसी नाम का रंग भरेगा तो पुराना रंग अतीत में कहीं दफन हो जाएगा और एक दिन इतिहास की बन्द किताब हो जाएगा जिसे षायद ही कभी पलट कर खोलने की जरूरत होगी।’’

‘‘लेकिन मै षहर में ही रहना चाहती हूॅं’’

‘‘षहर से तो एक ही रिष्ता आया है और वो है षब्बीर भाई का।’’

‘‘षब्बीर में क्या बुराई है।’’ - अचानक बाजी के सवाल से मुझे मन ही मन हैरानी हुई फिर पलक झपकते ही समझ गयी कि हकीकत में बाजी को दूसरी षादी में कोई उलझन नहीं थी। उलझन तो इस बात को लेकर थी कि रिष्ता षब्बीर से क्यों नहीं हो रहा है। बाजी अब भी पुरूश के प्रेम जाल में ही उलझी रहना चाह रही थी।

और हो भी क्यों न वो तो उन साधारण लडकियों की सोच वाली थी जो सपने में राजकुमार को देखती है सपनों का राजकुमार जो कि उसे प्यार करने वाला हो उसकी चाहत करने वाला हो जो उसे षारीरिक और मानसिक सुख जिन्दगी भर देता रहे और रोटी कपडा मकान से भरपूर रखे। एक बात का चेंज और मैने बाजी में देखा वो चेंज था मेरे नाम का।

वह पहली बार मुझे जेस्मी कह कर बोली थी जबकि आज से पहले मेरा निक नेम बेबी ही बोला करती थी मुझे उनके अन्दर आ रहे अजीब से बदलाव का अहसास हो रहा था।

मुझे उनके अन्दर केवल अपने जीवन के बारे में ही सोचते रहने का अहसास हो रहा था और षब्बीर भाई की दीवानगी का रंग उनके अन्दर घुलता हुआ मेरी छटी इन्द्री को साफ महसूस हो रहा था।

और अचानक मुझे याद आ गया कि जेस्मी कह कर षब्बीर भाई ही मुझे पुकारते है। अब मेरे दिमाग में स्पश्ट तस्वीर आ गयी थी।

वास्तव में बाजी भी एक नयी मुहब्बत का षिकार हो गयी थी और पुरानी मुहब्बत का इस्तेमाल केवल इमोष्नल ब्लेकमेल करने के लिए कर रही थी।

पता नहीं क्यों इसी पल मुझे बाजी के पास घुटन का अहसास होने लगा था।

मुझे उनके स्वार्थी होने के कारण एैसा महसूस हो रहा था।

कोई अपनी बहन को अपने लिए इस्तेमाल भी कर सकती है। यह मैने सुना तो था लेकिन आज देखा भी और उस एहसास से गुजरना भी पड रहा है। मेरी अपनी बहन मुझे इमेषनल तरीके से अपनी इच्छा को व्यक्त कर रही थी वो अपने लिए जो चाहती थी उसके लिए वह खुद कुछ भी करना नहीं चाह रही थी और आज भी बडी खूबी के साथ बेचारी बन कर जो वो चाहती है उसे हांसिल करने की कोषिस में चुप चाप लग गयी थी।

‘‘बुराई तो कुछ भी नहीं है अपिया लेकिन अब्बू षायद आपकी बेहतरी का सोच कर ही फैसला ले सकते और उन्होंने षब्बीर भाई के बारे में भी विचार किया होगा लेकिन चार बहन और दो भाइयों समेत उनकी बीमार मां की भी जिम्मेवारी तुम्हारे ही कंधों पर आ जाएगी एैसी स्थिति पर विचार करके ही षब्बीर भाई को उन्होंने नहीं चुना होगा।’’ 

‘‘जिम्मेवारियां तो हर रिष्तें में है जावेद वाले में भी तो परिवार में कई लोग है तीन भाई और दो बहने है और इनके अब्बू और अम्मी दोनों है।’’

‘‘लेकिन जावेद भाई सबसे छोटे है उनके और भाई बहनों की षादी हो चुकी है इनके कंधों पर कोई जिम्मेवारी नहीं है।’’

‘‘षब्बीर काफी सुलझे हुए इन्सान है।’’ - बाजी ने केवल इतना ही कहा।

मुझे मन ही मन हंसी आयी। तो गोया बाजी को जैसे इन्सानों के परखने का बडा पक्का हुनर हो। मन भी क्या भटकाने वाला हिस्सा है जीवन का। इन्सान कैसी-कैसी गलतफहमियां पाल लेता है।

मै समझ गयी थी कि बाजी के अन्दर षब्बीर भाई से ही षादी करने का भूत बैठ चुका था और मुझे इस विशय में अब्बू से बात करनी होगी न केवल करनी होगी बल्कि इस अन्दाज में करनी होगी कि अब्बू इसके लिये राजी हो जाए। 

‘‘तो आप क्या चाहती है मै अब्बू से आपके मन की बात करूं ?’’

‘‘तू जानती ही है कि मैने हमेषा अब्बू के हां में हां मिलाई है मै उन्हें दुख नही पहुॅंचा सकती।’’

‘‘तो फिर मै क्या करूं ?’’

‘‘मै तुझे कुछ करने के लिए नहीं कह रही हूॅं मै तो अपने दिल और दिमाग की कषमष बयां कर रही हूॅं।’’

‘‘बाजी मुझसे अपने मन की बात बयां करके आप केवल अपने मन को हल्का ही कर सकेगी लेकिन आप जो चाहती है वो तो तभी हो सकता है जब आप कुछ करेगी।’’

मेरी बात सुनकर उन्होंने जवाब तो कुछ दिया नहीं हां आंखों से आंसुआंे की धार में इजाफा जरूर हो गया।

बाजी को रोने की कला बहुत अच्छी आती थी जबकि मुझे आंसू कभी नहीं आते पता नहीं खुदा ने मुझे किस तरह से गढा था।

‘‘बाजी केवल रोते रहने से कोई हल नहीं होगा जब तक आपके दिल के बात अब्बू तक न पहुॅंचे अगर आप सीधे-सीधे अपने दिल की बात उन्हें नहीं बता सकती तो फिर मुझे आपकी तरफ से कहने की इजाजत दो।’’

‘‘तू कुछ कहेगी तो अब्बू को सीधे यही लगेगा कि मैने कहलवाया है।’’

‘‘तो फिर क्या किया जाए?’’

‘‘जावेद के घर वाले अगर मना कर दे क्या कुछ ऐसा हो सकता है?’’

क्या दिमाग काम कर रहा था अपिया का वाह! इन्सान का अपने मतलब या मकसद हांसिल करने के लिए कितना तेज और टेढा दिमाग चलता है दाद देनी होगी इन्सान की स्वार्थी सोच को, कोई औलाद केवल अपनी खुषी हांसिल करने के लिए किस कदर मां-बाप को धोखा देने के लिए सोच सकती है।

अन्दर से मेरा मन अपिया का साथ देने को मना कर रहा था लेकिन एक तर्क मुझे बार-बार यह चेतावनी दे रहा था कि अगर अपिया के मर्जी के मुताबिक न हुआ तो कही कुछ गलत कदम न उठा लें। जब वो इतनी तिकडमबाजी के ख्याल अपने मन में पाल सकती है तो कुछ अनचाहा भी कदम उठाने से नही हिचकिचाएगी।

मुझे यहां भी इनका साथ देना होगा।

’’ठीक है बाजी मै सोचती हूॅं कि क्या हल निकाला जाए।’’

मैने यह बात अपिया से कह तो दी लेकिन अभी मेरे दिमाग में इसका कोई समाधान नजर नहीं आ रहा था।

तभी अम्मी कमरे में आयी।

‘‘बेबी, सुल्ताना के घर चल ’’

‘‘ क्यों अम्मी ?’’

‘‘ सुल्ताना को फिर से दौरा पडा है, इस बार सात दिन में चौथी बार दौरा पडा है कोई हवा का चक्कर जान पड रहा है।’’

‘‘ हवा का चक्कर’’ - अम्मी की यह बाद मेरे कदमाग में एक चमक की तरह से कौंधी।

‘‘ अम्मी आप अपिया को ले जाईये मुझे पढाई करनी है।’’

‘‘ मेरा मन नहीं है जेस्मी।’’ - अपिया ने हमेषा की तरह से झट इन्कार कर दिया।

‘‘ अपिया चली जाओं और ध्यान से सुल्ताना बाजी का दौरा पडना देखना, क्योंकि यही एक्टिंग आपने भी करनी है ताकि दूर दूर तक यह बात पहुॅंचे और आपका रिष्ता टूट जाए और फिर आपके जावेद भाई मिल जाएं।’’ - यह बात मैने बाजी के कान में फुस फुसा कर कही जिसे सुनते ही स्वार्थी बाजी की आंखें हजार वाट के बल्ब की तरह रोषन हो गयी। बाजी अपनी हवस की कितनी तलबदार थी। जिससे प्यार करती थी उससे षादी भी की और उसकी बेरूखी भी सही, उसके मरने के बाद तो उन्हें इन सब से नफरत हो जानी थी लेकिन नहीं, सब भूल फिर से वही खेल षुरू करने को तैयार थी। षायद औरतों के मिजाज में ही यह होता है, पता नहीं मेरे अन्दर यह गुण क्यों नहीं आए। 

जैसे ही अपिया के दिमाग में मेरी बात बैठी वह फौरन से बोली।

‘‘ठीक है अम्मी, जेस्मी को पढने दो मै ही चलती हूॅं आपके साथ।’’

कुछ ही देर बाद अपिया और अम्मी चली गयी जबकि मेरे दिमाग में अब आंगे क्या होने वाला है वो अभी से नजर आने लगा था।

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रात नौ बजे अपिया जोर से चीखने लगी। सभी लोग उनके पास जमा हो गये थे अम्मी काफी घबरा गयी थी। जबकि अपिया अब बेहोष पडी

थी। मै जानती थी अपिया का नाटक षुरू हो गया था। बहुत ही सफल अभिनय किया था। किसी फिल्मी कलाकार से कम नहीं था। मुझे यह

सब अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन क्या करती, अपिया को अच्छी तरह जानती थी वह बहुत जिद्दी थी अगर उसके मन की नहीं होती तो                             

कोई भी गलत कदम उठा लेती जिसके कारण इससे ज्यादा परेषानी उठानी पड सकती थी। इसी तर्क ने मुझे तसल्ली दी हुई थी। अचानक अपिया की इस समस्या ने अब्बू को काफी परेषान कर दिया था। वो अम्मी से बोले।

‘‘ अब यह नयी मुसीबत क्या आन पडी है तुम्हारी इस बेटी में ’’

‘‘ बेटी तो आपकी भी है। और मुझे क्या पता क्या हुआ इसे, आज तक तो भली चंगी थी। ’’

‘‘ सोचो अगर इसकी इस नयी बीमारी की खबर इसकी होने वाली ससुराल पहुॅंच गयी तो यह रिष्ता टूट जाएगा और बात फैल गयी तो इससे तो क्या हमारी और बेटियों की षादी में भी रूकावट आ जाएगी। ’’

‘‘ ऐसा कुछ नहीं होगा अल्लाह पर विश्वास रखों। ’’

मै जानती थी अब अब्बू और अम्मी में वाक् युद्ध शुरू हो गया था दोनों एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए ही पूरी रात गुजार देगें। अपिया एक दम षांत पडी हुई थी वो मन ही मन अपनी योजना में कामयाब होने का जष्न मना रही होगी।

मै भी धीरे से वहां से खिसक ली। अब्बू ने मोहल्ले के एक डाक्टर को बुलवा लिया था जो किसी भी समय आने को था। बल्कि में हटते हटते वो आ ही गया।

उसने अपिया का मुवायना किया और बोला।

‘‘यह ठीक है, कोई सदमा या चिंता के कारण बेहोष हो गयी है खतरे की कोई बात नहीं है अपने आप होष में आ जाएगी।’’

डाक्टर अपनी बात कह कर चला गया और अब्बू के लिए बहस का नया मुददा दे गया।

वह अम्मी से कह रहे थे।

‘‘अब इसे किस बात की चिंता। जबकि इसकी चिंता में मै दिनरात लगा रहता हूॅं।’’

........... शेष भाग दो में जारी



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जिन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है?
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यह कहानी प्रत्येक की जिंदगी से जुडी है यह जैसे जैसे आप उपन्यास के पन्नों में आगें बढेगें स्पष्ट होता जायेगा। कहानी के सूत्रधार के रूप में मुख्य किरदार और लेखक है जिनसे जुडे उन तमाम किरदारों से रूबरू होगें जो जीवन में अलग अलग संघर्ष का सामना करते मिलेगें। मुख्य किरदार जेस्मीन का जीवन के प्रति दर्द सामाजिक रिश्तों के तानाबाना में गुथा हुआ मिलेगा। जिसने जीने के लिए समाज के सभी दायरों को लांघने का संकल्प लिया हुआ था। जबकि लेखक इस प्रकार के किसी भी संकल्प के पक्ष में नहीं था। उसका मानना था कि सच्चाई के दायरों से मंजिल जरूर तय होगी।

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