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अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है मैने
अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है मैने
टूटते, बिखरते, सिसकते,कसकते
रिश्तों का इतिहास, दिल पे लिखा है बेहिसाब…!
प्यार की आँच में पक कर पक्के होते जो,
वे कब कौन सी आग में झुलसकर राख होने लगे हैं जो।
क्या ये रिश्ते नियति से नियत घड़िया लिखा कर लाए थे
कमी कहाँ रह गई कि वे अस्तित्वहीन हो गए हैं
ऐसा तो नही की एक अरसे की पूर्ण जिन्दगी जी कर,
वे अपने अन्तिम मुकाम पर पहुँच गए हैं!
कुछ रिश्ते तो बस धन-दौलत पे टिके हैं,
कुछ चालबाजों से लुटे हैं - अपनो से ही गहरा धोखा खाए हैं
कुछ आँसुओं से खारे होकर नमक से हो गए हैं..,
लेकिन कुछ रिश्ते भले ही अभावों में पले पर भावों से भरे है!
बड़े ही खरे हैं और रिश्तो की कब्र पर बने हैं...,
स्वार्थ पर बनें रिश्ते बुलबुले की तरह उठते हैं
कुछ देर बने रहते हैं और गायब हो जाते हैं;
कुछ कान के कच्चे रिश्ते शक से सुन्न हो दूरियों में ओझल हो जाते हैं,
जाने वाले के साथ दूर तक जाकर खत्म हो जाते हैं!
कहते हैं ना out of sight out of mind
फिर भी रिश्ते बनते हैं, बिगड़ते हैं, जीते हैं, मरते हैं, लड़खड़ाते हैं, लंगड़ाते हैं, घसीटे भी जाते हैं,
कभी रस्मों की बैसाखी पे चलाए जाते है...!
पर कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं दोस्तो,
जो जन्म से लेकर बचपन, जवानी, बुढ़ापे से गुजरते हुए,
बड़ी इज्जत से जीते हुए मिसाल बन जाते हैं
लेकिन........ ऐसे रिश्ते सदियों में नजर