रोहित एक कस्बा सोनपुर के स्कूल में प्राइमरी शिक्षक था। अपने काम के प्रति बहुत ही ईमानदार, निष्ठावान और समर्पित व्यक्ति था। बुद्धिमता के सामने शरीर के रंग कभी भी मायने नहीं रखता है। रोहित का रंग सांवला था । लेकिन उसकी इंटेलिजेंसी देखकर लोग अचरज करते थे।
जब रोहित की शादी होती है तो उसकी पत्नी मनीषा एकदम गोरी और बहुत ही ब्युटीफुल लड़की होती है। जिसकी तुलना इंद्र की अप्सराओं से की जा सकती है।।
मनीषा की शादी रोहित से करना जरूरी नहीं था लेकिन मनीषा के पिता जिस जाति से संबंध रखते थे। वे उसमें काफी दिनों से लड़का तलाश रहे थे लेकिन मनीषा के लिए सुयोग्य वर नहीं मिल पा रहा था ।
आज का समय ऐसा आ गया है जब पढ़ी-लिखी लड़कियों के लिए अच्छे वर मिलना बड़ा ही मुश्किल काम हो गया है क्योंकि किसी भी घर में लड़के की शादी हुई नहीं कि लड़की वाले उसे तुरंत पकड़ लेते हैं और इंगेजमेंट कर देते हैं।
थोड़ी सी लापरवाही हुई नहीं कि लड़कियों के पिता लडके खोजते-खोजते परेशान हो जाते हैं लेकिन लड़कियों को योग्य वर नहीं मिलते हैं।
शादी करने से पहले मनीषा से इस बात की सहमति ली गई थी हम उसके लिए पढ़ा-लिखा बुद्धिमान लड़का खोज रहे हैं लेकिन वह सांवले रंग का है।।
उस समय मनीषा ने कहा दिया था कि मुझे रंग रुप से ज्यादा मतलब नहीं बस लड़का बुद्धिमान होना चाहिए।
मनीषा,जो बहुत ही सुन्दर लडकी थी। जिसके सुंदर पतले-पतले होंठ ,मोती से चमकते सफेद दूध के रंग जैसे दांत और पतली सी कमर , नागिन से लहराते हुए काले-काले बाल, कजरारी काली-काली आंखें और गुलाब के फूलों जैसी सुंदर मुस्कान, पतली सी यह लड़की सुंदर वक्ष और एकदम मन को आकर्षित करने वाले शरीर की साक्षात परी थी।
जब वह कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी उस वक्त कालेज के लड़के उसे पाने के लिए अपनी लार टपकाते रह गये।
मनीषा ने अपने साथ के लड़कों से दोस्ती भी की लेकिन किसी के साथ किसी तरह के ग़लत संबंध स्थापित नहीं किये।
प्रेम की रस धाराओं से परिपूर्ण उस लड़की के रंग-रूप , चाल-चलन और यौवन की अनुपम और अद्भुत संरचना को देखकर कोई भी आशिक उसके चाहने की चाहत नहीं नकार सकता था । लेकिन जिसकी क़िस्मत में उसका संयोग लिखा था । उसे कोई भी नहीं रोक सकता ।
वास्तव में मनीषा बहुत ही सुन्दर लडकी थी। जब साड़ी पहनकर लहराती हुई चाल चलकर बाहर निकलती थी तो लोगों के मुंह से आह निकल ही जाती थी।
आह ! भगवान तुमने कैसी जोड़ी बनाई है। काश यह मेरी किस्मत में होती तो मैं बिना धन दौलत के ही अमीर हो जाता ।
कोई इसे एक बार जी भरकर देख लेने दे तो स्वर्ग की दुनिया का आनंद आ जाये । वास्तव में भोग-विलास में मनुष्य बहुत बुरी तरह डूबा हुआ रहता है। उसी की करामात है कि एक यौवन का नशा छाने के लिए एक व्यक्ति अपनी जान-माल को लुटाने के लिए बिना सोचे समझे अर्पित करने के लिए तैयार हो जाता है।।
मनीषा ने पिछले तीन सालों से पिता की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को देखा था। एक पिता के लिए जवान बेटी का बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है।
हर बेटी का ख्वाब होता है कि वह अपने लिए एक सुंदर और आकर्षक पति पाये लेकिन जब पिता अपनी बेटी के लिए अच्छा पति खोजने के लिए निकलता है तो उसके दिल में न जाने कितने अरमान चलते हैं।।
मनीषा:- मैंने अपने पिता को मेरे लिए सुयोग्य वर खोजते समय बहुत ही करीब से देखा था। वह अपने लिए ऐसा दामाद खोजना चाहता था जो उसकी बेटी की जिंदगी को एक अच्छा भविष्य दे सके।।
इसलिए जब मुझसे रोहित के बारे में पूछा गया तो मैंने उन्हें बोल दिया कि पापा आप चिंता मत करिए,जो भगवान ने किस्मत में लिख दिया वह मुझे मंजूर है ।
मुझे आपसे कुछ शिकायत नहीं है मुझे लड़का अच्छा पढ़ा-लिखा और गुणवान चाहिए ।
जब मनीषा के पिता ने रोहित को अपनी बेटी के लिए उचित पति समझ लिया तो मनीषा के पिता ने बड़ी धूमधाम के साथ मनीषा की शादी की। उसके पिता ने अपनी बेटी की शादी में दिल खोलकर रुपया खर्च किया।।
मनीषा:- हमारी शादी को चार साल हो गये थे लेकिन रोहित और मेरे बीच में आज तक किसी तरह का कोई विवाद नहीं हुआ। हम लोगों ने अपने आप में एक दूसरे को बहुत करीब से समझा और हर काम को बड़े समन्वय के साथ किया ।।
"अगर मुझसे कोई गलती भी हो जाती थी तो रोहित यह कहकर टाल देता है कि “कोई बात नहीं ,हो गया सो गया। गलती इंसान से होती है। जिस चीज का नुक़सान हुआ है वह वापस आ जायेगी तुम चिंतामुक्त रहकर अपनी जिंदगी गुजारो”।
यही तो कारण था मनीषा उसके साथ इतनी मोहब्बत करती थी। वह उसकी एक आवाज पर जी जान देने के लिए हाजिर हो जाती थी । इसलिए तो कहते हैं मनुष्य का असली रुप बाहर की त्वचा से पता नहीं चलता मगर सही मायनों में विश्लेषण किया जाये तो मनुष्य का दिल और मन काला नहीं होना चाहिए।
अर्थात् मनुष्य की कथनी करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। मनुष्य की जिंदगी में शील , संतोष , सहनशीलता, सत्य , ईमानदारी,प्रेम दया ,करूणा, क्षमा इत्यादि गुणों में से एक भी गुण है तो वह व्यक्ति महापुरुषों की श्रेणी में आ जाता है।
मनुष्य की शोभा उसकी बाहरी त्वचा का रंग रूप नहीं बल्कि उसका आंतरिक भाव होता है। शिक्षक स्वभाव से सदाचारी होते हैं क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन की बागडोर शिक्षक के साथ में ही होती है। चाहे वह आई ए एस हो या एक चपरासी।
हर व्यक्ति ने अपने जीवन की शुरुआत माता-पिता के बाद में शिक्षक के साथ ही की है। जो लोग शिक्षक के संपर्क में नहीं आये उन्हें भी अपनी जिंदगी में किसी ना किसी रुप में शिक्षक से ज्ञान प्राप्त किये क्योंकि शिक्षक वही नहीं होता है जो मनुष्य को स्कूली शिक्षा देता है बल्कि एक शिक्षक वह भी होता है जो मनुष्य की जिंदगी में कुछ ना कुछ सिखलाता है ।
हमारी जिंदगी के प्राइमरी शिक्षक माता-पिता होते हैं जो हमारे जन्म से अपने अंतिम दौर तक कुछ ना कुछ सिखलाते रहते हैं।।
“मैने अक्सर देखा है कि शिक्षकों की एक बहुत अच्छी आदत होती है कि उनकी सूर्य की पहली किरण के साथ आंख खुली नहीं कि घर के द्वार पर , चौपाल पर बैठकर चाय की पहली चुस्की अखबार के पन्ने पर ही पड़ती है।
उन्हें अपने ज्ञान का विस्तार करने के लिए आजीवन किसी ना किसी रूप में कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है। उसकी बहुत जरूरत रहती है क्योंकि शिक्षक ही तो होता है जो किताबों की घटनाओं को वर्तमान परिदृश्य से जोड़कर बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समझाने का काम करता है। इसलिए उनके जीवन में अखबार और अच्छा साहित्य पढ़ने की बहुत ज्यादा जरुरत होनी चाहिए ।
यह एक शिक्षक के लिए अच्छी आदत है। वैसे मैं कहूं तो शिक्षक कंजूस और मक्खीचूस तो होते ही हैं। उनकी जिंदगी में एक-एक रुपये की बहुत अहमियत होती है। वह अपनी जिंदगी में व्यर्थ का एक भी रूपया खर्च नहीं करना चाहते हैं।
रोहित की भी कुछ ऐसी ही आदत थी। घर सोनपुर के दौ सौ गज जमीन पर बना हुआ है । मगर अखबार पढ़ने के लिए वे कस्बे के प्रधान के यहां ही जाते हैं।
सोनपुर हर दिन विकसित होता जा रहा था। यहां पर स्कूल अस्पताल और रोजमर्रा की चीजों का मार्केट खुलता ही जा रहा था।
यह कस्बा बन गया था लेकिन पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया था। अभी इसे विकसित होने में काफी समय लगने वाला था ।।इसके चारों तरफ खेत ही खेत और पेड़ों की हरियाली बहुत सुहाती है। धीरे-धीरे बदलाव की राह चल रही है । यहां पर विकास हो रहा है। और बुरा उस समय लगता है जब किसी गांव को शहर में बदला जाता है तो उसके आसपास की हरियाली लगातार लुप्त होती चली जाती है। पेड़ों की कटाई शुरू हो जाती है और लोग खेतों को खरीदकर उसमें खेती की जमीन को खत्म करके वहां पर प्लाटिंग करके उसे आवासीय जमीन बनाते हुए चले जाते हैं। उस गांव की प्राकृतिक सुंदरता घटती ही चली जाती है । बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधन लोगों के भविष्य में एक बहुत बड़ी समस्या बनकर परेशान करेंगे।
सुबह की पहली किरण के साथ आज भी इस कस्बे से गाय और भैंसों के दुहने की आवाजे आती है। सुबह-सुबह फल और सब्जियां उगाने वाले किसान खेतों में चार बजे ही निकल जाते हैं और सुबह की पहली किरण उनकी मंडी में जाकर दिखाई देती है। दही बिलौने के लिए कुछ घरों में दरराती हुई मशीनें लेकिन कमला काकी आज भी लकड़ी से बनी हुई रई से दही बिलोती है। चाय की एक दुकान है जिस पर भीड़ लगी रहती है। पहले इस गांव में कोई चाय की दुकान नहीं थी उस वक्त लोगों में चाय का इतना ज्यादा शौक नहीं था क्योंकि कुछ घरों में चाय बनती ही नहीं थी । बच्चों के अंदर शिक्षा का शौक बढ़ता जा रहा है। युवा डिफेंस की नौकरी करने के लिए सुबह चार बजे ही सड़कों पर पसीना बहाने के लिए निकल जाते हैं। हम तरफ एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा रहती है। हिंदू की विभिन्न जातियों के लोग एवं मुस्लिम समाज के लोग भी यहां बसते हैं। मगर सभी में गहरी दोस्ती और घनिष्ठता है। यहां पर लड़ाई-झगड़े भी प्यार से सुलझा लिये जाते हैं। सब लोग बडी प्रसन्नता के साथ अपने काम-धंधे कर रहे होते हैं। और आपस में एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।।
उन्ही के बीच रहने वाला रोहित जो घर पर चाय नहीं पीता है क्योंकि उसके घर में दूध नहीं है। वह हर तरह से सही है लेकिन थोड़ा लोभी भी है। अखबार घर पर लगा नहीं सकता है । दस रूपए की चाय के साथ अखबार भी पढ़कर आ जाता है।
रोहित घर से निकला और गांव की चाय की दुकान पर पहुंचा तो उसने देखा कि चाय की दुकान पर रोजगारों से ज्यादा बेराजगारी की लाइन दिखाई पड़ती थी। वह हमेशा वहां खड़े बेरोजगार लोगों से कहता था कि कुछ काम धंधा कर लीजिए । इस तरह फालतू घूमने से तुम्हारी पार नहीं पड़ जायेगी। तुम लोग मां बाप की कमाई को फैशन और मोबाइल में बर्बाद कर रहे हो । जरा सोचो समझो और सुंदर जाओ । वक्त बहुत बदलता जा रहा है दिन रात की मंहगाई बढ़ती चली जा रही है। इस लौंडिया बाजी से कुछ नहीं होने वाला है।
सोनपुर के कुछ बच्चों पर रोहित की बातों का असर होता था । उन्हें रोहित का इतना अधिक खौफ हो गया कि रोहित के आने से पहले दुकान की पहली चाय पीकर पतली गली से निकल जाते थे। और कुछ लोग रोहित की बातों को मजाक में ले लेते थे।
“अरे गुरुजी आप चिंता क्यों करते हो। आपको रोजगार मिलने से क्या फायदा। आप पांच रूपये का अखबार नहीं लगा सकते और किसी को दस रूपये की चाय नहीं पिला सकते । हमें देखिए कि हम लोग बेरोजगार होते हुए भी चार लोगों को चाय पिलाकर ले जाते हैं।। भगवान ने किस्मत में लिखा होगा तो रोजगार छप्पर फाड़कर आ जायेगा । हमें ज्यादा हाथ-पैर फड़फड़ाने की आवश्यकता ही नहीं होगी।“
ऐसा कहकर वे मजाकी ग्रुप के लोग ठहाका मारकर हॅंसने लगते थे। हाहाहाहाहा --------हाहाहाहा-----हाहाआहाहाहा हाहाहाहाहा--------हाहाहाहा-----हाहाआहाहाहा।
वहां पर बैठे हुए एक वृद्ध रोहित से कहता है। मास्टर साहब आजकल के लोगों से कुछ भी कहना बेकार है। तुम इनसे कुछ भी मत कहा करो । ये लोग किसी की बात नहीं मानते हैं। इन्हें लगता है कि बड़े-बूढ़े हम लोगों को फालतू का ज्ञान देते हैं। ये लोग अपने आपको बहुत ज्ञानवान समझने लगे । पता नहीं क्या होगा इन लोगों का जो हमेशा कोई भी बात को गंभीरता से नहीं लेते ।
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