कलयुग में वो प्रीत गयी
हो गयी अभिलाषा पूर्ण
कैकेयी तुम जीत गयी।
भाई के रहते-रहते ही
भरत अब सत्ता चाहता है
खड़ाऊ की चाह किसे अब
तुरुप का इक्का चाहता है।
भाई का अनुसरण कर
वन जाने की रीत गयी
हो गई अभिलाषा पूर्ण
कैकेयी तुम जीत गयी।
भ्रात प्रेम से भरकर के
कहाँ शत्रुघ्न आता है
मिल मंथरा और कैकेयी से
सीता पर हाथ उठाता है।
भाई के भाई में बसते प्राण
रीति अब वो बीत गई
हो गई अभिलाषा पूर्ण
कैकेयी तुम जीत गयी।
माता अलग पर पिता समान
सब भाई थे एक ही जान
एक मात पिता से जनम
भाई ले लेता भाई के प्राण।
भाई-भाई को देता ठंडक
अहे पतझड़ में वो शीत गयी
हो गई अभिलाषा पूर्ण
कैकेयी तुम जीत गयी।