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कारगिल युद्ध की कभी न भूलने वाली वो यादें

23 सितम्बर 2021

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पुरानी यादों की आलमारी से कुछ चीजें निकाल रहा था कि भारतीय वायु सेना में सेवा काल के दौरान की कुछ चीजें सामने आ गई, इसके साथ ही उन दिनों की यादें ।  राष्ट्रगान के समान ही वायुसेना गीत को वायुसेना में काफी महत्व एवं सम्मान दिया जाता है ।  हर सेरिमोनियल कार्यक्रम में इसे बजाया जाता है तथा वहां उपस्थित सभी लोगों को इसके सम्मान में खड़ा होना अपेक्षित है ।  लड़ाकू विमानों के गगन भेदी गर्जना के बीच से लतामंगेश्कर जी की सुमधुर आवाज में यह गीत सच में रगों में रक्त संचार को तेज कर देता है ।  इस गान की कुछ पंक्तिया मेरे किसी डायरी में स्वर्णाक्षरो में लिखी हुई थीं, अचानक उसपर मेरी नजर पड़ी ।  उसके बोल कुछ इस प्रकार हैं :-  

  "देश पुकारे जब सबको  

  सुख दुःख बनते एक समान, 

  नीली वर्दी वालों का दल, 

  बढ़ता आगे सीना तान …..........” 

  इस गीत की पंक्तियों को देखते हुए कारगिल के समय की यादें ताज़ी हो गयीं ।  छद्म युद्ध ने प्रत्यक्ष युद्ध का रूप ले लिया
था ।  अखबारों के पन्ने युद्ध और दोनों देशों के रिश्ते में उबाल की कहानियां रोज ही छाप रहे थे ।  हर गली और नुक्कड़ पर चाय के साथ लोग बस इस युद्ध के बारे में ही चर्चा करते हुए नजर आते थे ।  मैं उन दिनों छुट्टी पर कलकत्ता आया हुआ था ।  अचानक हमारे यूनिट से फोन आया कि छुट्टी कैंसिल हो गयी है,तुरंत वापस लौटने का निर्देश दिया गया ।  फोन मेरी मां ने रिसीव किया था ।  छुट्टी कैंसिल होने की बात सुनकर वो हतप्रभ हो गयीं ।  फोन करने वाले से इसका कारण पूछ पातीं कि फोन कट गया ।  उन दिनों मैं अम्बाला के आसपास तैनात था ।  खैर, बुझे दिल से मुझे यह खबर दी गयी ।  घर में तो मानो कोहराम मच गया हो ।  सब लोग कुछ अनहोनी की आशंका में सिहर उठे पर किसी ने भी यह नहीं कहा कि तुम मत जाओ।  मन में दुःख था पर देश के लिए कुछ करने और कर दिखाने का यह अवसर जान परिवार के सारे सदस्यों ने सहर्ष मुझे विदा किया ।  मेरे घर से हावड़ा स्टेशन तक छोड़ने के लिए मेरे दोस्त और मेरे भाई आये हुए थे ।   

  जैसे ही हमारी लोकल हावड़ा स्टेशन पर आकर रुकी, हम उतरने के लिए उद्द्यत हुए कि एक दुबला पतला सा कृशकाय व्यक्ति आया, मेरा बैग अपने कंधे पर लाद आगे बढ़ने लगा ।  हमने सोचा कोई चोर- उचक्का होगा, सामन उठाकर भाग रहा होगा ।  उसे हमने रोका ।  उसने कहा, 'साहब, आप फौजी हैं न ! कारगिल के युद्ध में शामिल होने जा रहे है न ? मुझे पता है ।  चलिए मैं आपको आपकी गाडी तक छोड़ देता हूँ । ” 

 हम सब उसके पीछे चल पड़े ।  रास्ते में वो कई तरह की बाते बताते हुए चल रहा था ।  उसने बताया कि वो स्टेशन पर कूली का काम करता है ।  फौजी भाइयों को देखकर उनकी सेवा के लिए दौड़ पड़ता है ।  हमारे ट्रेन का कोच आ गया, उसने हमें सीट पर बैठा कर एक फौजी अंदाज में जोर का सल्यूट ठोंका और गाडी से उतर गया ।  हमलोगों ने उसे रोका और उसे उसकी मजदूरी देना चाहा पर उसने मजदूरी लेने से मना कर दिया ।  बहुत पूछने के बाद उसने कहा, ' साहब पैसा तो रोज कमा लेते हैं पर आप जैसे लोगों की सेवा का मौक़ा कहाँ मिल पाता है ।  आज जब देश ने आपको पुकारा है तो मेरा भी कुछ फर्ज बनता है देश की सेवा में अपना योगदान करने का ।  मैं फ़ौज में तो नहीं हूँ कि सीधे सीमाओं पर जाकर
युद्ध लड़ूं,कम से काम आप लोगों की सेवा कर अपना कुछ तो फर्ज निभा लूँ । ' और वो हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ गया ।  उसकी देशभक्ति को देखकर मैं नतमस्तक हो गया ।  मेरे साथ आये हुए सभी उसकी बेबाकी को सलाम करने लगे ।  

  सबसे विदा होकर मैं अपने गंतव्य पहुंचा ।  वहां से हमारी यूनिट आगे जा चुकी थी ।  हम अपने यूनिट जाने के लिए बस से आगे बढे ।  पंजाब, हरियाणा, राजस्थान से होते हुए सीमा के और बढे ।  हमें हैरानी हो रही थी कि किसी भी बस वाले ने हमसे बस का किराया नहीं लिया ।  हमारे निवेदन के बाद भी वो मुस्कुराकर रह जाते थे ।  फ़ौज की जितनी गाड़ियां आगे बढ़ रही थी गावँ-गावँ में उन गाड़ियों को रोककर दूध,केला तरबूज और अन्य खाद्य सामग्री आग्रह कर दिया जा रहा था ।  ऐसा लगता था जैसे भगवान को प्रसाद अर्पित कर रहे हों ।  सिविलियन जनता द्वारा फ़ौज का इतना सम्मान मैंने कभी देखा- सुना नहीं था ।  हम सब गन्तव्य पर पाने अपने लोकेशन पर पहुंचे ।  हमें आगे भेज दिया गया ।  राजस्थान के हनुमान गढ़ सेक्टर के समीप, खेतों के बीच हमारा टेंट गड़ा ।  सब कुछ सेटल करने के बाद हम आसपास को समझने के लिए निकल पड़े ।  कुछ दूर जाने के बाद खेतों में कटी फसल के ढेर का पहाड़ सा लगा हुआ था ।  हमने सोचा कि शायद यह गेहूं की फसल होगी ।  पास से देखने के कौतुहल को हम रोक न सके ।  पास जाकर देखा तो मूंगफली का ढेर लगा था ।  खेत
से निकले हुए मूंगफली के फल बेहद स्वादिष्ट होते हैं ।  हमलोगों ने बिना कुछ सोचे समझे मुठ्ठी में भरकर मूंगफली अपनी जेब में भर लिया ।  वही पास में एक झोपड़ीनुमा मकान था ।  हम मकान के पास गए ।  दरवाजे पर दस्तक दी ।  अंदर से एक सरदारजी निकले ।  हमने उन्हें बताया की फौजी हैं, पास के खेत में हमने टेंट लगा रखा है ।  हमलोगों ने अपने साथियों के लिए उनसे मूंगफली माँगा ।  सरदारजी बिना कुछ बोले मकान के अंदर चले गए ।  हम सोच में पड़ गए कि क्या हो गया, उन्होंने कुछ बोला क्यों नहीं ? अभी हम उहापोह से बाहर आ भी नहीं पाए थे कि सरदारजी अंदर से दो खाली बोर लेकर आये और कहा,'जितना चाहो भर लो,इतने में हो जाएगा या और कट्टे लाऊं?' उनकी बात सुनकर हम शर्म से लाल हो गए, हम क्या कर रहे थे और क्या मिला ।  इस प्रकार के कई खट्टे-मीठे अनुभव रहे हैं जिन्हें देखकर हमें यह भान हुआ की हमारे देश की जनता अपनी सेना और अपने देश से कितना प्यार करती है तथा वर्दी में न होकर भी वर्दी वालों का कितना ख्याल रखते हैं ।  उनकी बाते याद कर सहज ही भावविभोर होकर आँखें नम हो जाती हैं ।   

   

Jyoti

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